Lok Sabha 2024 : कांग्रेस के कमबैक का फार्मूला...
राज एक्सप्रेस। मुंबई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज के मैदान में 138 साल पहले शुरू हुई 'द ग्रांड ओल्ड पार्टी' कांग्रेस को अब एक कमबैक की जरुरत है। 1984 के आम चुनाव में जिस पार्टी को आजाद भारत के इतिहास का सबसे बड़ा बहुमत (404 सीटें) मिला था वह आज अपने सबसे बुरे दौर में है। 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों को देखकर जहाँ एक तरफ लोग जोरदार तरीके से आलोचना कर रहे है वहीं, दूसरी तरफ राजनीतिक विद्वानों ने अब बोलना शुरू कर दिया है कि कांग्रेस को अपने भीतर बदलाव करने की जरुरत है। चलिए, जानते है कि वह कौनसे बदलाव है जो राजनीतिक विद्वानों द्वारा बताए गए है जिनसे हो सकता है कांग्रेस का कमबैक।
संगठनात्मक परिवर्तन :
कांग्रेस के संघठन के भीतर कितने विंग्स काम करते है यह भी बहुत कम लोगों को पता होता है। इसका सबसे बड़ा कारण यह कि जमीनी तौर पर यह सभी इकाइयां आम जनता से जुड़े रहने के लिए पहले कई अभियान चलाती रहती थी परन्तु अब ना तो यह कोई अभियान चला रही है और ना ही कांग्रेस की सोच को लोगों तक पहुंचा रही है। कांग्रेस सेवा दल, अखिल भारतीय युवा कांग्रेस, अखिल भारतीय महिला कांग्रेस और राष्ट्रीय छात्र संघ आदि कुछ कांग्रेस की ऐसी इकाइयां है जिन्हें जमीनी तौर पर जनता से जुड़ने का काम मिला था लेकिन इनमे से किसी का भी नाम कभी किसी अवसर पर ना तो दिखाई देता है और ना ही सुनाई देता है। हालांकि, कोरोना महामारी के समय युवा कांग्रेस ने लोगों की मदद की थी जिसे देश के बड़े नेताओं ने सराहा भी था।
कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को इस ओर ध्यान देना होगा और इन सभी अहम् इकाइयों को सशक्त और मजबूत बनाने के लिए बड़े बदलाव भी करने होंगे। वहीं राजनितिक विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि शीर्ष नेतृत्व को भाजपा की ही तरह आम जनता के बीच जाकर ऐसे नेताओं को खोजना होगा जो ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़े और जो उनकी भाषा एवं संस्कृति से जुड़ा हुआ हो। इन सभी इकाइयों को जल्द मुख्यधारा की राजनीति से जोड़ना होगा जिसके लिए इन सभी के नेतृत्व में भी बदलाव करने होंगे। कांग्रेस को खुद भी देशव्यापी अभियान कर सभी कार्यकर्ताओं को जागरूक करना होगा ताकि वह उनकी बातों को देश के निचले तबके तक पहुंचाकर उन्हें पार्टी से जोड़ सकें।
युवा नेताओं पर निवेश और अनुभवी राजनेताओं का उपयोग :
कांग्रेस अनुभवी और बुजुर्ग नेताओं से भरी है जिनकी जड़ें देश के हर छोटे-बड़े राज्य में फैली हुई हैं। ये सभी नेता कांग्रेस और उनकी इकाइयों में बड़े पदों पर स्थापित हैं. हालांकि, अनुभवी नेताओं की आपसी रंजिशों से कांग्रेस को नुकसान भी उठाना पड़ रहा है, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण कुछ दिन पहले खत्म हुए मध्य प्रदेश और राजस्थान विधानसभा चुनाव में देखने को मिला. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, कांग्रेस में कुछ ऐसे वरिष्ठ नेता हैं जो सालों से एक पद पर हैं जिसका कांग्रेस को फ़ायदा कम नुक्सान ज्यादा हो रहा है। इससे कांग्रेस के भीतर नये युवा नेताओं को उभरने का ज्यादा मौका नहीं मिल पाता है। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि कांग्रेस को युवा नेता और अनुभवी नेता का कॉम्बिनेशन बनाना होगा, जिससे यूवाओं को और जनता को साधा जा सके।
पार्टी को युवाओं से प्रत्यक्ष तौर पर जुड़ने के लिए भारत जोड़ो यात्रा जैसे कई देशव्यापी अभियान और प्रदेशव्यापी कार्यक्रम भी करने होंगे जिसका नेतृत्व अनुभवी और युवा नेताओं से करवाना होगा। कन्हैया कुमार, सचिन पायलट और गौरव गोगोई जैसे कुछ युवा चेहरों और इनके साथ कर्नाटक के डिप्टी मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार और तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंथ रेड्डी जैसे दिग्गज और खुद को ज़मीनी तौर पर साबित कर चुके नेताओं को और भी बड़ी जिम्मेदारी एवं पद देना होगा ताकि ज्यादा से ज्यादा युवा पार्टी और उसकी सोच से जुड़ सके। इसके लिए कांग्रेस को अच्छा सोशल मीडिया मैनेजमेंट भी करना होगा। आज का युवा टीवी से ज्यादा सोशल मीडिया पर समय व्यतीत करता है। इसलिए युवाओं को पार्टी से जोड़ने के लिए उनके स्मार्टफोन्स तक पहुंचना होगा ताकि उन तक कांग्रेस की विचारधारा पहुंच सके।
आरएसएस पर जुबानी हमले से बिगड़ेगी बात :
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लगभग 100 साल से भारत में गाँव-गाँव तक पहुंचकर हिंदुत्व विचारधारा का प्रचार प्रसार कर रहा है। हिन्दू समुदायों पर आरएसएस का बड़ा गहरा प्रभाव है जिसके कारण वह आरएसएस पर बोली गई हर टिपण्णी को हिन्दू धर्म पर की गई टिप्पणी के तौर पर देखते है। इस पर आग में घी डालने का काम शीर्ष नेताओं के आरएसएस पर लगातार जुबानी हमले कर देते है। पार्टी और पार्टी के नेताओं को यह बात समझनी होगी कि आरएसएस ने इतिहास में कई बार कांग्रेस की मदद की है।
देश के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू आम तौर पर आरएसएस की आलोचना करने में संकोच नहीं करते थे, लेकिन उन्होंने कभी-कभी संघ परिवार की प्रशंसा की, खासकर जब आजादी के तुरंत बाद पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर हमला किया और संघ के स्वयंसेवक मदद के लिए वहां गए थे। चीनी आक्रमण के दौरान भी, नेहरू ने आरएसएस द्वारा प्रदान की गई सेवाओं को स्वीकार किया था और यहां तक कि 1963 के गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने के लिए आरएसएस को आमंत्रित भी किया था।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, राजीव गांधी ने कथित तौर पर आरएसएस प्रमुख बालासाहेब देवरस के साथ गुप्त बैठक की थी, जिसके परिणामस्वरूप राजनीतिक परिदृश्य पर भाजपा की उपस्थिति के बावजूद 1984 के लोकसभा चुनावों में आरएसएस कैडर ने कांग्रेस का समर्थन किया। इतिहास की यह घटनाएं यह बात साबित करने के लिए काफी है कि आरएसएस का भाजपा से ही नहीं कांग्रेस से भी जुड़ाव है जिसे देखते हुए कांग्रेस को आरएसएस पर जुबानी हमले करना कम करना चाहिए।
नेताओं पर कसनी होगी लगाम :
कांग्रेस के पतन का एक बहुत बड़ा कारण उनके वक्ताओं और बड़े नेताओं का बड़बोला होना है। वह कई बार पार्टी और शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ बयान देते हुए नजर आते है बाकि दल इसका मुद्दा बना लेते है। कांग्रेस के आपसी झगड़े भी इसके बड़े मानकों में से एक है। कांग्रेस में पुराने नेता अपना पद छोड़ना नहीं चाहते है न ही वह किसी युवा नेता को पार्टी के लाभ में ज्यादा बलिदान देते नजर नहीं आते है। कांग्रेस को अपनी पार्टी के भीतर अनुशासन लाना होगा जैसे भाजपा या आम आदमी पार्टी के भीतर मौजूद है।
कांग्रेस को उन नेताओं को पहचानना होगा जो कि पार्टी को सर्वोपरि माने। इसके आलावा कांग्रेस को भी अपनी पार्टी संविधान में कई बदलाव करने के बारे में सोचना चाहिए जिसे सभी पार्टी कार्यकर्ताओं को मानना होगा जैसे कि पद को लेकर एक निर्धारित समय, युवाओं को बड़े पदों पर लाने के लिए प्रॉपर ट्रेनिंग आदि। इन सभी के लिए नेताओं का दृश्टिकोण पार्टी के लिए काम करने को लेकर होना चाहिए जिसकी कमी कांग्रेस में दिखाई पड़ती है।
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