राज एक्सप्रेस: मिशन चंद्रयान 2 का किस्सा तो आप सभी की जुबान पर होगा ही पर मिशन की सफलता के पीछे लगे दिमाग से शायद कुछ ही लोग रुबरु होंगे। इसरो के प्रमुख उर्फ चेयरपर्सन डॉ के. सिवन की जिंदगी किसी प्रेरणा से कम नहीं है। डॉ के सिवन ही वह नाम है जिनका मिशन चंद्रयान 2 के पीछे दिमाग रहा है। इसरो प्रमुख डॉ. सिवन और उनकी टीम ने वह कर दिखाया है जो लोग करने के लिए सोचते ही रह जाते हैं। भारत के ऐसे दूत को हमारा सलाम है जो देश की सेवा करने और उसे आगे बढ़ाने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं और देश के लिए एक अलग ही इतिहास रचते हैं।
चंद्रयान 2 में दिए गए योगदान के लिए पूरा देश इसरो के सभी वैज्ञानिकों को सलाम कर रहा है। तो वहीं इसरो के प्रमुख डॉ. के. सिवन सबके लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन गए हैं। पूरा देश आज उनके बारे में बातें कर रहा है और उनके जीवन के बारे में जानना चाहता है। डॉ. सिवन के जीवन, उनके संघर्ष और योगदान की कहानी करोड़ों लोगों को प्रेरित करने वाली है।
डॉ. सिवन का जीवन परिचय
डॉ. सिवन का पूरा नाम कैलाशावादिवो सिवन है। डॉ. कैलाशावादिवो सिवन भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अध्यक्ष हैं। इससे पहले उन्होंने विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र और तरल प्रणोदन प्रणाली केंद्र के निर्देशक के रूप में कार्य किया है।
डॉ. सिवन का जन्म सन् 1957, 14 अप्रैल को कन्याकुमारी के गांव मेला सरक्कालविलै के एक गरीब परिवार में हुआ था। डॉ. सिवन एक किसान के बेटे हैं और उन्होंने अपनी पढ़ाई मेला सरक्कलविलै गाँव के तमिल मिडियम सरकारी स्कूल से की साथ ही वो अपने परिवार से पहले ग्रेजुएट भी हैं। डॉ .सिवन की आगे की पढ़ाई-
-आपने सन् 1980 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग किया ।
- सन् 1982 में भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टरर्स की डिग्री हासिल की और इसरो में काम करना शुरु कर दिया।
- आपने 2006 में भारतीय प्रौद्योगिकी बॉम्बे (IIT BOMBAY) से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की।
- डॉ. सिवन इंडियन नेशनल एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग, एयरोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया और सिस्टम सोसाइटी ऑफ इंडिया के फेलो हैं।
पढ़ाई के लिए करना पड़ा था काफी संघर्ष
डॉ. सिवन गरीब परिवार में जन्में एक किसान के बेटे हैं। बचपन से ही उनको अपनी पढ़ाई के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा था। वह अपने परिवार के पहले ग्रेजुएट हैं और साथ ही एक सेल्फ मेड मैन भी हैं। बचपन में आए कई सारे उतार चढ़ाव के बाद भी उन्होंने कभी हौसला नहीं हारा और आज देश के रॉकेट मैन बन गए।
सेल्फ मेड मैन
अपने खुद के दम पर आज डॉ. सिवन ने उच्चाईयों को छुआ है। बचपन में जिस इंसान के पास पढ़ने के लिए रोशनी तक का कोई प्रबंध नहीं था उसने भारत की तरफ से 104 सैटेलाईट्स भेज कर विश्व कीर्तिमान बनाया है। डॉ. सिवन बचपन से ही आजाद ख्याल के इंसान रहे हैं। शुरूआत से ही वह अपने जीवन की लड़ाई में अकेले खड़े रहे, कई मुश्किलों का अकेले ही सामना किया है। जीवन का तजुर्बा उन्हें उम्र के छोटे पड़ाव से ही हो गया था और बिना किसी के साथ और सहारे के ही वह जीवन में आगे बढ़े हैं।
डॉ. सिवन का इसरो सफरनामा
डॉ. सिवन ने सन् 1982 में इसरो जॉईन किया था। वहीं वह पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी) परियोजना के साथ साथ कई परियोजनाओं के भी हिस्सा बने। इन सभी परियोजनाओं में उनका योगदान काफी महत्वपूर्ण था क्योंकि उन्होंने मिशन की योजना, डिजाइनिंग, एकीकरण और विश्लेषण में बहुत मदद की थी। इसरो के अध्यक्ष के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने दो प्रमुख मिशन-चंद्रयान -2 और जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी-एमके 3) की विकासात्मक उड़ान की भी देख रेख की।
अपने 3 दशक लंबे करियर के दौरान, डॉ. सिवन जीएसएलवी रॉकेट के परियोजना निर्देशक होने के अलावा जीएसएलवी, पीएसएलवी, जीएसएलवी एमकेएलएल सहित कई प्रतिष्ठित मिशनों का भी हिस्सा रहे हैं।
करियर में मिले कई अवार्डस और उपाधि
डॉ. सिवन को अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए कई बार सम्मानित किया गया है, जिसमें श्री हरिओम आश्रम प्ररित, डॉ. विक्रम साराभाई रिसर्च अवार्ड, 1999 में इसरो मेरिट अवार्ड और 2011 में डॉ. बिरेन रॉय स्पेस साइंस अवार्ड शामिल हैं। वहीं अभी हाल ही में तमिलनाडु सरकार ने गुरुवार को डॉ. सिवन को प्रतिष्ठित डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम पुरस्कार से सम्मानित किया है। कलाम पुरस्कार उन लोगों को सम्मानित करने के लिए दिया जाता है जो वैज्ञानिक विकास, मानव और छात्रों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए काम करते हैं।
साल 2018 में डॉ. सिवन को इसरो के प्रमुख के रुप में नियुक्त किया गया था। मिशन चंद्रयान 2 के कर्ताधर्ता सिवन ने मिशन का भार संभाला है। वहीं मिशन 95 प्रतिशत कामयाब भी रहा है। जब मिशन के दौरान आखिरी पलों में लैंडर विक्रम से संपर्क खत्म हुआ तो डॉ. सिवन काफी भावुक हो गए थे और अपनी भावनाओं को आंखो से बहने से रोक नहीं पाए थे। प्रधानमंत्री को गले लगाकर अपनी भावनाएं व्यक्त की थी।
तमिलनाडु के गरीब परिवार में जन्में डॉ. सिवन का जीवन किसी प्रेरणा से कम नहीं है किसान के बेटे से लेकर रॉकेट मैन तक का सफर उनके लिए भी आसान नहीं रहा था पर अपने बुलंद हौसले, इच्छाशक्ति और उच्चाईयों को छूने की चाहत में वह हमेशा आगे बढ़ते रहे और वह कर दिखाया जो शायद आज तक किसी ने भी न किया होगा। हम सलाम करते हैं देश के ऐसे वैज्ञानिकों और उनके जज़्बे को।
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