हाथ में भागवत गीता और चेहरे पर मुस्कान लिए फांसी पर झूले थे खुदीराम बोस, जानिए उनकी कहानी
राज एक्सप्रेस। जब कभी देश के लिए सबसे कम उम्र में फांसी को चूमने वाले युवा क्रांतिकारी की बात होती है, तो एक ही नाम सबसे पहले हमारे जेहन में आता है, खुदीराम बोस का। वे ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने महज 18 साल की उम्र में ही देश के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी। जब खुदीराम बोस को फांसी दी गई तब भी उनके चेहरे पर एक चमकीली मुस्कान और हाथ में भागवत गीता थी। खुदीराम बोस को यह सजा जज किंग्सफोर्ड ने मुजफ्फरपुर क्लब के सामने किए गए एक बम विस्फोट को लेकर सुनाई थी। आज उनकी जयंती में मौके पर हम आपको उनसे जुड़ी खास बातें बता रहे हैं।
बचपन से मन में ही देशभक्ति :
खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसम्बर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुवैनी गाँव में हुआ था। बचपन से ही उनमें देशभक्ति कूट-कूटकर भरी हुई थी।
9वीं कक्षा के बाद छोड़ दी थी पढ़ाई :
उनके अंदर देशभक्ति की ज्वाला कुछ इस कदर जल रही थी कि उनका मन पढ़ाई में भी नहीं लग पा रहा था। इसके चलते बोस ने 9वीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई को भी त्याग दिया और यही से स्वदेशी आन्दोलन में शामिल हो गए।
बने आंदोलनकारी :
देश में साल 1857 की क्रांति को अंग्रेजों के द्वारा दबा दिए जाने के बाद करीब 50 सालों तक देशभर में बड़ी ज्वाला नहीं भड़की। लेकिन अब वह दौर था जब खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चंद्र चाकी ने अंग्रेजों के खिलाफ परचम मजबूत किया। दोनों क्रांतिकारियों ने 30 अप्रैल 1908 को मुजफ्फरपुर क्लब के सामने दमनकारी जज किंग्सफोर्ड को मारने के इरादे से बम विस्फोट किया। लेकिन इस विस्फोट में एक अंग्रेज वकील की बेटी और पत्नी शिकार बन गए। जिसके कारण उन्हें 11 अगस्त 1908 को सेंट्रल जेल में फांसी दी गई।
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