Manda Festival : ऐसी पूजा जिसमें अग्नि कुंड के ऊपर उलटे लटकते है भक्तगण

Manda Festival : झारखंड में भगवान शिव को खुश करने और वर्षा के लिए नौ दिनों तक मंडा पूजा का आयोजन होता है जिसमे भक्तगण अग्नि कुंड के ऊपर उल्टा लटकते है।
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हाइलाइट्स :

  • वैशाख के मौके पर झारखंड में की जाती है अनोखी मंडा पूजा (Manda Festival)

  • वर्षा और गाँव की सुख शांति के लिए करते है खतरनाक अनुष्ठान

  • 7 दिनों तक रखते है उपवास

Manda Festival : झारखंड में भगवान शिव को खुश करने और वर्षा के लिए 7 दिनों तक मंडा पूजा का आयोजन होता है जिसमे भक्तगण अग्नि कुंड के ऊपर उल्टा लटकते है। यह मंदा पूजा झारखंडी संस्कृति का अभिन्न अंग है जिसे आदिवासी, आदिम जनजाति एवं कुड़मि जनजातियों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। झारखंड के बोकारो के सिंहपुर में श्रद्धालुओं का जनसैलाब भगवान शिव-पार्वती और बूढ़े बाबा की पूजा होने पहुँचता है।

पूजा के दौरान श्रद्धा और भक्ति का ऐसा नजारा दिखता है जिसमें बड़े को साथ बच्चे भी आग के दहकते अंगारों पर सिर के बल झूलते नजर आते हैं। उनका उद्देश्य भगवान शिव से अच्छी बारिश और गाँव की सुख शांति को बनाए रखना होता है। यह प्रथा प्राचीन काल से आदिवासियों और गैर-आदिवासियों द्वारा समान रूप से देखी जाती रही है।

क्या होता है इस पूजा के दौरान :

इस मंडा पूजा (Manda Festival) के दौरान, भगवान शिव के मंदिर के परिसर से जुलूस निकाले जाते हैं और अन्य गांवों में ले जाया जाता है। किसान शिव मंदिर के बाहर लाठियों के साथ मुख्य पुजारी से आशीर्वाद के लिए ज़मीन पर लेटे हुए होते है। किसान अच्छी खेती, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य के लिए सैकड़ों आदिवासी इस वार्षिक उत्सव में भाग लेते हैं।सैकड़ों आदिवासी प्रार्थना करते समय छड़ी लेकर चलते हैं और लाल-गर्म भाप वाले कोयले के बिस्तर पर नंगे पैर चलते हैं।

गाँव के मंदिर के सामने अग्नि शय्या (Fire Bed) की व्यवस्था की जाती है, जिसे मंदा स्थल के नाम से जाना जाता है। यहाँ भक्तगण गांव के तालाब या नदी में पवित्र डुबकी लगाने के बाद आग पर चलने की रस्म पूरी करते हैं। दर्शकों द्वारा आग पर चलने वालों का जोर-जोर से उत्साहवर्धन किया जाता है।

आश्चर्यजनक बात यह है कि आग पर चलने वाला कोई भी व्यक्ति जलने से घायल नहीं होता है क्योंकि उसकी रक्षा स्वयं माँ पारवती और भगवान शिव करते है। इसके बाद श्रद्धालुओं द्वारा एक और अहम् रस्म की जाती है जिसे धुंआसी रस्म कहा जाता है। इस रस्म के दौरान एक खंबे को जमीन पर गाड़ दिया जाता है और इसके आसपास जमीन पर आग लगा दी जाती है फिर भक्त का सिर नीचे की ओर करके लटका दिया जाता है और इस आग में झुलाया जाता है।

18वीं शताब्दी में शुरू हुई मंडा पूजा :

स्थानीय लोगों के अनुसार, सिंहपुर शिवालय में स्थापित शिवलिंग की उत्पत्ति-प्राप्ति 18वीं सदी में सिंहपुर के एक महतो परिवार में दही की हांडी में हुई थी। घर की महिलाएं इसे साधारण पत्थर अथवा किसी की शरारत समझकर दही की हांडी से बाहर निकाल देती थी और अगले दिन वह दोबारा उसी हांडी में मिलता था। इसके कुछ दिन बाद नुना ओझा नामक पुजारी ने इसकी पहचान शिवलिंग के रूप में की और खैराचातर-सिंहपुर के तत्कालीन राजा बाबू जगन्नाथ सिंहदेव ने ग्रामीणों के आग्रह पर गांव में शिवलिंग की स्थापना की।शिवलिंग की स्थापना के अलावा 18वीं सदी में ही मंडा पूजा (Manda Festival) शुरू कराने में भी जगन्नाथ सिंहदेव की अहम भूमिका थी। आज भी उनके वंशज इस पर्व के कई रस्मों से जुड़े हुए हैं।

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