क्या एक भाषा की संकल्पना भारत की विविधता पर सीधा हमला नहीं है?

जिस देश की मुद्रा पर 10 भाषाओं में उसकी कीमत अंकित हो, जहां के संविधान की 8वीं अनुसूची में 22 भाषाओं को जगह दी गई हो; वहां एक देश, एक भाषा की संकल्पना करना क्या इसकी विविधता पर सीधा हमला नहीं है?
भारत की मुद्रा पर 10 भाषाओं में उसकी कीमत अंकित है।
भारत की मुद्रा पर 10 भाषाओं में उसकी कीमत अंकित है।प्रज्ञा भारती
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राज एक्सप्रेस। 14 सितंबर 2019 को भारत ने 66वां हिन्दी दिवस मनाया। हिन्दी दिवस हिन्दी भाषा के सम्मान और प्रोत्साहन के लिए मनाया जाता है। शनिवार सुबह तात्कालिक गृहमंत्री अमित शाह के ट्वीट ने एक बहस को जन्म दिया। 'हिन्दी दिवस समारोह-2019' को संबोधित करते हुए गृहमंत्री ने कहा कि 'भारत विभिन्न भाषाओं का देश है और हर भाषा का अपना महत्व है परन्तु पूरे देश की एक भाषा होना अत्यंत आवश्यक है जो विश्व में भारत की पहचान बने। आज देश को एकता की डोर में बाँधने का काम अगर कोई एक भाषा कर सकती है तो वो सर्वाधिक बोले जाने वाली हिंदी भाषा ही है।'

गृहमंत्री ने देशवासियों को हिन्दी दिवस की बधाई देते हुए ट्वीट भी किया।

"आज हिंदी दिवस के अवसर पर मैं देश के सभी नागरिकों से अपील करता हूँ कि हम अपनी-अपनी मातृभाषा के प्रयोग को बढ़ाएं और साथ में हिंदी भाषा का प्रयोग कर पूज्य बापू और लौह पुरूष सरदार पटेल के स्वप्न को साकार करने में योगदान दें। हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।"

अमित शाह, गृहमंत्री (भारत सरकार)

गृहमंत्री के इस ट्वीट के बाद दक्षिण भारतीय राज्यों में इसके विरोध का स्वर प्रखर हुआ और ट्विटर पर #StopHindiImposition हैशटैग वायरल होने लगा। डीएमके प्रमुख एम. के. स्टैलिन ने गृहमंत्री से बयान वापस लेने की मांग की।

"हम हिन्दी को जबरदस्ती थोपने का लगातार विरोध कर रहे हैं। अमित शाह द्वारा की गई टिप्पणी ने हमें झटका दिया है, यह देश की एकता को प्रभावित करेगा। हम मांग करते हैं कि वह अपना बयान वापस लें।"

एम. के. स्टैलिन, डीएमके प्रमुख

वहीं पुडुचेरी के मुख्यमंत्री वी. नारायणस्वामी ने कहा कि हमारे देश में एक भाषा की कोई आवश्यकता नहीं है।

"केवल हिन्दी भाषा को बढ़ावा हमारे देश को एक साथ नहीं रख सकता। हमें सभी धर्मों, संस्कृतियों और भाषाओं का सम्मान करना होगा। यही भारतीय राजनीति का मूल है।"

"मुझे लगता है कि गृहमंत्री को अपने बयान पर विचार करेंगे क्योंकि इससे तमिलनाडू के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंची है। साथ ही तमिल लोगों में इसका काफी विरोध है। मैं उम्मीद करता हूं और ये विश्वास भी कि गृहमंत्री दक्षिण भारतीय लोगों की भावनाओं को समझेंगे।"

वी. नारायणस्वामी, मुख्यमंत्री (पुडुचेरी)

एआईएमआईएम से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी गृहमंत्री के बयान पर आपत्ति दर्ज कराई है।

"हिन्दी सभी भारतीयों की मातृभाषा नहीं है। क्या आप सभी मातृभाषाओं की विविधता और सुंदरता को इसी तरह प्रोत्साहित करेंगे? आर्टिकल 29 सभी भारतीयों को अलग भाषा, लिपि और संस्कृति का पालन करने की छूट देता है।"

असदुद्दीन ओवैसी

कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एच. डी. कुमारस्वामी ने भी गृहमंत्री की बात पर आपत्ति जाहिर की।

"आज केन्द्र सरकार हिन्दी दिवस मना रही है, कन्नड़ दिवस कब मनाया जाएगा?"

एच. डी. कुमारस्वामी, पूर्व मुख्यमंत्री (कर्नाटक)

वहीं दो दिन बाद 16 सितंबर को अभिनेता से राजनेता बने कमल हासन ने अपने ट्विटर अकाउंट से एक वीडियो जारी करते हुए गृहमंत्री अमित शाह के दिए बयान का विरोध किया।

"भारत जब एक गणतंत्र बना था तो हमने 'अनेकता में एकता का वादा किया था। कोई शाह, सुल्तान इसे तोड़ नहीं सकते। हम सभी भाषाओं का सम्मान करते हैं पर हमारी मातृभाषा हमेशा तमिल रहेगी। जल्लीकट्टू को लेकर हमने सिर्फ आंदोलन किया था लेकिन हमारी भाषा के लिए लड़ाई काफी व्यापक होगी। भारत और तमिलनाडु को इस लड़ाई की ज़रूरत नहीं है। अधिकतर भारत राष्ट्रगान को बंगाली भाषा में गर्व के साथ गाता है और आगे भी गाता रहेगा। राष्ट्रगान लिखने वाले लेखक ने इस गान में भारत की सभी भाषाओं और संस्कृतियों को बराबर सम्मान दिया है इसलिए सभी ने इसे मन से अपनाया। एक संयुक्त राष्ट्र को अलग होने पर मजबूर मत करिए।"

कमल हासन, अध्यक्ष (मक्कल निधि मय्यम)

जिस देश की मुद्रा पर 10 भाषाओं में उसकी कीमत अंकित हो, जहां के संविधान की 8वीं अनुसूची में 22 भाषाओं को जगह दी गई हो, जहां 19,500 से भी ज़्यादा बोलियों का लोग प्रयोग करते हों, जहां कई राज्यों का विभाजन ही केवल भाषा के आधार पर किया गया हो, वहां एक देश, एक भाषा की संकल्पना करना क्या इसकी विविधता पर सीधा हमला नहीं है?

  • भारत में भाषाई अस्मिता की लड़ाई-

भारत में भाषा का इतिहास बहुत पुराना है। यहां भारतीय-आर्य और द्रविड़ भाषाएं मुख्यतः पाई जाती हैं। इनके साथ ही तिब्बती, बर्मन और कुछ और भाषाओं का अस्तित्व भी मिलता है।

साल 1937 में पहली बार दक्षिण भारत में हिन्दी को विद्यालयीन शिक्षा में अनिवार्य करने का विरोध शुरू हुआ था। साल 1950 से लागू हुए संविधान में आधिकारिक भाषा के तौर पर हिन्दी और अंग्रेज़ी को अपनाया गया। इसमें अंग्रेज़ी को केवल 15 वर्षों के लिए आधिकारिक भाषा का दर्ज़ा दिया गया था लेकिन कई गैर-हिन्दी भाषी प्रदेशों ने इसका विरोध किया और साल 1965 के बाद हिन्दी के साथ-साथ अंग्रेज़ी को भी आधिकारिक भाषा बने रह दिए जाने पर ज़ोर दिया। केवल हिन्दी भाषा को आधिकारिक भाषा बनाए जाने के विरोध में दक्षिण भारत में कई विरोध प्रदर्शन हुए। इस कारण कई दंगे भी हुए।

साल 1948 में भारत सरकार ने इलाहबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश एस. के. धर की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया। जिसे भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन पर विचार करना था। आयोग ने भाषा की अपेक्षा प्रशासनिक सहूलियत के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन पर ज़ोर दिया।

इसके बाद दिसंबर 1948 में कांग्रेस ने पंडित जवाहरलाल नेहरू, वल्लभ भाई पटेल और पट्टाभी सितारम्मैया की अध्यक्षता में एक और आयोग का गठन किया। अप्रैल 1949 को आयोग ने अपनी रिपोर्ट जमा करते हुए भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का समर्थन नहीं किया। हालांकि, उन्होंने कहा कि लोगों की मांग पर इस विषय पर दोबारा विचार किया जा सकता है।

साल 1953 में भाषा के आधार पर बनने वाला आंध्रप्रदेश पहला राज्य बना। यह तेलुगू भाषी लोगों के आंदोलन के बाद हुआ। इस घटना के बाद देश में भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग ने एक बार फिर ज़ोर पकड़ा। दिसंबर 1953 में तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इस विषय पर विचार करने के लिए फज़ल अली की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया। इस आयोग में के. एम. पनिक्कर और एच. एन. कुंजरू भी शामिल थे।

आयोग ने भाषा के आधार पर देश को 16 राज्यों और तीन केन्द्र शासित प्रदेशों में बांटने का सुझाव दिया। केन्द्र सरकार ने पूरी तरह तो सुझावों को नहीं माना पर साल 1956 में भाषा के आधार पर 14 राज्यों और 6 केन्द्रशासित प्रदेशों का निर्माण हुआ।

ये राज्य थे-

आंध्रप्रदेश, असम, बिहार, बॉम्बे, जम्मू और कश्मीर, केरल, मध्यप्रदेश, मद्रास, मैसूर, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल। वहीं छह केन्द्रशासित थे- अंडमान और निकोबार आईलैंड, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, लक्षदीप, मिनिकॉय और अमिनदिवी आईलैंड, मणिपुर और त्रिपुरा।

साल 1960 में बॉम्बे में दंगे होना शुरू हुए और भाषा के आधार पर महाराष्ट्र और गुजरात राज्य को अलग किया गया। वहीं साल 1963 में नागाओं को अलग पहचान देने के लिए नागालैंड का निर्माण हुआ।

इस ही साल तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने आधिकारिक भाषा अधिनियम (Official Language Act) जारी किया ताकि 1965 के बाद भी अंग्रेज़ी भाषा का आधिकारिक भाषा के तौर पर इस्तेमाल जारी रहे। प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने ये आश्वासन दिया कि जब गैर-हिन्दी भाषी राज्य चाहेंगे तब तक अंग्रेज़ी भारत की आधिकारिक भाषा रहेगी। इसके बाद यह विवाद थमा।

साल 1966 में पंजाब और हरियाणा भी भाषाई आधार पर अलग हुए और पहाड़ी क्षेत्रों को हिमाचल प्रदेश में शामिल कर दिया गया। हालांकि, दोनों राज्यों की राजधानी एक ही रखी गई। ये चंडीगढ़ है, जो कि एक केन्द्रशासित प्रदेश भी है और हरियाणा व पंजाब की राजधानी भी।

1948 से 1961 के बीच चले कई विवादों और समितियों के गठन के बाद भारत में तीन भाषाई सिस्टम (Three Language Formula) को अपनाया गया। इसके तहत सरकारी विद्यालयों में हिन्दी, अंग्रेज़ी और स्थानीय भाषा को पढ़ाना शुरू किया गया।

साल 2017 में केन्द्र सरकार ने सभी सीबीएसई विद्यालयों में दसवीं कक्षा तक हिन्दी को अनिवार्य करने का आदेश जारी किया। जिसके बाद से भाषाई विवाद एक बार फिर जोर पकड़ने लगा। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने कक्षा 8 तक अनिवार्य रूप से हिन्दी पढ़ाने की इस अपील को यह कह कर खारिज कर दिया कि "गैर-हिन्दी भाषा के लोग ये पूछ सकते हैं कि उनकी भाषाओं को विद्यालयों में क्यों नहीं पढ़ाया जाता? सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए।"

इस विषय पर अंतिम फैसला आना बाकी है लेकिन पश्चिम बंगाल और केरल ने केन्द्र सरकार के विरोध में अपने-अपने राज्यों में बंगाली और मलयालम को अनिवार्य कर दिया है।

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