प्राकृतिक कृषि का रोल मॉडल बनेगा गुजरात : आचार्य देवव्रत
हिम्मतनगर, गुजरात। राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने गुरुवार को यहां कहा कि गुजरात राज्य भारत में प्राकृतिक कृषि का रोल मॉडल बनेगा। राज्यपाल देवव्रत ने साबरकांठा में किसानों के साथ प्राकृतिक कृषि के संबंध में गुरुवार को कहा कि पशुधन और खेती एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों संकलित होंगे तो ही किसानों को उचित आय मिलेगी। धरतीमाता को बचाने के लिए रासायनिक कृषि पद्धति से होने वाली खेती छोड़नी पड़ेगी। रासायनिक कृषि पद्धति से जमीन में ऑर्गेनिक कार्बन में कमी आती है। राज्य में प्राकृतिक कृषि का दायरा बढ़ाने के लिए आगामी एक वर्ष में राज्य की तमाम तहसीलों में प्रति 10 गांव एक कलस्टर बनाया जाएगा। राज्यभर में 1500 मास्टर ट्रेनर तैयार किए जाएंगे। प्राकृतिक कृषि क्षेत्र में गुजरात समग्र देश का रोलमॉडल बनेगा।
साबरकांठा जिले में स्थित साबर डेयरी में प्राकृतिक कृषि परिसंवाद का आयोजन किया गया, जिसमें राज्यपाल ने किसानों के साथ वार्तालाप किया। उन्होंने जिले के किसानों के साथ वार्तालाप करते हुए किसानों से उनके अनुभवों की जानकारी हासिल की तथा प्राकृतिक कृषि करने वाले किसानों के मंतव्य सुने। उन्होंने किसानों को मार्गदर्शन देते हुए कहा कि पशुधन और खेती एक दूसरे के पूरक हैं। यह दोनों संकलित होंगे तो ही किसानों को उचित आय मिलेगी। अरवल्ली और साबरकांठा के किसान पशुपालन क्षेत्र में दक्ष हैं। गुजरात सरकार पशुधन को बचाने के लिए कार्य कर रही है। पशु को लाभकारी बनाकर किसान लाभ हासिल कर सकते हैं। पशुओं की प्रजाति सुधारकर उसको ज्यादा से ज्यादा लाभकारी बनाया जा सकता है। उन्होंने किसानों को पशुपालन के संबंध में भी मार्गदर्शन दिया।
उन्होंने कहा कि रासायनिक खेती से जमीन की उत्पादकता घटी है। इतना ही नहीं उसमें से उत्पन्न होने वाले धान भी जहरयुक्त बने हैं। जिसका प्रतिकूल असर नागरिकों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है और समाज में हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारियों का प्रमाण बढ़ रहा है। मनुष्य के साथ साथ पशुओं में भी कैंसर जैसे रोग दिखाई दे रहे हैं। बेमौसम बरसात और ग्लोबल वार्मिंग का कारण भी रासायनिक खाद है। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के खिलाफ भारतवर्ष की जमीन नागरिक नागरिकों का स्वास्थ्य, पानी, पर्यावरण और किसानों को प्राकृतिक कृषि बचा सकती है और प्राकृतिक कृषि धार्मिक भाव नहीं बल्कि शुद्ध विज्ञान है।
राज्यपाल ने कहा कि रासायनिक कृषि पद्धति से जमीन के ऑर्गेनिक कार्बन में कमी आती है। रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं के अति उपयोग के कारण जमीन अनुपजाऊ बन रही है। रासायनिक खेती से जमीन की उर्वरता घटी है। इतना ही नहीं, इसमें से उत्पन्न होने वाला धान भी जहरयुक्त बना है। उन्होंने किसानों को ऑर्गेनिक जैविक खेती और प्राकृतिक खेती के बीच का अंतर समझाया। प्राकृतिक खेती पद्धति में जीवामृत और घन जीवामृत द्वारा जमीन में जीवाणु केंचुए और मित्र जीव बड़ी संख्या में दिखाई पड़ते हैं। इसके कारण जमीन के ऑर्गेनिक कार्बन में बढ़ोतरी होती है तथा जमीन उत्पादक और उर्वर बनती है, उपजाऊ बनती है।
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