कांग्रेस नेता आजाद ने कहा कि किसानों की मांग को सरकार प्रतिष्ठा का सवाल ना बनाए और तीनों कानून वापस ले। आजाद ने इस दौरान 1900 से लेकर 1988 तक के किसान आंदोलनों का उदाहरण देकर सरकार पर तंज भी कसा और कहा कि सरकार की किसानों से कैसी दुश्मनी है। आजाद ने चंपारण और गुजरात के खेड़ा सत्याग्रह का जिक्र करते हुए कहा कि अंग्रेजी शासन ने भी किसानों के आंदोलन पर कानून वापस लिए थे।
गुलाम नबी आजाद ने अक्टूबर 1988 में कांग्रेस पार्टी की एक रैली का स्थान बदलने के उस मामले का भी जिक्र किया जिसमें किसान नेता राकेश टिकैत के पिता महेंद्र सिंह टिकैत कांग्रेस की रैली से 2 दिन पहले ही बोट क्लब पर 50 हज़ार किसानों के साथ आकर धरने पर बैठ गए थे। उन्होंने आगे बताया कि कांग्रेस ने रैली बोट क्लब के बजाय लाल किले पर की अगर टकराव होता तो कितना नुकसान होता।
अब किसान आंदोलन में समस्त विपक्षी दल किसानों के समर्थन में उतर आए हैं और लगातार सरकार से यह मांग कर रहे हैं कि कृषि कानूनों को वापस लिया जाए एक तरफ दिल्ली में सड़क पर किसानों का धरना प्रदर्शन जारी है तो दूसरी ओर संसद में भी लगातार विपक्षी दलों के द्वारा कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पुरजोर तरीके से उठाई जा रही है।
बता दें कि यह पहला मौका है जब मोदी सरकार अपनी किसी फैसले को लेकर बैकफुट में नजर आई है। केंद्र सरकार किसानों को प्रस्ताव दे चुकी है की स्थाई रूप से तो नहीं पर अस्थाई रूप से इन बिलों पर रोक लगा दी जाएगी पर किसानों का कहना है कि स्थाई रूप से बिलों को वापस लिया जाए। किसानों की प्रमुख मांग यह भी है कि फसलों पर एमएसपी को कानूनी जामा पहनाया जाए।
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