हाइलाइट्स
ऑनलाइन पढ़ाई से परेशान?
क्या हैं फायदे/बाधा/नुकसान?
कोरोना से बदल रही कहावत!
“बिन इंटरनेट सब ज्ञान सून”
राज एक्सप्रेस। राइटिंग बोर्ड अच्छे से दिखाएं, स्क्रीन पर साफ नहीं दिख रहा, प्लीज़ फिर से बोलें आपका बताया मुझे सुनाई नहीं दिया और हां विनीत आपसे विनती है कि अपना स्पीकर बंद करो पूरी क्लास डिस्टर्ब हो रही है। कोविड-19 जनित लॉकडाउन के कारण लगभग पहली बार बड़े पैमाने पर चलन में शुमार हो रही ऑनलाइन स्टडी के कारण यह जुमले अब घर-घर बोले-सुने जा रहे हैं।
टिक-टॉक, यूट्यूब वीडियोज़ और वीडियो गेम्स के अलावा पहली बार देश भारत में मोबाइल, कम्प्यूटर डिवाइसेस का सदुपयोग होता नजर आ रहा है। लंबे लॉकडाउन के कारण पिछला शैक्षणिक सत्र पूरा नहीं हो पाया है जबकि आगामी प्रभावित होना तय है। ऐसे में कोरोना वायरस संक्रमण काल में ढाल बने ऑन लाइन स्टडी विकल्प से बच्चे-शिक्षक-परिजन सब ‘एक साथ-एक मंच’ पर शामिल हो रहे हैं।
वक्त तो लगता है...
अब चूंकि ऑन लाइन पढ़ाई कई पैरेंट्स-शिक्षकों के लिये पहला अनुभव है तो परेशानियां भी लाजिमी हैं। वाट्सएप जैसे सोशल मीडिया अड्डे पर बतियाने में ट्रेंड हो चुके अधिकांश भारतीय यूज़र्स के लिए Google Duo, Apple का फेसटाइम, हाउसपार्टी, Skype, Facebook और जूम अभी भी नई कहानी है। ऐसे में इन यूटिलिटीज का उपयोग करने में कम उम्र के स्टूडेंट्स, कम टेक्नीक फ्रेंडली पैरेंट्स और कई टीचर्स को तक शुरुआत में दिक्कत हो सकती है।
स्पीड, तादात्म्य और एकाग्रता
बीके बिरला कॉलेज के एडमिनिस्ट्रेटर भालचंद्र जोशी बताते हैं कि ऑन लाइन स्टडी कम उम्र के उन स्टूडेंट्स के लिए जरूर कुछ परेशानी का सबब है जो पीसी, मोबाइल आदि ऑपरेट करने में पारंगत नहीं हैं। साथ ही उनका मानना है कि माध्यमिक कक्षाओं के बच्चे ज्यादा टेक्नीक फ्रेंडली हैं।
जब कक्षा में पढ़ाते हैं तो स्टूडेंट्स का पूरा मनोभाव सामने होता है। लेकिन ऑनलाइन स्टडी में अभी ऐसा नहीं है। कई टूल्स पर इंटरनेट स्पीड कम होने से स्टूडेंट्स तक कम्युनिकेट करने में परेशानी हो सकती है। हालांकि जिनको सीखने की चाह है उनको कोई बाधा रोक नहीं सकती। दे आर लर्निंग विथ ग्रेट इंथूसियास़म
भालचंद्र जोशी, एडमिनिस्ट्रेटर, बीके बिरला कॉलेज कल्याण, महाराष्ट्र
तकनीकी बाधाएं -
तकनीक के पहलू पर एडमिन जोशी बताते हैं कि भारत में इंटरनेट की 4जी स्पीड पर निर्भरता है। ऐसे में कम्युनिकेशन के दौरान आवाज भी परेशान कर सकती है। साथ ही इंटरनेट गति नियंत्रित होने के साथ-साथ कवरेज बाधा की स्थिति में टू-वे कम्युनिकेशन बहुधा वन वे होकर ही रह जाता है। मतलब इस स्थिति में जिसको बोलना है तो वही कैमरा चालू रखे बाकी कैमरा बंद कर दर्शक दीर्घा में जिज्ञासा का समाधान करें। ऐसे में ग्रुप कम्युनिकेशन केवल नाम का रह जाता है।
डाटा का टोटा -
“आईटी के इंचार्ज रहे एडमिन जोशी ऑनलाइन स्टडी के फायदों से भी खासे आशान्वित हैं। उपयोगिता गिनाते हुए वे कहते हैं रिकॉर्डेड लेक्चर्स को फिर से ऑन लाइन देखा सुना जा सकता है। टीचर्स प्रजेंटेशन तैयार करके ऑनलाइन मुखातिब होते हैं, यही इस ऑनलाइन पढ़ाई की खासियत है।
कुछ अहम बदलावों के साथ यह ज्यादा अच्छा है। हालांकि इसमें क्वेश्चन-आंसर सेशन जरा मुश्किल है। स्टूडेंट्स के लिए यह स्वर्णिम काल है।
भालचंद्र जोशी, एडमिनिस्ट्रेटर, बीके बिरला कॉलेज कल्याण, महाराष्ट्र
अनुशासन आवश्यक –
महाराष्ट्र की राजधानी और इंडिया के इकोनॉमिक कैपिटल मुंबई के उपनगरीय क्षेत्र कल्याण स्थित केएम जूनियर कॉलेज के डॉक्टर अमित सिंह ऑनलाइन शिक्षा पद्धति को बेहतर विकल्प जबकि नियमित स्कूल शिक्षा को अनिवार्य मानते हैं।
बतौर तर्क वे कहते हैं स्कूल कक्षा शिक्षण प्रणाली में स्टूडेंट्स से सामूहिक अध्ययन के दौरान उनके आचरण एवं ज्ञान की ग्राह्य क्षमता के साथ लगन की सतत निगरानी की जा सकती है ऐसे में पढ़ाई में कमजोर विद्यार्थियों को पढ़ाने का अलग प्लान बनाया जा सकता है।
इंटरनेट की सीमित क्षमता के कारण यह पता लगाना थोड़ा कठिन है कि स्टूडेंट कहीं आराम के मूड में तो नहीं। साथ ही ऑन लाइन स्टडी में यदि समूह में कम लोग हैं तो सवाल-जवाब में आसानी होती है जबकि ज्यादा मैंबर्स के लॉगिन करने पर तकनीकी बाधा पेश आ सकती है।
ट्रैकिंग प्रॉब्लम -
“स्ट्रीमिंग मोड में ट्रैक कर पाना मुश्किल है कि स्टूडेंट पढ़ाई या आराम दोनों में से किस मूड में है! कहना गलत नहीं होगा कि कई बार स्टूडेंट ऑनलाइन क्लास को नियंत्रित कर रहा होता है। चेट बॉक्स पर लिखकर सवाल पूछने के मामले में छोटे बच्चों को समस्या पेश आती है। छोटे बच्चों की क्लास में टीचर राउंड लगाकर स्टूडेंट की स्टडी ग्रोथ चेक कर सकते हैं। वनवे में फिलहाल यह असुविधा है।”
डॉ. अमित सिंह, केएम अग्रवाल जूनियर कॉलेज, कल्याण, महाराष्ट्र
फंडे अपने-अपने -
मध्यप्रदेश में जबलपुर के प्राइवेट स्कूल में शिक्षक एवं एकेडमी संचालक पंकज चौबे बताते हैं कि एकाएक घर पर रहने के हालात उपजने से ऑनलाइन स्टडी के लिए जरूरी साजो-सामग्री जुटाने में थोड़ी असुविधा हुई। मोबाइल कैमरा ऑपरेशन और पढ़ाने संबंधी दोनों टास्क एक साथ आने से शुरुआत में कुछ परेशानी हुई लेकिन अब सब पटरी पर आ गया है। स्टूडेंट्स भी मजे के साथ घर बैठे पढ़ाई संबंधी जिज्ञासा का आसान समाधान कर रहे हैं।
चौबे सर कहते हैं जूम पर ज्यादा लोगों के जुड़ने का फीचर ऑनलाइन ट्यूशन में कारगर साबित हो रहा है। हालांकि इसकी भी अपनी सीमाएं हैं जैसे कि “डाउट हो तो अनम्यूट करो नहीं तो म्यूट रखो, वीडियो भी बंद रखो, सेंड ऑप्शन पर नजर रखें” ऐसी ही कुछ टिप्स हैं जिन पर ध्यान देने की मैं अपने स्टूडेंट्स को समय-समय पर ताकीद देता रहता हूं।
ऑनलाइन मैथड में काफी मटेरियल मिल जाता है, लिंकिंग से इसे स्टूडेंट्स संग शेयर करने में भी आसानी होती है। इस वजह से कठिन सवालों की आसान व्याख्या संभव है। लेकिन यह भी सच है कि इंडियन कल्चर कहता है कि शिक्षक और स्टूडेंट्स का आमना-सामना जरूरी है।
पंकज चौबे, ब्रिलियंट एकेडमी, मदन-महल, जबलपुर, मध्य प्रदेश
क्या है हल?-
जैसा की टीचिंग जगत से जुड़े शिक्षकों से चर्चा में निकलकर सामने आया है कि ऑन लाइन स्टडी में सबसे बड़ा कोई कारक है तो वो है इंटरनेट। मतलब इंटरनेट किसी चके (पहिए) की वो हवा है जिसके कम-ज्यादा होने से गाड़ी की रफ्तार-सफर का आनंद तय होता है।
साथ ही गाड़ी मतलब मोबाइल, डेस्कटॉप आदि में ऊल-जुलूल या गैर जरूरी आइटम्स का जमावड़ा भी बेवजह का बोझ बढ़ाने के लिए काफी है। अमूमन एक घंटे की ऑन लाइन स्टडी में एक अनुमान के तौर पर कम से कम 500 एमबी डाटा लग सकता है। सवाल-जबाव के दौरान समय का बढ़ना लाजिमी है ऐसे में डेटा लिमिट को भी ध्यान रखना जरूरी होगा।
कई बार डेस्कटॉप या मोबाइल पर चल रहे बैकग्राउंड फीचर्स/एप्लीकेशंस के कारण भी इंटरनेट गति और मात्रा प्रभावित होती है। ऐसे में जब ऑनलाइन कामकाज किया जा रहा हो तो इन गैरजरूरी बैकग्राउंड एप्लीकेशन और नोटिफिकेशन अलर्ट्स को खास तौर पर बंद कर दें।
मंगेश जनार्दन धानोरकर, कंप्यूटर इंजीनियर, मध्य प्रदेश
ऑन लाइन स्टडी के इन फंडों को अपना कर आप भी खुद को कहने से रोक नहीं सकेंगे; “अरे हमारा रिंकू तो ऑन लाइन स्टडी फटाफट निपटा लेता है।” और हां सरकार को स्टूडेंट्स हित में मुफ्त या सरकारी दर पर सस्ते डाटा की योजना पर विचार करना चाहिए, क्योंकि अब देश में आटा के साथ डाटा भी आवश्यकता की जरूरत में शुमार किया जाने लगा है। कोरोना ने जैसे कहावत को भी बदल दिया है! अब तो कहना गलत भी नहीं होगा “बिन इंटरनेट सब ज्ञान सून!”
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