राज एक्सप्रेस। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर अहमदाबाद में आयोजित स्वच्छ भारत दिवस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए ग्रामीण भारत को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया था।
'आज ग्रामीण भारत ने, वहां के लोगों ने खुद को खुले में शौच से मुक्त किया है। स्वेच्छा से, स्वप्रेरणा से और जनभागीदारी से चल रहे, इस स्वच्छ भारत अभियान की शक्ति भी है और सफलता का स्त्रोत भी है। मैं हर देशवासी को, विशेषकर गांवों में रहने वालों को, हमारे सरपंचों को, तमाम स्वच्छाग्रहियों को बहुत-बहुत बधाई देता हूं। आज हमारी इस सफलता से दुनिया चकित है। आज पूरा विश्व हमें इसके लिए पुरस्कृत कर रहा है, सम्मान दे रहा है। 60 महीने में 60 करोड़ से अधिक आबादी को टॉयलेट की सुविधा देना, 11 करोड़ से ज्यादा शौचालयों का निर्माण, ये सुनकर विश्व अचंभित है।'
नरेंद्र मोदी (प्रधानमंत्री)
प्रधानमंत्री के इस भाषण के एक महीने बाद नेशनल स्टेटिस्टिकल ऑफिस(एनएसओ, NSO) ने स्वच्छता संबंधी एक रिपोर्ट जारी की। यह सर्वे साल 2018 जनवरी से दिसंबर माह के बीच किया गया है। रिपोर्ट साल 2018 में गांवों और शहरों की स्थिति का विश्लेषण है।
केंद्र सरकार इस साल 2 अक्टूबर को जब दावा कर रही थी कि, देश के 95% ग्रामीण परिवारों के लिए शौचलयों का निर्माण कर दिया गया है। तब हकीकत कुछ और थी।
एन.एस.ओ. के सर्वे के अनुसार सिर्फ 71% ग्रामीण परिवारों के लिए शौचालय सुविधा उपलब्ध थी। मतलब 95% वाला सरकार का दावा फेल है।
खुले में शौच मुक्त महानगरों की हकीकत
2017 में गुजरात को पहला ऐसा राज्य का दर्जा मिला जहाँ 100% ग्रामीणों ने खुले में शौच करना छोड़ दिया। NSO की रिपोर्ट के अनुसार जिस साल यह घोषणा हुई थी उसी साल गुजरात में एक-चौथाई ग्रामीण परिवारों के पास शौचालय की सुविधा नहीं थी, लोग खुले में शौच करते थे।
2 अक्टूबर 2018 में कई महानगरों को 100% खुले में शौच से मुक्त होने की घोषणा की गई थी। आंध्रप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, झारखंड, कर्नाटक, मध्यप्रदेश और तमिलनाडु को इस श्रेणी में रखा गया था।
जबकि हकीकत ये है कि कर्नाटक 30%, मध्यप्रदेश 29%, महाराष्ट्र 22%, तमिलनाडु 37% और राजस्थान में 34% परिवारों को शौचालय सुविधा उपलब्ध नहीं थी।
स्वच्छता अभियान से पहले साल 2012 में हुए एनएसओ के सर्वे के अनुसार ही उत्तरप्रदेश और ओड़िसा के 75% और 81% ग्रामीण खुले में ही शौच करते थे।
2018 में हुए सर्वे के अनुसार दोनों ही राज्यों के आधे ग्रामीण परिवारों को शौचालय सुविधा उपलब्ध नहीं थी।
लेकिन पिछले साल 24 दिसम्बर को राज्यसभा में तात्कालिक पेयजल और स्वच्छता मंत्री रमेश चंदप्पा जिगाजिनगी ने बताया कि स्वच्छता अभियान के बाद उत्तरप्रदेश के गाँव के 100 प्रतिशत लोग शौचालयों का ही इस्तेमाल कर रहे हैं।
स्वच्छ भारत मिशन में बहुत से पहलुओं पर ध्यान दिया गया है। बात यहाँ टॉयलेट के उपयोग और निर्माण की हो रही है तो, यहाँ एक गौर फरमाने वाली बात सामने आई है। देश का 80 फीसदी ग्रामीण परिवार मानता है कि, स्वच्छता मिशन के तहत मिलने वाली सरकारी स्कीम का फायदा उन्हें नहीं मिला है। सिर्फ 17.4 प्रतिशत परिवार को ही इस स्कीम का फायदा मिल पाया है।
मंत्रालय का कहना है, यह सर्वे प्रशासनिक आंकड़े से भिन्न है। National Annual Rural Sanitation साल 2017-18 सर्वे का हवाला देते हुए बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में 93.4% लोग शौचालयों का उपयोग कर रहे हैं। वहीं साल 2012 में 39% गाँवों में सफाई रहती थी, जो जब 98% तक पहुँच चुकी है।
2012 के बाद से स्थिति में सुधार
2012 की तुलना में स्थिति में काफी सुधार हुआ है। स्वच्छ भारत अभियान से शहरों और गाँव के लोग स्वच्छता के प्रति जागरूक हुए हैं। साल 2012 में सिर्फ 40% ग्रामीण परिवार ही शौचालयों का इस्तेमाल कर पाते थे। स्वच्छता अभियान के कारण आज 71% परिवार लाभार्थी हैं।
जैसा कि प्रधानमंत्री कहते हैं कि. शौचालयों के निर्माण के अलावा ग्रामीणों को शौचालयों के इस्तेमाल करने की आदत में ढालना भी जरूरी है। इस सर्वे में पाया गया कि 95% ग्रामीण परिवार आज रोज़ाना तौर पर शौचालय का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। आदत में शुमार न होने के कारण सिर्फ 3.5 फीसदी लोग ऐसे हैं जो शौचालय होने के बाद भी इस्तेमाल नहीं करते। इस श्रेणी में वो लोग भी शामिल हैं जहाँ शौचालय के आसपास पानी की सुविधा उपलब्ध नहीं है।
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