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जब राज्यपाल सहमति रोक देते हैं तो विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजने का कोई सवाल नहीं उठता - सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। अटॉर्नी जनरल ने दलील दी कि यदि राज्यपाल अनुमति रोकते हैं तो विधानसभा कहेगी कि हमें सहमति रोकने की परवाह नहीं है, हम विधेयक को एक बार फिर पारित करेंगे।
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हाइलाइट्स

  • न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ में तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुनवाई।

  • पीठ ने अटर्नी जनरल से पूछा, राज्यपाल के पास सहमति को रोकने की स्वतंत्र शक्ति है?

नई दिल्ली। विधानसभा की ओर से भेजे गए विधेयक पर एक बार जब राज्यपाल सहमति नहीं देते तो बाद में यह नहीं कह सकते कि वह इसे राष्ट्रपति के पास भेज देंगे। एक बार जब राज्यपाल सहमति रोक देते हैं तो इसे राष्ट्रपति के पास भेजने का कोई सवाल ही नहीं उठता। यह टिप्पणी शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने तमिलनाडु सरकार की याचिका पर की है और स्पष्ट किया कि एक बार जब राज्यपाल सहमति रोक देते हैं तो वह इसे हमेशा के लिए रोककर विधेयक को खत्म नहीं कर सकते।

पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा कि, बहुत सारी चीजें हैं जिन्हें तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और वहां के राज्यपाल के बीच हल करना होगा। पीठ ने कहा, यदि राज्यपाल मुख्यमंत्री से बातचीत करते हैं और उनकी सहमति के लिए प्रस्तुत विधेयकों के निपटारे के संबंध में गतिरोध को हल करते हैं तो हम इसकी सराहना करेंगे। पीठ ने कहा, हम चाहते हैं कि राज्यपाल इस गतिरोध को दूर करें। हम इस तथ्य से अवगत हैं कि हम उच्च संवैधानिक पद के साथ काम कर रहे हैं...संविधान के अनुच्छेद 200 के मूल भाग के तहत राज्यपाल के पास तीन विकल्प हैं। वह विधेयक पर सहमति दे सकते हैं। सहमति रोक सकते है या वह को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित कर सकते है।'' पीठ ने कहा, एक बार जब राज्यपाल सहमति रोक देते हैं तो इसे राष्ट्रपति के पास भेजने का कोई सवाल ही नहीं उठता।

अटॉर्नी जनरल के अपनी ओर से यह कहने पर कि यह एक खुला प्रश्न है और इसकी जांच की जानी चाहिए, पीठ ने कहा, ''हमने वह कानून बनाया है। यह हमारे फैसले (पंजाब के राज्यपाल मामले में) द्वारा शासित है।'' पीठ ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति एक निर्वाचित पद रखता है इसलिए संविधान ने उसे अधिक व्यापक शक्तियाँ प्रदान की हैं। पीठ ने कहा, ''केंद्र सरकार के नामित व्यक्ति के रूप में राज्यपाल को अनुच्छेद 200 के मूल भाग में निर्दिष्ट तीन विकल्पों में से एक का उपयोग करना चाहिए।''

अटॉर्नी जनरल ने दलील दी कि यदि राज्यपाल अनुमति रोकते हैं तो विधानसभा कहेगी कि हमें सहमति रोकने की परवाह नहीं है, हम विधेयक को एक बार फिर पारित करेंगे। पीठ ने अटर्नी जनरल से पूछा, राज्यपाल के पास सहमति को रोकने की स्वतंत्र शक्ति है? पीठ कहा कि वह इस मसले पर अगले सप्ताह विचार करेगी। गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने 20 नवंबर को सवाल किया था कि जनवरी 2020 में सहमति के लिए प्रस्तुत विधेयकों पर निर्णय लेने में तमिलनाडु के राज्यपाल 3 साल तक क्या कर रहे थे।

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