दिल्ली मे सरकारी अधिकारियों को फ्लैटों से बेदखल करने बाउंसर भेजे
दिल्ली मे सरकारी अधिकारियों को फ्लैटों से बेदखल करने बाउंसर भेजे Social Media

दिल्ली मे सरकारी अधिकारियों को फ्लैटों से बेदखल करने बाउंसर भेजे

उच्चतम न्यायालय दिल्ली मे सरकारी अधिकारियों को किराए के फ्लैटों से बेदखल करने के लिए कथित तौर पर बाउंसरों को भेजे जाने तथा उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर 05 अप्रैल को सुनवाई करेगा।
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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय दिल्ली में सरकारी अधिकारियों को किराए के फ्लैटों से बेदखल करने के लिए कथित तौर पर बाउंसरों को भेजे जाने तथा उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर एक याचिका पर 05 अप्रैल को सुनवाई करेगा। मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमना ने दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली केंद्र सरकार की याचिका पर शीघ्र सुनवाई की गुहार स्वीकार करते हुए याचिका को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।

पीठ ने केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की उस दलील पर हैरानी व्यक्त की जिसमें उन्होंने कहा था कि दिल्ली के अति महत्वपूर्ण खान मार्केट इलाके सुजान सिंह पार्क स्थित निजी फ्लैटों से सरकारी अधिकारियों को खाली कराने के लिए बाउंसर भेजे जा रहे हैं। श्री मेहता ने बाउंसर का हवाला देते हुए इस मामले पर शीघ्र सुनवाई का अनुरोध किया था।

मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष श्री मेहता ने निजी मकान मालिकों की ओर इशारा करते हुए कहा, ''वे बेदखल करने के लिए बाउंसर भेज रहे हैं।'' पीठ ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, ''सरकारी अधिकारियों को बेदखल करने के लिए कोई बाउंसर कैसे भेज सकता है?'' इस पर श्री मेहता ने कहा, ''यह दुर्भाग्यपूर्ण है।''

केंद्र सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि उसने अतिरिक्त किराया नियंत्रण न्यायाधिकरण के निर्णय की पुष्टि करने वाली जनवरी 2020 के दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश की वैधता को चुनौती दी है। उच्च न्यायालय ने अपने इस आदेश में केंद्र को निर्देश दिया था कि वह प्रतिवादी सर शोभा सिंह एंड संस प्राइवेट लिमिटेड को बकाया किराए का भुगतान कर दे। सुजान सिंह पार्क के उत्तर और दक्षिण में स्थित आवासीय फ्लैटों को 1944 में तत्कालीन सरकार को रियायती दरों पर किराए पर दिए गए थे।

केंद्र सरकार का कहना है कि प्राधिकरण ने एक सितंबर, 2007 के अपने आदेश में गलती से यह माना कि विवादित संपत्ति दिल्ली किराया नियंत्रण अधिनियम (डीआरसीए) के प्रावधानों के तहत कवर की गई थी। उच्च न्यायालय ने हालाँकि 08 जनवरी, 2020 को अपने आदेश द्वारा उक्त निष्कर्ष की पुष्टि की। सरकार ने दावा किया कि 1989 तक किराए का भुगतान किया गया था, लेकिन बाद में प्रतिवादी द्वारा कई शर्तों के उल्लंघनों के कारण कई मुकदमे दायर किए गए।

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