Revised Criminal Law
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Criminal Law Revised Bills : 153 साल बाद राजद्रोह कानून में बदलाव, अब राजद्रोह की जगह देशद्रोह

Sedition Law Changes : इंग्लैंड में 17 वीं सदी में यह माना जाता था कि, सरकार और 'राज' के लिए केवल अच्छी बातों को ही प्रचारित किया जाना चाहिए।
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हाइलाइट्स :

  • पहले यह कानून इंग्लैंड में 17 वीं सदी में इसे प्रचलन में था।

  • जेम्स स्टीफन के द्वारा IPC को संशोधित कर धारा 124 को जोड़ा गया।

  • स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ राजद्रोह कानून का उपयोग किया गया।

राजएक्सप्रेस। भारत में कई सोशल एक्टिविस्ट राजद्रोह के कानून को काला कानून भी कहा करते थे। समय - समय पर इसे समाप्त करने की मांग भी उठती रही है। इस कानून को संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी के विरुद्ध देखा जाता था। इस कानून पर साल 2021 में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि, आजादी के 75 साल बाद भी ऐसे कानून की क्या प्रासंगिकता है जिसके तहत कभी महात्मा गाँधी और बाल गंगाधर तिलक को सजा सुनाई गई थी।

भारत में राजद्रोह कानून को सबसे पहले लॉर्ड मैकाले (Lord Macaulay) ने 1837 में लाया था। इसके पहले यह कानून इंग्लैंड में 17 वीं सदी में इसे प्रचलन में था। 17 वीं सदी में यह माना जाता था कि, सरकार और 'राज' के लिए केवल अच्छी बातों को ही प्रचारित किया जाना चाहिए क्योंकि निंदा सरकार या राजतंत्र के लिए हानिकारक हो सकती है। यह वह समय था जब सरकार या राजतंत्र के प्रति भक्ति को ही देश भक्ति माना जाता था।

भारत में राजद्रोह कानून पहली बार 1837 में लॉर्ड मैकाले के द्वारा लाया गया पर 1860 में लागू की गई आईपीसी में इसे शामिल नहीं किया गया। साल 1870 में सर जेम्स स्टीफन (Sir James Stephen) के द्वारा आईपीसी को संशोधित कर धारा 124 को जोड़ा गया। इस तरह भले ही मैकाले ने इसे भारत में यह पहली बार लाया हो लेकिन भारतीय दंड संहिता यानि आईपीसी में इसे सर स्टीफन द्वारा जोड़ा गया था। आजादी की लड़ाई में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी (Mahatma Gandhi) , बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak) समेत कई स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ इस धारा का उपयोग किया गया।

समय बदला, शासक बदले पर राजद्रोह कानून रहा बरकरार :

भारत, ब्रिटिश हुकूमत से साल 1947 में आजाद हो गया था। आजादी के बाद देश में संविधान के द्वारा नागरिकों को अभिव्यक्ति की आजादी समेत कई मौलिक अधिकार दिए गए लेकिन इसके साथ ही राजद्रोह के कानून को भी ज्यों का त्यों बरक़रार रखा गया। IPC धारा 124 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति बोलकर, लिखकर या सांकेतिक रूप से सरकार के खिलाफ असंतोष को व्यक्त करता है तो उसे राजद्रोह कानून के तहत उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। इस तरह यह कानून अभिव्यक्ति की आजादी को रोकने और अपने खिलाफ उठी अवाज को दबाने के लिए सरकार को विस्तृत अधिकार क्षेत्र देता है।

राजद्रोह की जगह देशद्रोह शब्द का प्रयोग:

बुधवार को गृह मंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) द्वारा इस कानून में संशोधन प्रस्तुत किया गया। अब से राजद्रोह की जगह देशद्रोह शब्द का प्रयोग किया जाएगा। इसके अलावा IPC के विपरीत भारतीय न्याय संहिता मे शासन की अवमानना की जगह, विध्वंसक, हिंसक तरीकों के प्रयोग की बात कही गई है। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि, अब सरकार के खिलाफ बयान को राजद्रोह नहीं समझा जाएगा लेकिन देश के खिलाफ किये गए कृत्यों के लिए सजा जरूर दी जाएगी।

आईपीसी 124 (C) में 'सरकार के खिलाफ की गई बात' शब्द का प्रयोग किया गया था । इसके विपरीत भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 में भारत की संप्रभुता, एकता, और अखंडता को नुकसान पहुंचाने वालों पर इस धारा का उपयोग होगा। आईपीसी 124 (C) में आशय या प्रयोजन की बात नहीं थी जबकि भारतीय न्याय संहिता में आशय और प्रायोजन के उद्देश्य की बात की गई है। शासन के विरुद्ध की गई बात को अब राजद्रोह नहीं माना जाएगा। शासन की अवमानना की जगह सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधि और अलगाववादी गतिविधि शब्द का उपयोग किया गया है।

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