हाइलाइट्स :
भारतीय संविधान की है कई मूलभूत विशेषता।
विश्व का सबसे वृहद संविधान है भारतीय संविधान।
संविधान क़ानून की किताब नहीं मूल्यों की जीवंत कथा।
राज एक्सप्रेस। 26 जनवरी साल 1950 को भारत में संविधान लागू हो गया था। इसके लागू होते ही देश एक लोकतांत्रिक गणराज्य बन गया। भारतीय संविधान की गिनती विश्व के सबसे वृहद संविधान में होती है। यह संविधान मात्र नियम या कानून की किताब नहीं बल्कि भारतीय मूल्यों की जीवंत कथा है। संविधान में भारतीय महापुरुषों के महान विचार और करोड़ों भारतीयों की आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए मौलिक अधिकार, मौलिक कर्तव्य और न्यायायिक व्यवस्था का उल्लेख है, लेकिन क्या देश को चलाने के लिए वाकई इतने वृहद और विस्तृत संविधान की आवश्यकता थी?
संविधान की आवश्यकता के बारे में जानने से पहले जानते हैं संविधान की कुछ ऐसी विशेषता जो बनाती है इसे विश्व का सबसे वृहद और विस्तृत संविधान।
सबसे बड़ा संविधान :
भारतीय संविधान की गिनती विश्व के सबसे बड़े यानी विस्तृत संविधान में की जाती है। इस संविधान में सरकार चलाने और देश की मौलिक व्यवस्था के बारे में बारीकी से उल्लेख किया गया है। शायद ही विश्व के किसी संविधान में इतनी बारीकी से शासन व्यवस्था या नियमों का उल्लेख हो जितना भारत के संविधान में है।
मौलिक अधिकार :
भारत की आजादी की लड़ाई के समय से ही देश में नागरिकों के मौलिक अधिकार दिए जाने पर चर्चा की जा रही थी। अलग - अलग समय पर देश के नेताओं ने मौलिक अधिकारों की वकालत की है। आजाद भारत के संविधान में प्रत्येक नागरिक को मौलिक अधिकार दिए गए हैं। इन मौलिक अधिकारों को संविधान की आत्मा भी कहा जाता है।
पंथनिरपेक्ष संविधान :
भारतीय संविधान की एक और विशेषता है और वो ये कि, यह एक पंथनिरपेक्ष राज्य (Secular) की स्थापना करता है। भारतीय संविधान किसी पंथ विशेष को बढ़ावा नहीं देता है।
संतुलित संविधान :
विश्व में संविधान को सबसे कठोर और सबसे लचीले संविधान के रूप में श्रेणीबद्ध किया जाता है लेकिन भारतीय संविधान के संतुलित संविधान है । संविधान में कुछ ऐसे प्रावधान भी है जिन्हे बदलना बहुत कठिन है लेकिन कुछ ऐसे प्रावधान भी है जिन्हे आवश्यकता के अनुरूप संशोधित किया जा सकता है।
इसके अलावा भी भारतीय संविधान की अनेकों विशेषता है। अब लौटते हैं मूल प्रश्न पर कि, क्यों देश चलाने के लिए संविधान की आवश्यकता होती है?
कल्पना करिए आप एक ऐसे समूह का हिस्सा है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति का धर्म, विश्वास, मान्यता, भाषा, गरीबी - अमीरी का स्तर सब कुछ भिन्न है। ऐसे में इस समूह के प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकता और आकांक्षा भी अलग होगी। अलग आवश्यकता और प्राथमिकता के चलते इस समूह के लक्ष्य भी अलग ही होंगे।
अलग प्राथमिकताओं के चलते इस समूह के लोगों में विवाद होने की संभावना होती है। विवाद और संघर्ष रोकने के लिए इस समूह के लोगों का किसी न किसी विषय में एकमत होना आवश्यक है। एक देश का संविधान ऐसे नियम और कानून प्रदान करता है जो बिना भेदभाव के प्रत्येक नागरिक पर लागू होते है और सभी इसका पालन करने के लिए सहमत होते हैं।
क्योंकि सभी नागरिकों के लिए संविधान एक समान व्यवस्था करता है और सभी इसे मानने के लिए प्रतिबद्ध हैं इसलिए इतनी विभिन्नता होने के बाद भी संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप विवादों का निपटारा शांति से किया जा सकता है। भारत का इतिहास ऐसे अनेकों उदाहरण से भरा हुआ है। जहां विवादों का निपटारा संविधान में लिखित प्रावधानों से संभव हुआ।
किसके बनाए नियम हों देश में लागू :
हर नागरिक की अपनी सोच और विचार होते हैं। इन्ही विचारों से प्रभावित होकर वह निर्णय लेता है। संभावना है कि, उसके बनाये गए नियम उसके लिए तो न्यायसंगत हो लेकिन दूसरों के लिए अन्यायपूर्ण। ऐसे में सवाल यह उठता है कि, किसके बनाए गए नियम देश में लागू हों। एक संविधान ही इस प्रश्न का उत्तर से सकता है। संविधान यह तय करता है कि, किसके बनाए गए नियम देश में लागू होंगे। भारतीय परिपेक्ष्य में संविधान के अनुसार संसद, विधानसभा द्वारा प्रक्रिया का पालन करते हुए बनाए गए कानून और नियम ही देश में लागू होते हैं।
कोई भी कानून - नियम हो सकते हैं लागू :
अब एक रोज आपको पता चलता है कि, सरकार ने एक विशेष समुदाय के लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता छीन ली है, अब से वे अपने धर्म का स्वतंत्र रूप से पालन नहीं कर पाएंगे। यही नहीं सरकार ने अखबारों और सोशल मीडिया पर भी सेंसरशिप लगा दी है। क्योंकि सरकार स्वतंत्र निर्णय ले सकती है सरकार कोई भी नियम बना सकती है लेकिन संविधान सरकार के मनमानी भरे इस रवैए पर रोक लगाने का काम भी करता है। देश में नागरिकों को संविधान कुछ मौलिक अधिकार देता है। ये अधिकार नागरिकों की सरकार के मनमानी पूर्ण रवैए के खिलाफ रक्षा करते हैं। क्योंकि सत्ता भ्रष्ट करती है संविधान ऐसे प्रावधान करता है जिससे सरकार व्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता को बहाल करते हुए लोकतांत्रिक तरीके से देश चलाए।
भविष्य के लिए देश के लक्ष्य :
जैसा कि पहले भी बताया गया है संविधान मात्र एक कानून की किताब नहीं है, यह एक जीवंत कथा है। यह न केवल भारत के वर्तमान को दिशा दिखाता है बल्कि भविष्य के लिए देश के लक्ष्यों को भी बताता है। भारतीय संविधान के डायरेक्टिव प्रिंसिपल ऑफ स्टेट पॉलिसी में सरकार को कुछ लक्ष्य और निर्देश दिए गए हैं। ये निर्देश वास्तव में भारत के लिए भविष्य का रोड मैप है जो बताते हैं कि हम भविष्य में क्या हासिल करना चाहते हैं।
मौलिक पहचान :
किसी देश का संविधान उस देश के लोगों की मौलिक पहचान को निर्धारित करता है। एक समाज या देश में लोगों की कई पहचान हो सकती है, एक संविधान इस सभी लोगों को एक मौलिक पहचान (Fundamental Identity) प्रदान करता है। जब सभी एक संविधान में लिखित नियमों और कानूनों को मानते है तो ये एकता की भावना भी पैदा करता है।
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