हाइलाइट्स :
गांधी की शव यात्रा में शामिल हुए थे 15 लाख लोग।
दिल्ली रेलवे स्टेशन वोटिंग रूम में हत्या की साजिश।
नाथूराम गोडसे ने बैरेटा पिस्तौल से चलाई थी गोलियां।
राज एक्सप्रेस। 30 जनवरी साल 1948 अल्बुकर्क रोड अब (30 जनवरी मार्ग), बिड़ला भवन पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा सर्वधर्म सभा का आयोजन किया जाना था। मोहन दास करमचंद गांधी सितम्बर, साल 1947 से ही सर्वधर्म सभा का आयोजन कर रहे थे। हर रोज होने वाली इस सभा में देश ही नहीं विदेशों से भी लोग आया करते थे। 30 जनवरी को भी बिड़ला भवन में महात्मा गांधी द्वारा आयोजित सर्वधर्म सभा में शामिल होने और उनसे मिलने कई लोग आए थे। गांधी से मिलने वालों में सरदार पटेल और नाथूराम गोडसे भी शामिल थे। जानते हैं 30 जनवरी को बापू, सरदार पटेल और गोडसे ने क्या - क्या किया।
30 जनवरी 1948 सुबह 3 :30 बजे
महात्मा गांधी हर रोज की तरह उस दिन भी सुबह 3:30 बजे उठ गए। इसके बाद उन्होंने सुबह की प्रार्थना की और दैनिक कार्य के बाद दोबारा आराम करने चले गए। उस रोज गांधी आभा से बांग्ला सीखा करते थे। आराम करके उठने के बाद उन्होंने हर रोज की तरह आभा से बांग्ला सीखी। इस तह दैनिक दिनचर्या चलती गई।
वहीं पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर इस कहानी के दूसरे पात्र अपना किरदार निभा रहे थे। 30 जनवरी को ठीक सुबह 7 बजे पुरानी दिल्ली रेल्वे स्टेशन के वेटिंग रूम में नारायण आप्टे और विष्णु करकरे पहुंचे। यहां वोटिंग रूम में जो व्यक्ति बैठा था वो इस पूरे प्रकरण में महत्वपूर्ण किरदार निभाने वाला था। नारायण आप्टे और विष्णु करकरे इस वोटिंग रूम में नाथूराम गोडसे से मिलने पहुंचे थे।
हत्या की साजिश :
पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के इस वेटिंग रूम में हत्या की साजिश रची जानी थी। नारायण आप्टे, विष्णु करकरे और नाथूराम गोडसे किसी और की नहीं बल्कि महात्मा गांधी की हत्या की साजिश रच रहे थे। नाथूराम गोडसे द्वारा महात्मा गांधी की हत्या की जानी थी यह बात तो पहले से ही तय थी लेकिन बहस इस बात पर थी कि, सर्वधर्म सभा में एंट्री कैसे लें?
काफी चर्चा के बाद नारायण आप्टे और विष्णु करकरे बाजार गए और नाथूराम गोडसे के लिए बुर्का लेकर आए। जब नाथूराम गोडसे ने उसे पहना तो काफी असहज हो गया। उसने अपने साथियों से कहा कि, इस लिबाज में तो मैं अपनी पिस्तौल ही नहीं पकड़ पाऊंगा और बुर्के में पकड़े जाने पर मेरी बदनामी होगी वो अलग।
इसके बाद तीनों में सहमती बनी और बुर्का पहन कर जाने के प्लान को ड्राप कर दिया गया। अब तय हुआ कि, सीधे साधे तरीके से ही सर्वधर्म सभा में एंट्री ली जाएगी। अब नारायण आप्टे और विष्णु करकरे दोबारा बाजार गए और नाथूराम गोडसे के लिए सामान्य कपड़े लेकर आ गए। नाथूराम गोडसे तैयार हुआ अपनी बैरेटा पिस्तौल में 7 गोलियां भर ली।
गांधी की हत्या के पहले नाथूराम ने की यह डिमांड :
इस हत्या की साजिश में शामिल हर किरदार को पता था जो वो कर रहे हैं उसका अंजाम उन्हें कहाँ लेकर जाएगा। इस पूरी साजिश को अंजाम तक पहुँचाने की जिम्मेदारी नाथूराम गोडसे की थी। हत्या के ठीक पहले नाथूराम गोडसे ने नारायण आप्टे से मूंगफली की डिमांड की। उसने कहा था कि, मेरा मन इस समय मूंगफली खाने का है। इसके बाद नारायण आप्टे ने आस - पास का पूरा बाजार खंगाल लिया मूंगफली कहीं नहीं मिली। आखिरकार दोबारा प्रयास करने पर नारायण आप्टे को मूंगफली मिल गई। मूंगफली खाने के बाद तीनों अपने उद्देश्य की ओर बढ़ गए।
अब दूसरी तरफ बिड़ला भवन में लोगों का ताता लगना शुरू हो गया था। कई कांग्रेस नेता महात्मा गांधी से मिलने पहुँचने लगे थे। करीब 4:30 बजे सरदार पटेल गांधी से मिलने पहुंचे। अब तक यहां नारायण आप्टे, विष्णु करकरे और नाथूराम गोडसे पहुंच गए थे। भीड़ में घुलमिलकर नाथूराम गोडसे अपने साथियों से अनजान बनकर खड़ा था।
सरदार पटेल और गांधी के बीच अंतिम चर्चा का विषय :
देश नया - नया आजाद हुआ था, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल के बीच कई मुद्दों पर असहमति रहा करती थी। दोनों नेताओं के बीच महात्मा गांधी ने पहले भी मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी उस दिन भी पटेल, नेहरू के साथ नीतियों पर असहमति की चर्चा करने गांधी के पास गए थे। महात्मा गांधी ने विषय की गंभीता को देखते हुए पटेल से गहन चर्चा की। दोनों चर्चा में इतने मग्न थे की समय का पता ही नहीं चला।
सभा में लेट पहुंचे थे गांधी :
गोडसे समेत उसके साथी दूर खड़े गांधी का इंतजार कर रहे थे लेकिन उस दिन वे सभा में कुछ मिनट की देरी से पहुंचे थे। आम तौर पर वे 5:10 बजे तक सभा में पहुंच जाया करते थे। पटेल से चर्चा के बाद गांधी 5:16 बजे मनु और आभा के साथ प्रार्थना के लिए बिड़ला भवन के चबूतरे पर पहुंचे। यहाँ चबूतरे की सीढ़ी पर गांधी आगे बढ़ ही रहे थे कि, नाथूराम गोडसे उनकी ओर बढ़ने लगा। पहले तो यह प्रतीत हुआ कि, वो आशीर्वाद लेने के लिए आगे बढ़ रहा है लेकिन कोई कुछ समझ पाता इसके पहले ही गोडसे ने आभा को धक्का दे दिया।
धक्का लगते ही आभा के हाथ में जो सामान था वो गिर गया और ठीक 5 :17 बजे तीन गोलियों की आवाज सुनाई दी। ये गोलियां गोडसे ने गांधी पर चलाई थी। एक गोली उनके सीने और दूसरी गोली उनके पेट पर लगी। गोली की आवाज सुनते ही चारों ओर लोगों में अफरा तफरी मच गई। गांधी जमीन पर गिर गए और उन्होंने कहा, हे राम!
इसके बाद उन्हें बिड़ला भवन के अंदर लेकर गए जहां उस दिन कोई डॉक्टर उपलब्ध नहीं था। शरीर से बहुत अधिक खून बह जाने के कारण उनकी मौत हो गई। देश शोक में डूब गया।
इसके बाद गांधी की मौत की खबर रेडियो के जरिये देशवासियों को बताई गई। प्रधानमंत्री नेहरू, मौलाना आजाद समेत कांग्रेस के कई बड़े नेता वहां पहुंचने लगे। देर रात तक बिड़ला भवन में भीड़ लगी हुई थी। भीड़ के छटते ही महात्मा गांधी की शव यात्रा की तैयारियां की जाने लगी। ब्रज कृष्ण चांदीवाला को गांधी को स्नान कराने की जिम्म्मेदारी दी गई। सर्दियों की कड़कड़ाती ठण्ड और रात 2 बजे ब्रज कृष्ण चांदीवाला टब में पानी लेकर गांधी के शव को नहलाने पहुंचे।
ब्रज कृष्ण चांदीवाला के लिए यह कार्य आसान नहीं था। वे गाँधी के विचारों के अत्यधिक प्रभावित थे। लम्बे समय तक उन्होंने महात्मा गांधी की सेवा भी की थी। ब्रज कृष्ण चांदीवाला को पता था कि, गांधी कभी ठंडे पानी से नहीं नहाते थे। ठण्ड में गांधी के शव पर ठंडा पानी डालते हुए वे काफी दुखी थे लेकिन उनके सामने यही अंतिम विकल्प था।
15 लाख लोग शव यात्रा में शामिल :
31 जनवरी को पूरे देश में गांधी की मौत के बाद शोक का माहौल था। गांधी के शव को खुले वाहन में रख शव यात्रा निकाली गई। जब यह यात्रा इंडिया गेट पहुंची तो लोग दीवारों पर चढ़कर गांधी के अंतिम दर्शन करने लगे। एक अनुमान के अनुसार इस शव यात्रा में 15 लाख लोग शामिल हुए थे। इसके बाद गांधी के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया गया। उस समय चारों ओर बस एक ही नारा सुनाई देता था - महात्मा गांधी अमर रहे।
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