पाकिस्तान से भारत ने जंग ही नहीं, जीती थी सोने की परत चढ़ी बग्गी भी

History Of The President Historic Gold Plated Buggy : राष्ट्रपति भवन की ऐतिहासिक बग्गी लम्बे समय से भारत की शान है।
ऐतिहासिक बग्गी में सवार राष्ट्रपति मुर्मू और मुख्य अतिथि इमैनुएल मैक्रॉन
ऐतिहासिक बग्गी में सवार राष्ट्रपति मुर्मू और मुख्य अतिथि इमैनुएल मैक्रॉनRaj Express
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हाइलाइट्स :

  • भारत - पकिस्तान के बीच कई संसाधनों का हुआ था बंटवारा।

  • पारम्परिक बग्गी में होता है विशेष नस्ल के घोड़ों का उपयोग।

  • 2014 की बीटिंग रिट्रीट में दिखी थी पारम्परिक शाही बग्गी।

नई दिल्ली। भारत ने पकिस्तान से हर जंग जीती है तो टॉस की लड़ाई कौन सी बड़ी बात थी। साल 1947 के बाद भारत और पकिस्तान के बीच जमीन, नदी समेत कई संसाधनों का बंटवारा हुआ। इस सब के बीच सोने की परत चढ़ी बग्गी किसके हक़ में जाए इस पर भी बहस हुई। बहुत सोच विचार के बाद टॉस हुआ। ये भी भारत ने ही जीत लिया और सोने की परत चढ़ी बग्गी पकिस्तान के हाथ से निकल गई। 26 जनवरी 2024 को यह बग्गी 40 साल बाद एक बार फिर कर्तव्यपथ पर दौड़ती नजर आई। जानते हैं इस पारम्परिक बग्गी का इतिहास...।

राष्ट्रपति भवन की ऐतिहासिक बग्गी लम्बे समय से भारत की शान है। आजादी के बाद देश का बंटवारा हुआ। दो स्वतंत्र देश बने भारत और पकिस्तान। तमाम संसाधनों के बंटवारे के बाद अब बहस छिड़ी वायसराय की सोने की परत चढ़ी बग्गी पर। दोनों ही देशों ने इस पर अपना - अपना दावा ठोका लेकिन चर्चा और बहस के बाद भी कोई निष्कर्ष नहीं निकला।

साल 1947 में दोनों देशों के बीच इस मुद्दे पर न्याय करने के लिए कोई प्रणाली नहीं थी। फिर विचार किया गया टॉस का। सिक्का उछाल कर अब इस बग्गी के स्वामित्व का निर्धारण होना था। भारत की तरफ से लेफ्टिनेनेंट कर्नल ठाकुर गोविन्द सिंह और पकिस्तानी की सेना की ओर से याकूब खान ने इस टॉस में हिस्सा लिया। हवा में सिक्का उछाला गया जैसे ही सिक्का नीचे गिरा भारतीयों ने जश्न मनाया क्योंकि ये टॉस भारत ने जीता था। अब यह शाही बग्गी भारत की हो गई थी।

क्या है बग्गी की खासियत :

वायसरॉय हॉउस की यह बग्गी बहुत ही ख़ास है। आजादी से पहले राष्ट्रपति भवन को वायसरॉय हॉउस कहा जाता था। ब्रिटिश काल में इस बग्गी का उपयोग वायसरॉय किया करते थे जो भारत में ब्रिटेन का प्रतिनिधित्व करते थे। इस बग्गी को 6 घोड़ों की मदद से खींचा जाता है। ये घोड़े भारत और ऑस्ट्रेलिया के मिश्रित नस्ल के घोड़े होते हैं।

वायसरॉय के बॉडी गार्ड का भी बंटवारा :

जैसा की पहले ही बताया गया है आजादी के बाद दोनों देशों के बीच सभी संसाधनों का बंटवारा किया जा रहा था तो वायसरॉय के बॉडी गार्ड का भी बंटवारा हुआ। वायसरॉय के बॉडी गार्ड को 2:1 के अनुपात में भारत और पकिस्तान के बीच बांटा गया। इसके बाद मुद्दा आया वायसरॉय की बग्गी का। जिसे दोनों देशों ने टॉस के माध्यम से निपटाया।

वायसरॉय द्वारा उपयोग की जाने वाली बग्गी
वायसरॉय द्वारा उपयोग की जाने वाली बग्गीRaj Express

1950 में राजेंद्र प्रसाद हुए थे बग्गी पर सवार :

देश की आजादी के बाद साल 1950 में तब के राजपथ और आज के कर्तव्यपथ पर भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद इस बग्गी पर सवार होकर राजपथ पर आये थे। इसके बाद राष्ट्रपति लगभग सभी समारोह में इस बग्गी से आया करते थे।

क्यों हुआ इस्तेमाल बंद :

साल 1984 तक भारत में गणतंत्र दिवस समारोह में राष्ट्रपति इस बग्गी का इस्तेमाल किया करते थे लेकिन 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई। इसके बाद देश की स्थिति को देखते हुए राष्ट्रपति की सुरक्षा भी बढ़ा दी गई। बग्गी का उपयोग बंद हो गया और इसकी जगह सिक्योरिटी कवर वाली कार का उपयोग होने लगा।

2014 में बीटिंग रिट्रीट में दिखी थी बग्गी :

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस बग्गी का उपयोग दोबारा शुरू किया। साल 2014 के बीटिंग रिट्रीट में वे इस बग्गी पर सवार होकर आये थे। इसके पहले पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भी इस बग्गी में नजर आये थे। वे इस बग्गी का उपयोग राष्ट्रपति भवन में ही घूमने के लिए किया करते थे। 2014 में बीटिंग रिट्रीट में इस बग्गी के इस्तेमाल को लेकर भी बहुत विचार किया गया था।

बीटिंग रिट्रीट में बग्गी पर सवार पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
बीटिंग रिट्रीट में बग्गी पर सवार पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जीRaj Express

40 साल बाद कर्तव्यपथ पर दिखी शाही बग्गी :

साल 1984 के बाद यह बग्गी कभी भी गणतंत्र दिवस परेड में नजर नहीं आई। 40 साल बाद 2024 के गणतंत्र दिवस समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू इस बग्गी में मुख्य अतिथि फ़्रांस के राष्ट्रपति Emmanuel Macron के साथ कर्तव्यपथ पर पहुंची।

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