संविधान दिवस विशेष: भारत के संविधान निर्माण में महिलाओं का है विशेष योगदान
देश के संविधान निर्माण के लिए एक संविधान सभा का गठन किया गया था। इस सभा में कुल 389 सदस्य थे। इनमें से 15 महिलाएं थी। इन महिलाओं ने संविधान के निर्माण में अहम भूमिका निभाई है।
दक्षिणायनी वेलायुधन संविधान सभा की इकलौती दलित महिला सदस्य थी। 1912 में जन्मी वेलायुधन, संविधान सभा की सबसे युवा सदस्य भी थी। व्यक्तिगत तौर पर वे देश में किसी भी प्रकार के आरक्षण का विरोध करती थी। वे अपने लेखों के जरिए सदैव मुखरता से बात रखना जानती थी। RE
सरोजिनी नायडू को भारत की पहली महिला राज्यपाल के रूप में जाना जाता है। हालांकि इसके पहले, वे भारत का संविधान बनाने वाली सभा का भी हिस्सा रह चुकी है। सरोजिनी नायडू ने सदैव महिलाओं के अधिकार के लिए आवाज उठाई है। भारत में महिलाओं का मताधिकार दिलाने में उनका बड़ा योगदान है। RE
बेगम क़दसिया ऐज़ाज़ रसूल संविधान सभा की इकलौती मुस्लिम महिला थी। वे अल्पसंख्यक अधिकारों की ड्राफ्टिंग कमेटी की सदस्य थी। उन्होंने धर्म आधारित आरक्षण के प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया था। वे अल्पसंख्यकों के लिए न्याय और समान अधिकार चाहती थी। उनका मानना था कि हिंदी को ही भारत की राष्ट्रीय भाषा माना जाना चाहिए। RE
दुर्गाबाई देशमुख पेशे से एक वकील थी। संविधान सभा में उन्होंने हिंदू कोड बिल के अंतर्गत, महिलाओं का संपत्ति में समान अधिकार का पक्ष रखा था। इसके अलावा उन्होंने हिंदी और उर्दू भाषा के मिश्रण से बनी हिंदुस्तानी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने की बात भी कही थी। RE
हंसा जीवराज मेहता ने संविधान सभा में महिलाओं के अधिकारों व समानता का पक्ष रखा था। उन्होंने महिलाओं को तलाक लेने का अधिकार मिलने पर बल दिया था। इसके अलावा उन्होंने देश में महिलाओं को समान अधिकार देने का विषय भी उठाया था। RE
पूर्णिमा बनर्जी भारत की आजादी लड़ाई में सक्रियता से भाग लेने वाली महिला रही हैं। संविधान सभा में रहते हुए उन्होंने संविधान की प्रस्तावना तथा राज्यसभा के सदस्यों की योग्यता के बारे में हुई बहस में अहम भूमिका निभाई थी। RE
राजकुमारी अमृत कौर भी संविधान सभा में शामिल 15 महिला सदस्यों में से एक थी। वे आजाद भारत की कार्यप्रणाली के निर्माण में योगदान देने वाली एक सशक्त महिला थी। वे समान नागरिक संहिता बनाने के पक्ष में थी। वे 1947 में स्वतंत्र भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री भी थी। RE
पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित भी संविधान सभा में शामिल थी। उन्होंने संविधान निर्माण की चर्चा के दौरान, महिला आरक्षण, आरक्षण, अल्पसंख्यकों के अधिकार और स्कूली शिक्षा जैसे विषयों पर अपनी बात कही थी। RE
सुचेता कृपलानी को भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री होने का गौरव प्राप्त है। हालांकि इससे पूर्व उन्होंने भारत के संविधान निर्माण में अहम भूमिका निभाई है। वे भारत का पहला राष्ट्रीय ध्वज प्रस्तुत करने वाली कमेटी का हिस्सा थी। RE
कमला चौधरी ने भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने के साथ-साथ, पिछड़े इलाकों की महिलाओं की शिक्षा के लिए भी कार्य किये थे। उनके योगदान को देखते हुए, कमला चौधरी को संविधान सभा में स्थान दिया गया था। सभा में वे संयुक्त प्रांत का प्रतिनिधित्व कर रही थी। RE
लीला रॉय को नारीवादी के तौर पर जाना जाता था। उन्हें बंगाल से संविधान सभा के लिए चुना गया था। लीला रॉय भारत के विभाजन के सख्त विरोध में थी। इसलिए उन्होंने कुछ समय बाद संविधान सभा से इस्तीफा दे दिया था। RE
मालती देवी को उड़ीसा प्रांत से संविधान सभा के लिए चुना गया था। हालांकि वे जमीनी स्तर पर बच्चों, आदिवासियों और किसानों के साथ काम करते रहना चाहती थी। इसलिए उन्होंने भी कुछ समय बाद संविधान सभा से इस्तीफा दे दिया था। RE
अम्मू स्वामीनाथन भारत के मद्रास प्रांत से आती थी। आजादी की लड़ाई में शामिल होने के कारण, वे एक साल जेल में भी रही थी। संविधान सभा में रहते हुए, स्वामीनाथन ने मौलिक अधिकारों और नीति-निर्देशक सिद्धांतों (Directive Principles of State Policy) पर हुई चर्चा में हिस्सा लिया था। RE
संविधान सभा में रेणुका रे मुख्य रूप से महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की पक्षधर रही है। आजादी के पहले उन्होंने महिला श्रमिकों की स्थिति सुधारने के लिए भी कार्य किया है। उन्होंने 1949 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया था। RE
एनी मास्कारेन दक्षिण भारत से आती हैं। वे भी संविधान सभा की 15 महिला सदस्यों में शामिल थी। मास्कारेन ने संविधान सभा में मुख्य रूप से संघवाद (Federalism) के विषय पर हुई चर्चा में भाग लिया था। RE
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