मुख्य चुनाव आयुक्त विधेयक
मुख्य चुनाव आयुक्त विधेयकSyed Dabeer Hussain - RE

Winter Session 2023 : भारत की राजनीति और चुनाव प्रक्रिया को बदल देगा मुख्य चुनाव आयुक्त विधेयक

Winter Session 2023 : मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त विधेयक, 2023 भारत की राजनीति को बदलने वाला हो सकता है, चलिए जानते है इस विधेयक से जुड़ी सभी बड़ी बातें।
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राज एक्सप्रेस। संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है जिसका आज 12वां दिन है। संसद की कार्यवाही के दौरान अब तक कई विधेयक पास हुए लेकिन 10 और 12 दिसंबर को जो मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 क्रमश: दोनों सदनों में पास हुआ है वह भारत की राजनीती को बदलने वाला हो सकता है। आइये, जानते है मुख्य चुनाव आयुक्त विधेयक से जुड़ी सभी बड़ी बातें।

क्या है यह विधेयक?

यह विधेयक चुनाव आयोग अधिनियम, 1991 की जगह पर लाया गया है जो कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति, वेतन और हटाने का प्रावधान करता है। नए विधेयक के अनुसार, सीईसी और ईसी की नियुक्ति चयन समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी जिसमे प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और प्रधानमंत्री द्वारा अनुशंसित एक कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे। इस विधेयक के अनुसार, केंद्रीय कानून मंत्री की अध्यक्षता वाली एक खोज समिति चयन समिति को नामों का एक पैनल प्रस्तावित करेगी। पदों के लिए पात्रता में केंद्र सरकार के सचिव के समकक्ष पद धारण करना शामिल है। यह विधेयक इस साल के मानसून सत्र में सदन में रखा गया था।

हालाँकि, तब इसे बहस के लिए आगे नहीं बढ़ाया गया था। मानसून सत्र में विधेयक का जो खाखा पटल पर रखा गया था वह शीतकालीन सत्र वाले विधेयक से भिन्न है। पिछले विधेयक में मुख्य चुनाव आयुक्त के दर्जे को घटाकर कैबिनेट सचिव के बराबर किया जा रहा था लेकिन शीतकालीन सत्र में सरकार ने पुरानी व्यवस्था को कायम रखा है।

क्यों लाया गया यह विधेयक?

इस विधेयक को लाने के पीछे का सबसे बड़ा कारण भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324(2) है सीईसी और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी, जो संसद द्वारा इस संबंध में बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन होगी। कानून मंत्री विचारार्थ प्रधानमंत्री को उम्मीदवारों का एक समूह सुझाते हैं। राष्ट्रपति यह नियुक्ति प्रधानमंत्री की सलाह पर करते है। इस अनुच्छेद में नामों की चयन प्रक्रिया का कोई वर्णन नहीं किया गया है जिसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई जनहित याचिकाओं में सीईसी और ईसी की नियुक्ति को नियंत्रित करने वाला कानून बनाने की मांग की गई थी।

पहली जनहित याचिका 2015 में दायर की गई थी, और सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर दिल्ली भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा 2018 में दायर दूसरी जनहित याचिका पर सुनवाई करने के लिए सहमत हुआ। 2018 में, सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेज दिया क्योंकि इसमें संविधान के अनुच्छेद 324 की बारीकी से जांच की आवश्यकता थी, जो मुख्य चुनाव आयुक्त की भूमिका से संबंधित है। इसके बाद 2 मार्च 2023 को, सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि प्रधान मंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश की एक उच्च-शक्ति समिति को सीईसी और ईसी को चुनना होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्तों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए यह निर्देश पारित किया था। इसी कारण सुप्रीम कोर्ट को चयन प्रक्रिया से दूर रखने के प्रयास में, नए मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 को लाने की योजना बनाई गयी जिसके तहत विधायिका और न्यायपालिका के बीच कोई ओवरलैप न कर सके।

नए विधेयक की अतिरिक्त विशेषताएं :

  • चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त शामिल होंगे। राष्ट्रपति समय-समय पर ईसी की संख्या तय करेंगे।

  • चुनाव आयोग के सदस्य छह साल तक या 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, जो भी पहले हो, पद पर बने रहेंगे।

  • आयोग के सदस्यों को दोबारा नियुक्त नहीं किया जा सकता। यदि किसी ईसी को सीईसी के रूप में नियुक्त किया जाता है, तो कार्यकाल की कुल अवधि छह वर्ष से अधिक नहीं हो सकती है।

  • सीईसी को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की तरह ही और उन्हीं आधारों पर हटाया जा सकता है। ईसी को केवल सीईसी की सिफारिश पर ही हटाया जा सकता है।

क्या रही विपक्ष की प्रतिक्रिया ?

विपक्ष ने चुनाव आयोग की नियुक्ति प्रक्रिया को विनियमित करने के लिए सरकार के विधेयक की आलोचना करते हुए कहा कि यह कार्यपालिका को मुख्य चुनाव आयुक्तों और चुनाव आयुक्तों को चुनने की शक्ति देगा जो सत्तारूढ़ दल का पक्ष लेंगे। कांग्रेस सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि यह विधेयक चुनाव आयोग और चयन समिति की स्वतंत्रता को ''खत्म'' करता है और यह केवल एक ''औपचारिकता'' है। कांग्रेस के आलावा टीएमसी सांसद जवाहर सरकार ने विधेयक को "मजाक" करार दिया और कहा कि इसने "लोकतंत्र की नींव" को हिला दिया है। विधेयक का विरोध करते हुए, द्रमुक सांसद तिरुचि शिवा ने भी कहा था कि यह अलोकतांत्रिक है और "हां में हां मिलाने वालों" की नियुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। उन्होंने विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजने की मांग की।

आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा ने भी विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि यह विधेयक चुनाव आयोग की संस्था को नष्ट कर देगा। इससे पहले जब मानसून सत्र के दौरना देश में, इस विधेयक पर चर्चा हो रही थी तब कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने ट्विटर (X) पर पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण अडवाणी द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह को लिखे गए एक पत्र का हवाला देते हुए कहा था कि 2 जून 2012 को, भाजपा संसदीय दल के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने तत्कालीन प्रधान मंत्री कांग्रेस नेता मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर चुनाव आयोग के सदस्यों का चयन करने के लिए एक कॉलेजियम के गठन की सिफारिश की थी, जिसमें प्रधान मंत्री और मुख्य न्यायाधीश शामिल हों। भारत के कानून मंत्री और लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष के नेता सदस्य के रूप में।

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