राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना
राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना RE

राजकीय पक्षी ‘पहाड़ी मैना’ के संरक्षण को मिला बढ़ावा, युवाओं को प्रशिक्षित कर बनाया मैना मित्र

Pahadi Maina Chhattisgarh: राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना का प्राकृतिक रहवास कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान है। यहां 1साल से स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षण देकर मैना मित्र बनाया गया है।
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Pahadi Maina Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ के राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना का प्राकृतिक रहवास कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान (Kanger Valley National Park) ही है। यहां लगभग एक साल से स्थानीय समुदाय के युवाओं को प्रशिक्षण (Training) देकर मैना मित्र बनाया गया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (CM Bhupesh Baghel) के अनुरूप तथा वन मंत्री मोहम्मद अकबर (Forest Minister Mohammad Akbar) के कुशल मार्गदर्शन में वन विभाग (Forest Department) की पहल पर मैना मित्र पहाड़ी मैना के संरक्षण एवं संवर्धन (Conservation and Promotion) के लिए लगातार प्रयास कर रहे है। कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के मैना मित्र तथा वन विभाग के फ्रंट लाइन स्टाफ के निरंतर प्रयास से अब बस्तर में पहाड़ी मैना (Pahadi Maina in Bastar) की संख्या में वृद्धि होने से आस-पास के ग्रामों में भी उनकी मीठी बोली गूंजने लगी है।

स्कूलों में जागरूकता कार्यक्रम :

कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के निदेशक ने बताया कि कैम्पा योजना अंतर्गत संचालित मैना सरंक्षण एवं संवर्धन प्रोजेक्ट बस्तर (Maina Conservation and Promotion Project Bastar) पहाड़ी मैना के सरंक्षण के लिए कारगर साबित हुआ है। प्रोजेक्ट (Project) अंतर्गत मैना मित्रों द्वारा कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान से लगे 30 स्कूलों में जागरूकता कार्यक्रम (Awareness Program) का आयोजन किया गया है। प्रत्येक शनिवार और रविवार स्कूली बच्चों को पक्षी दर्शन के लिए ले जाया जा रहा है, जिससे उनके व्यवहार में बदलाव भी देखा जा रहा है। एक समय में जिन बच्चों के हाथ में गुलेल थे अब उनके हाथ में दूरबीन देखा जा रहा है।

मैना मित्रों और फील्ड स्टाफ कर रहे निगरानी :

अभी नेस्टिंग सीजन (Nesting Season) में पहाड़ी मैना के कई नए घोंसले देखने को मिले, जिसमें अभी पहाड़ी मैना (Pahadi Maina) अपने बच्चों को फल और कीड़े खिलाते हुए देखे जा रहे हैं, जिनकी निगरानी मैना मित्रों (Maina Friends) और फील्ड स्टाफ (Field Staff) द्वारा की जा रही है। पहले जहां पहाड़ी मैना की संख्या कम थी, अब वह कई झुंड में नजर आ रही है। स्थानीय समुदायों के योगदान एवं पार्क प्रबंधन के सतत् प्रयास से ही यह मुमकिन हो पाया है।

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