प्रगति मैदान में दिखेगी छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति की झलक
प्रगति मैदान में दिखेगी छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति की झलकसांकेतिक चित्र

प्रगति मैदान में राज्य दिवस पर दिखेगी छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति की झलक

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी सांस्कृतिक संध्या में करेंगे शिरकत। छत्तीसगढ़ के पारंपरिक लोक नृत्यों का होगा भव्य आयोजन।
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नई दिल्ली। प्रगति मैदान में 21 नवंबर को दिल्लीवासियों को छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोक कला और संस्कृति की झलक देखने को मिलेगी। अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में एम्फी थियेटर में छत्तीसगढ़ राज्य दिवस का यह आयोजन किया जाएगा, जिसका उद्घाटन छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल करेंगे।

इस दौरान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ पवेलियन का भ्रमण कर स्टालों का अवलोकन करेंगे। छत्तीसगढ़ के पवेलियन में 'गढ़बो नवा छत्तीसगढ़' की झलक देखने को मिल रही है। पवेलियन में सशक्त ग्रामीण अर्थव्यवस्था व आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते छत्तीसगढ़ को दिखाने का प्रयास किया गया है।

सांस्कृतिक संध्या में छत्तीसगढ़ की पारंपरिक लोक नृत्यों की झलक दिखेगी। इस आयोजन में छत्तीसगढ़ से आए लोक कलाकार गौर नृत्य, परब नृत्य, भोजली नृत्य, गेड़ी नृत्य, सुआ नृत्य, पंथी नृत्य और करमा नृत्य की प्रस्तुति देंगे।

सुआ नृत्य :

यह छत्तीसगढ़ का एक लोकप्रिय लोक नृत्य है जो आमतौर पर गौरा के विवाह के अवसर पर किया जाता है। यह मूलतः महिलाओं और किशोरियों का नृत्य है। इस नृत्य में महिलाएं एक टोकरी में सुआ (मिट्टी का बना तोता) को रखकर उसके चारों ओर नृत्य करती हैं और सुआ गीत गाती हैं। गोल-गोल घूम कर इस नृत्य को किया जाता है। तथा हाथ से या लकड़ी के टुकड़े से ताली बजाई जाती है। इस नृत्य के समापन पर शिव गौरी विवाह का आयोजन किया जाता हैं। इसे गौरी नृत्य भी कहा जाता है।

परब नृत्य :

यह नृत्य बस्तर में निवास करने वाले धुरवा जनजाति के द्वारा किया जाता है। यह नृत्य महिला व पुरुष साथ मिलकर बांसुरी, ऑलखाजा तथा ढोल बजाते हुए करते हैं , जिसमें पिरामिड जैसा दृश्य दिखाई पड़ता है। इस नृत्य को सैनिक नृत्य कहा जाता है, क्योंकि नर्तक नृत्य के दौरान वीरता के प्रतीक चिन्ह कुल्हाड़ी व तलवार लिए होते हैं। इस नृत्य का आयोजन मड़ई के अवसर पर किया जाता है।

पंथी नृत्य :

यह नृत्य न केवल इस क्षेत्र के लोक नृत्य के सबसे महत्वपूर्ण रूपों में से एक है, बल्कि इसे छत्तीसगढ़ के सतनामी समुदाय का एक प्रमुख रिवाज या समारोह भी माना जाता है। यह नृत्य अक्सर समुदाय द्वारा माघ पूर्णिमा में होने वाले गुरु घासीदास की जयंती के उत्सव के दौरान किया जाता है। लोग इस नृत्य के माध्यम से अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं और अपना प्रतिनिधित्व करते हैं। किसी भी नृत्य शैली की तरह, यह भी कई चरणों और पैटर्न का एक संयोजन है। हालाँकि, जो चीज इसे अद्वितीय बनाती है, वह यह है कि यह अपने पवित्र गुरु की शिक्षाओं को दर्शाते हैं।

गेंड़ी नृत्य :

यह नृत्य संपूर्ण छत्तीसगढ़ में प्रचलित है ,परंतु बस्तर में इसे मुड़िया जनजाति द्वारा सावन माह में हरेली के अवसर पर किया जाता है। यह पुरुष प्रधान नृत्य है, जिसमें पुरुष तीव्र गति से व कुशलता के साथ गेड़ी पर शारीरिक संतुलन को बरकरार रखते हुए नृत्य करते हैं। यह नृत्य शारीरिक कौशल और संतुलन को प्रदर्शित करता है।

करमा नृत्य :

एक छत्तीसगढ़ का पारम्परिक नृत्य है। इसे करमा देव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इस नृत्य में पारंपरिक पोषक पहनकर लोग नृत्य करते है और छत्तीसगढ़ी गीत गाते है।छत्तीसगढ़ का यह लोक नृत्य आमतौर पर राज्य के आदिवासी समूहों जैसे गोंड, उरांव, बैगा आदि द्वारा किया जाता है। यह नृत्य वर्षा ऋतु के अंत और वसंत ऋतु की शुरुआत को चिह्नित करने के लिए किया जाता है। इस नृत्य प्रदर्शन में गांवों के पुरुष और महिलाएं दोनों भाग लेते हैं। कर्मा नृत्य के लिए कलाकारों की टीम में एक प्रमुख गायक भी होता है।

गौर नृत्य :

इस नृत्य को बस्तर में निवासरत मारिया जनजाति के द्वारा जात्रा पर्व के अवसर पर किया जाता है। इस नृत्य में युवक सिर पर गौर के सिंह को कौड़ियों से सजाकर उसका मुकुट बनाकर पहनते हैं । अतः इस नृत्य को गौर नित्य भी कहा जाता है। इस नृत्य में केवल पुरुष भाग लेते हैं। महिलाओं द्वारा केवल वाद्य यंत्र को बजाया जाता है जिसे तिर्तुडडी कहते हैं।

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