चंद्रशेखर आजाद जयंती : भारत का एक बड़ा नेता, जिसने की थी आजाद की मुखबिरी
राज एक्सप्रेस। जब भी भारत के महान स्वतंत्रता सेनानियों का जिक्र होता है तो उसमें चंद्रशेखर आजाद का नाम जरूर लिया जाता है। 23 जुलाई 1906 को मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाबरा गाँव में जन्में भारत मां के इस वीर सपूत ने देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। जब वह 14 साल के थे, तब पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करके जज के सामने प्रस्तुत किया था। जब जज ने उनसे उनका नाम पूछा तो उन्होंने निडरता से कहा – आजाद।
मृत्यु का रहस्य :
अपने नाम की तरह चंद्रशेखर आजीवन आजाद ही रहे। ब्रिटिश पुलिस कभी उन्हें जिंदा पकड़ नहीं पाई। चंद्रशेखर आजाद के जीवन से जुड़ी घटनाओं के बारे में तो हम सभी जानते ही हैं, लेकिन उनकी मृत्यु से जुड़ी एक घटना ऐसी भी है, जो आज तक रहस्य बनी हुई है। इस रहस्य से अब शायद ही कभी पर्दा उठ पाएगा।
कैसे हुए थे शहीद?
दरअसल 27 फरवरी 1931 को चंद्रशेखर आजाद अपने साथी सुखदेव राज के साथ अल्फ्रेड पार्क में छिपे हुए थे। इसी दौरान पुलिस वहां आ पहुंची और उन्हें चारों तरफ से घेर लिया। इसके बाद आजाद अकेले ही पुलिस से भिड़ गए। आखिर में जब उनके पास सिर्फ एक गोली बची थी तो उन्होंने आखिरी गोली अपनी ही कनपटी पर चला दी और हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो गए।
किसने की मुखबिरी?
यहां सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि अंग्रेजों को कैसे पता चला था कि चंद्रशेखर आजाद अल्फ्रेड पार्क में छिपे हुए थे। एक रिपोर्ट के अनुसार इस घटना के बाद तत्कालीन अंग्रेज पुलिस अफसर नॉट वावर ने बयान दिया था कि, ‘जब वह अपने घर पर खाना खा रहे थे, तब उन्हें भारत के एक बड़े नेता ने मैसेज भेजा था कि आप जिसकी तलाश कर रहे हैं वह सुबह 3 बजे तक अल्फ्रेड पार्क में मौजूद रहेगा।’ यह मैसेज मिलते ही नॉट वावर अपनी टीम के साथ अल्फ्रेड पार्क पहुंच गए थे। हालांकि नॉट वावर को यह मैसेज किस भारतीय नेता ने भेजा था, वह आज तक एक रहस्य बना हुआ है।
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