भाजपा सांसद ने की राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता खत्म करने की मांग
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भाजपा सांसद ने की राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता खत्म करने की मांग, जानिए क्या कहते हैं नियम?

भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म करने की मांग की है। ऐसे में आज हम जानेंगे कि किसी भी संसद सदस्य की सदस्यता खत्म करने को लेकर भारत में क्या प्रावधान है।
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राज एक्सप्रेस। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और लोकसभा सांसद राहुल गांधी इस समय लंदन में दिए गए अपने एक बयान के चलते विवादों में आ गए हैं। भारतीय लोकतंत्र को लेकर दिए गए उनके बयान को लेकर भाजपा लगातार हमलावर है और राहुल गांधी से माफी मांगने की बात कह रही है। वहीं राहुल गांधी ने इस मामले में सफाई देते हुए कहा है कि, ‘उन्होंने किसी अन्य देश से भारत के लोकतंत्र में हस्तक्षेप करने के लिए नहीं कहा है।’ इस पूरे विवाद के बीच भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म करने की मांग की है। ऐसे में आज हम जानेंगे कि किसी भी संसद सदस्य की सदस्यता खत्म करने को लेकर भारत में क्या प्रावधान है।

क्या खत्म की जा सकती है सदस्यता?

यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या किसी संसद सदस्य की सदस्यता खत्म की जा सकती है। तो इस सवाल का जवाब है - हाँ। वैसे तो भारत के संविधान में सांसदों की सदस्यता खत्म करने को लेकर कोई नियम नहीं बनाया गया है। हालांकि संसद में प्रस्ताव पारित करके किसी सांसद की सदस्यता खत्म की जा सकती है।

क्या है नियम 223?

दरअसल लोकसभा के नियम 223 में यह प्रावधान है कि अगर कोई लोकसभा सांसद अनैतिक और गलत आचरण करते पाया जाता है तो अविश्वास प्रस्ताव लाकर उस सांसद की संसद सदस्यता को खत्म किया जा सकता है। इसके अलावा इस मामले की जांच के लिए विशेषाधिकार समिति का गठन भी किया जा सकता है। यह समिति पूरे मामले की जांच करने के बाद एक महीने में अपनी रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष को सौंपती है। अगर सांसद जांच में दोषी पाया जाता है तो समिति लोकसभा अध्यक्ष से उसकी सदस्यता खत्म करने की मांग भी कर सकती है।

क्या है नियम 352?

दरअसल संसदीय नियमावली के नियम 352(2) के अनुसार कोई भी सांसद लोकसभा अध्यक्ष की अनुमति से ही किसी अन्य सांसद के खिलाफ टिप्पणी कर सकता है। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे का कहना है कि राहुल गांधी ने लोकसभा अध्यक्ष की अनुमति के बिना प्रधानमंत्री मोदी पर निराधार आरोप लगाए हैं। ऐसे में उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। निशिकांत दुबे ने इस दौरान साल 1976 में हुई उस घटना का भी जिक्र किया, जब सभापति की अनुमति के बिना प्रधानमंत्री पर आरोप लगाने के चलते सुब्रमण्यम स्वामी को राज्यसभा से निकाल दिया गया था।

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