राज एक्सप्रेस। अयोध्या विवाद पर आज 9 नवंबर 2019 की सुबह 10:30 बजे आने वाले फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या की विवादित ज़मीन राम जन्मभूमि न्यास को देने का निर्णय लिया। न्यायालय ने निर्मोही अखाड़ा और शिया वक्फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया है।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने अयोध्या मामले पर फैसला सुनाते हुए 2.77 एकड़ विवादित ज़मीन राम जन्मभूमि न्यास के सुपुर्द की। सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को पलट कर ये नया फेैसला दिया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार को 3 महीने का समय दिया ताकि इस मामले पर योजना बनाई जाए। साथ ही न्यायालय ने सरकार को एक ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया है। यह ट्रस्ट मंदिर बनाने की रूपरेखा तैयार करेगा।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस मसले पर आस्था और विश्वास की बुनियाद पर नहीं, कानून के आधार पर फैसला लिया गया है। न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष को जमीन देने की जिम्मेदारी योगी सरकार को सौंपी है।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि, "दस्तावेज़ों से पता चलता है कि 1885 से पहले हिन्दू अंदर पूजा नहीं करते थे। बाहरी अहाते में राम चबूतरे और सीता रसोई में पूजा करते थे। 1934 में दंगे हुए, जिसके बाद से मुसलमानों का विशेष अधिकार आंतरिक अहाते में नहीं रहा। मुसलमान उसके बाद से अपना एकाधिकार सिद्ध नहीं कर पाए हैं। हिन्दू निर्विवाद रूप से बाहर पूजा करते रहे हैं।"
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के लगभग दो घंटे बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्विटर पर अपनी प्रतिक्रिया जारी की। उन्होंने लिखा, "देश के सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या पर अपना फैसला सुना दिया है। इस फैसले को किसी की हार या जीत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। रामभक्ति हो या रहीमभक्ति, ये समय हम सभी के लिए भारतभक्ति की भावना को सशक्त करने का है। देशवासियों से मेरी अपील है कि शांति, सद्भाव और एकता बनाए रखें।"
उन्होंने यह भी कहा कि, "सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कई वजहों से महत्वपूर्ण है, यह बताता है कि किसी विवाद को सुलझाने में कानूनी प्रक्रिया का पालन कितना अहम है। हर पक्ष को अपनी-अपनी दलील रखने के लिए पर्याप्त समय और अवसर दिया गया। न्याय के मंदिर ने दशकों पुराने मामले का सौहार्दपूर्ण तरीके से समाधान कर दिया।"
"यह फैसला न्यायिक प्रक्रियाओं में जन-सामान्य के विश्वास को और मजबूत करेगा। हमारे देश की हजारों साल पुरानी भाईचारे की भावना के अनुरूप हम 130 करोड़ भारतीयों को शांति और संयम का परिचय देना है। भारत के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की अंतर्निहित भावना का परिचय देना है,"- प्रधानमंत्री मोदी ने आगे कई और ट्वीट्स में लिखा।
गृहमंत्री अमित शाह ने सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले को ऐतिहासिक करार दिया। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि, "श्रीराम जन्मभूमि पर सर्वसम्मति से आये सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का मैं स्वागत करता हूँ। मैं सभी समुदायों और धर्म के लोगों से अपील करता हूँ कि हम इस निर्णय को सहजता से स्वीकारते हुए शांति और सौहार्द से परिपूर्ण 'एक भारत-श्रेष्ठ भारत' के अपने संकल्प के प्रति कटिबद्ध रहें।"
गृहमंत्री ने आगे किए ट्वीट्स में लिखा, "दशकों से चले आ रहे श्री राम जन्मभूमि के इस कानूनी विवाद को आज इस निर्णय से अंतिम रूप मिला है। मैं भारत की न्याय प्रणाली व सभी न्यायमूर्तियों का अभिनन्दन करता हूँ। श्री राम जन्मभूमि कानूनी विवाद के लिए प्रयासरत; सभी संस्थाएं, पूरे देश का संत समाज और अनगिनत अज्ञात लोगों, जिन्होंने इतने वर्षों तक इसके लिए प्रयास किए मैं उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ।"
"मुझे पूर्ण विश्वास है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया यह ऐतिहासिक निर्णय अपने आप में एक मील का पत्थर साबित होगा। यह निर्णय भारत की एकता, अखंडता और महान संस्कृति को और बल प्रदान करेगा,"- उन्होंने आगे लिखा।
केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि, 'यह एक ऐतिहासिक फैसला है। इस निर्णय को सभी को पूरे धैर्य और उदारता के साथ स्वीकारना चाहिए।'
कांग्रेस पार्टी के नेता राजदीप सुरजेवाला ने इस फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा कि, 'सर्वोच्च न्यायायलय का निर्णय आ गया है। हम राम मन्दिर निर्माण के पक्ष में हैं। इस फैसले ने न सिर्फ राम मन्दिर बनने के द्वार खोल दिये हैं बल्कि भाजपा अथवा किसी भी दल द्वारा इस मुद्दे की राजनीति करने के सभी रास्ते बन्द भी कर दिए हैं।'
अयोध्या मामले में 40 दिन तक सुनवाई हुई थी, जिसके बाद 16 अक्टूबर को सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने साल 2010 में अपना फैसला सुनाया था। सर्वोच्च न्यायालय में इस ही फैसले को बाद में चुनौती दी गई। 30 सितंबर, 2010 को लिए अपने फैसले में इलाहाबाद न्यायालय ने अयोध्या के विवादित स्थल को राम जन्मभूमि माना था।
उच्च न्यायालय ने 2.77 एकड़ जमीन का सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्माही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर बंटवारा करने का आदेश दिया था।
केस से जुड़े तीनों दल निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी वक्फ बोर्ड और रामलला विराजमान ने यह फैसला मानने से इनकार किया और सर्वोच्च न्यायालय में 14 अपीलें दायर कीं। यह मामला पिछले नौ वर्षों से सुप्रीम कोर्ट में लंबित था। जिसके लिए साल 2019 में अगस्त से अक्टूबर महीनों के बीच 40 दिन तक हुई रोजाना सुनवाई हुई।
अयोध्या मामले की कार्यवाही 6 अगस्त से 16 अक्टूबर तक सर्वोच्च न्यायालय में चली। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच ने इस मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। पांच न्यायाधीशों इस पीठ में न्यायमूर्ति बोबड़े, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में आने वाले फैसले के मद्देनजर अयोध्या और साथ ही देश के कई स्थानों पर सीआरपीसी की धारा-144 लागू की गई है। साथ ही सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम भी किए गए हैं। अयोध्या में अर्धसैनिक बलों के 4000 जवानों को तैनात किया गया है।
दिल्ली में सर्वोच्च न्यायालय के आस-पास के इलाकों में धारा-144 लागू कर दी गई। साथ ही तिलक मार्ग की ओर जाने वाली मथुरा रोड से भगवान दास रोड को बंद कर दिया गया है।
अयोध्या में पैरामिलिट्री फोर्स की 60 कंपनियां, आरपीएफ, पीएसी और 1200 पुलिस कॉन्स्टेबल, 250 सब-इंस्पेक्टर्स, 20 डिप्टी सुप्रीटेंडेंट और 2 एसपी को तैनात किया गया है। डबल लेयर बैरिकेडिंग, पब्लिक अड्रेस सिस्टम आदि का भी इस्तेमाल किया गया है।
इसके साथ ही 35 सीटीटीवी और 10 ड्रोन कैमरों के जरिए जगह-जगह निगरानी की जा रही है। लोगों के रामलला के दर्शन पर कोई पाबंदी नहीं है। सभी बाज़ार खुले हैं और स्थिति पूरी तरह सामान्य है।
अयोध्या के साथ-साथ पूरे उत्तर प्रदेश में धारा 144 लागू कर दी गई है। जम्मू-कश्मीर में भी धारा 144 लागू है। अलीगढ़ में इंटरनेट पर बैन लगाया गया है, तो देश के कई राज्यों में विद्यालयों और महाविद्यालयों की छुट्टी कर दी गई है।
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में धारा-144 लागू कर दी गई है। दोपहर 11 बजे से यह धारा लागू की गई। इसके अलावा पूरे शहर में 40 हजार से अधिक पुलिसकर्मियों को भी तैनात किया गया है।
महाराष्ट्र पुलिस ने सोशल मीडिया को लेकर गाइडलाइन जारी की। इसमें कहा गया कि अगर कोई भ्रामक मैसेज व्हॉट्सऐप ग्रुप में डालता है तो उसके लिए एडमिन को जिम्मेदार माना जाएगा, साथ ही उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
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