भागलपुर। बिहार के कृषि मंत्री अमरेन्द्र प्रताप सिंह ने बिहार कृषि विश्वविद्यालय को देश के समृद्ध विश्वविद्यालयों में से एक बताया और कहा कि यह विश्वविद्यालय एक दिन अन्य विश्वविद्यालयों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा।
श्री सिंह ने शुक्रवार को जिले के सबौर स्थित बिहार कृषि विश्वविद्यालय के 13वें स्थापना दिवस समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि इस कृषि विश्वविद्यालय ने अपनी स्थापना के 12 वर्षों में कई उपलब्धियां हासिल की है। यहां के वैज्ञानिकों ने अपने कड़ी मेहनत के बल पर 29 नए प्रभेदों को विकसित कर किसानों को बड़ा सौगात दी है। किसानों के हित में बेहतर काम कर रहे इस विश्वविद्यालय के विकास के लिए धन की कोई कमी नहीं होने दी जाएगी।
मंत्री ने कहा कि पूर्व के किसान बाजरा, मडुवा, रागी जैसे मोटे अनाजों की खेती करते थे और उसे पोषण में शामिल कर 100 वर्ष तक जीवित रहते थे। आज हम रसायनिक खादों के साथ गेहूं और धान की खेती कर बीमार पड़ रहे हैं। मोटे अनाजों के लिए यूरोप भारत की ओर देख रहा है। कृषि मंत्री ने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि पंजाब के बाद सबसे अधिक रासायनिक खाद का उपयोग बिहार के किसान कर रहे हैं। इसे हमें हर हाल में कम करना होगा। इस दिशा में बिहार कृषि विश्वविद्यालय भी बेहतर काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि अब खेती पढ़े लिखे लोगों की हो गई है। वहीं, शिक्षित लोग ही खेती को लाभकारी बना सकते हैं । सरकार किसानों को 90 प्रकार के कृषि यंत्रों पर अनुदान दे रही है। इन कृषि यंत्रों का बेहतर रखरखाव और समय पर मरम्मत हो इसके लिए भी बिहार सरकार बीएयू की मदद से कामगारों को प्रशिक्षित करने का काम कर रही है। श्री सिंह ने कहा कि बिहार कृषि विश्वविद्यालय प्रशासन के द्वारा स्थापना दिवस के अवसर पर पोषक अनाजों के प्रति जागरूकता के लिए किसान वैज्ञानिक कृषि पदाधिकारी समागम कार्यक्रम और सर्टिफिकेट कोर्स की शुरुआत सराहनीय कदम है।
इस अवसर पर कृषि मंत्री ने विश्वविद्यालय परिसर में नवनिर्मित सेंट्रल लाइब्रेरी भवन, इनडोर स्पोट्स कंपलेक्स, यूजी, पीजी छात्रावास और टाइप वन,टू एवं फाइप भवनों का भी उद्घाटन किया। इसके पहले बिहार कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अरुण कुमार ने आगत अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि यह विश्वविद्यालय कृषि विकास और किसानों के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। राज्य के किसान कम लागत पर अधिक मुनाफे वाली खेती कर सकें इसके लिए उन तक जलवायु अनुकूल तकनीकों को पहुंचाया जा रहा है। इस दिशा में विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने सूखा को बर्दाश्त करने वाली सबौर हर्षित धान की किस्म और बाढ़-सुखाड़ में भी अच्छी पैदावार देने वाली सबौर संपन्न प्रभेद को विकसित करने में सफलता पाई है। जो किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है।
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