बाघ संरक्षण परियोजना के 50 साल
बाघ संरक्षण परियोजना के 50 साल Raj Express

बाघ संरक्षण परियोजना के 50 साल: भारत में 10 साल में एक हजार 104 बाघ की मौत

देश में बीते 10 साल में एक हजार 104 बाघ की मौत हो गई। इस साल 2023 में सिर्फ 46 दिन में 26 बाघ काल के गाल में समा गए। सबसे चौकाने वाले तथ्य यह है...
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भोपाल। देश में बीते 10 साल में एक हजार 104 बाघ की मौत हो गई। इस साल 2023 में सिर्फ 46 दिन में 26 बाघ काल के गाल में समा गए। सबसे चौकाने वाले तथ्य यह है कि देश में कुल हुई बाघ की मौत में से 53 फीसदी मौत टाइगर रिजर्व में हुई हैं। टाइगर स्टेट का तमगा प्राप्त मध्यप्रदेश में 11 साल में 279 बाघ दुनिया से विदा हो गए। 2023 में 15 फरवरी तक मप्र में 09 बाघ की मौतें हुई हैं। बीते साल 2022 में बाघ की मौत का आंकड़ा 34 दर्ज किया गया। साल 2018 की गणना के अनुसार 2967 और मध्यप्रदेश में 526, कर्नाटक में 524 टाइगर पाए गए थे। अप्रैल 2023 में बाघ परियोजना को 50 साल हो रहे हैं।

बीते पांच साल में देश में बाघ की मौत की संख्या में इजाफा हुआ है, मौत की संख्या इस तरह बढ़ती रही तो बाघों की कुल संख्या में गिरावट दर्ज होगी और फिर बाघ संरक्षण परियोजना के बजट और वन विभाग की जिम्मेदारी पर सवाल उठने लाजमी होंगे।

साल 1973 में वन्य प्राणियों विशेषज्ञों ने सरकार को बताया कि, बाघ की संख्या बहुत तेजी से घट रही है और अगर यही स्थिति रही तो कुछ ही वर्ष में भारत में बाघ विहिन हो जाएगा। कई रिपोर्ट के आधार पर उस समय की सरकार ने बाघ संरक्षण परियोजना शुरू की। परियोजना के शुरू (1973) होने के समय कुल बाघ की संख्या 5000 से घटकर 1,827 रिकार्ड की गई थी। 1973 के आंकड़ों के अनुसार बाघ परियोजना के 50 साल में 1140 बाघ ही बढ़े हैं। 2018 की गणना के अनुसार देश में बाघ की संख्या 2967 दर्ज की गई। इस मामले में वन्य प्राणी विशेषज्ञों का कहना है कि 2006 से मेन्युअल गणना होती थी इसलिए 1973 की गणना पर सटीक होने का भरोसा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि 50 साल में सिर्फ 1140 बाघ का बढऩा हजम नहीं किया जा सकता है। 2006 के बाद प्लास्टर ऑफ पैरिस के माध्यम से और अब वीडियो कैमरे की सहायता से गणना की जा रही है। इसे अब सटीक गणना मानी जाती है। वन विभाग अधिकारियों का कहना है कि साल में 250 शावक जन्म लेते हैं इनमें से अधिकांश जीवित रहते हैं। बाघ की औसत आयु 12 से 17 साल तक होती है। बाघ की प्राकृतिक मौत की संख्या अधिक है।

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350 करोड़ रुपए सालना का बजट

देश में बाघ संरक्षण पर हर साल लगभग 350 करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं, इसे कम करते हुए 2022 में 300 करोड़ का बजट जारी किया। इससे इतर राज्य सरकारें बाघ संरक्षण पर लगभग 110 करोड़ रुपए का खर्च करती हैं। बाघ संरक्षण परियोजना के लिए 11वीं पंच वर्षीय योजना में 600 करोड़ का बजट का प्रावधान किया गया था।

15 साल बाद भी कई प्रदेशों में टाइगर फोर्स का गठन नहीं

साल 2008 में उस समय की केंद्र सरकार ने सभी राज्यों में टाइगर फोर्स का गठन करने का प्रावधान किया था। 15 साल बाद भी कई राज्यों में फोर्स का गठन नहीं किया गया है, जिसमें टाइगर स्टेट मध्यप्रदेश भी शामिल है। देश में सिर्फ दो राज्य महाराष्ट्र और कर्नाटक में टाइगर फोर्स का गठन किया गया है। टाइगर फोर्स का कार्य न केवल बाघ की सुरक्षा करना है, बल्कि वन कटाई, अवैध खनन को रोकना भी है। इस वजह से कई राज्यों में इसका गठन नहीं किया जा रहा है।

बाघ की मौत के बड़े कारण

बाघ की लगातार हो रही मौत के प्रमुख कारणों में शिकार, विचरण की जगह पर्याप्त नहीं होना, भोजन के लिए जानवरों की कमी, जंगलों में बढ़ता मनुष्य का दखल शामिल है।

बाघ के अंगों का करोड़ों का व्यापार

भारत में बाघ के अंगों को उपयोग अधिक नहीं है, इसका बड़ा बजार चीन में है। भारत से बाघ का शिकार कर अंगों को अलग-अलग करने के बाद नेपाल के रास्ते चीन भेजा जाता है। एक अनुमान के अनुसार बाघ की खाल, दांत, हड्डियों सहित अन्य अंग मिलकर कुल दस से बीस लाख रुपए तक कीमत मिलती है। बाघ के पंजों के नाखून की कीमत चीन में 50 हजार रुपए से अधिक बताई जाती है। चीन में बनने वाली दवाओं में बाघ हड्डियों का उपयोग किया जाता है, इसलिए यहां बाघ की हड्डियों की अच्छी कीमत मिलती है।

2012 से 2022 तक राज्यों में हुई मौत

मध्यप्रदेश — 270

महाराष्ट्र— 184

कर्नाटक — 150

उत्तराखंड — 98

असम— 71

तमिलनाडू— 66

उत्तरप्रदेश— 56

केरल— 55

राजस्थान — 26

बिहार — 17

छत्तीसगढ़ — 16

पश्चिम बंगाल— 13

आंध्रप्रदेश —11

तेलंगाना — 9

ओडिशा — 02

गोवा — 04

नागालैंड — 02

दिल्ली — 02

झारखंड— 01

गुजरात — 01

अरूणाचंल — 01

कुल — 1,081

किस साल कितनी मौतें हुई

2012 — 88

2013— 68

2014— 78

2015— 82

2016— 121

2017— 117

2018— 101

2019— 96

2020— 106

2021 — 127

2022— 117

2023— 26

मप्र में 2023 में हुई मौत

02 जनवरी-कान्हा टाइगर रिजर्व

04 जनवरी- पन्ना टाइगर रिजर्व

11 जनवरी — सिवनी मैदानी इलाका

12 जनवरी — जमली, सतपुड़ा टाइगर रिजर्व

24 जनवरी — कान्हा टाइगर रिजर्व

24 जनवरी — शहडोल मैदानी इलाका

31 जनवरी — मंडला पन्ना टाइगर रिजर्व

03 फरवरी — कान्हा टाइगर रिजर्व

04 फरवरी — उमरिया मैदान

कुल — 09 मौत

साल दर — साल बढ़ी संख्या

2006— 1,411

2010— 1,706

2014— 2026

2018 — 2,967

वर्तमान में मौजूद प्रजाति - साइबेरियन टाइगर, रॉयल बंगाल टाइगर, व्हाइट टाइगर, इडोचाइनीज टाइगर, मलायन टाइगर, सुमात्रन

विलुप्त प्राजाति- बाली टाइगर, कैस्पियन टाइगर, जावन टाइगर।

वन्य प्राणी विशेषज्ञ अजय दुबे से बातचीत

सवाल- बाघों की मौत की संख्या क्यों बढ़ रही है?

जवाब- जिम्मेदारों का बाघ संरक्षण से ज्यादा अब पर्यटन पर ध्यान है। बाघों को पर्यटकों के आर्कषण का केंद्र के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, जबकि बाघ के आवास का एरिया लगातार कम होता जा रहा है। घास के मैदान कम होने से बाघ को शिकार करने के लिए जानवर नहीं मिल रहे है। जहां शिकार उपलब्ध होगा बाघ वहीं पाया जाएंगा।

सवाल- वन विभाग की क्या कमी है ? जिससे बाघ की मौतें नहीं थम रही।

जवाब- वन विभाग में पदस्थ अधिकारियों को जंगल का ज्ञान है, लेकिन वन्य प्राणियों (खासकर बाघ) को लेकर इनको प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है। वन्य प्राणियों के विशेषज्ञ अधिकारियों की पदस्थापना टाइगर रिजर्व में होना चाहिए। इसके अलावा वन विभाग में मैदानी पद रिक्त हैं, जिसकी वजह से गश्त और देखरेख पर असर पड़ता है। मैदान में अमला कम होने से शिकारियों को मौका मिलता है।

सवाल- शिकार पर रोकथाम क्यों नहीं लग रही है?

जवाब- शिकारियों को प्रकरण दर्ज कर न्याालय में चालान पेश में देरी, फिर सजा दिलाने में सफलता का प्रतिशत कम है। शिकारियों के मन में कानून का भय नहीं है। वहीं वन अमला भी इनसे निपटने में सक्षम नहीं।

सवाल- बाघ संरक्षण परियोजना का क्या औचित्य है?

जवाब- बाघ संरक्षण परियोजना से जंगल की जमीन सुरक्षित हुई है, वहीं बाघ के शिकार पर प्रतिंबध लगा। परियोजना से फायदा बहुत है, लेकिन जिम्मेदार सही तरीके अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं। उनका ध्यान बाघ को अनुकूल वातावरण देने की तरफ कम, बजट को ठिकाने लगाने पर ज्यादा है।

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