काम ऐसा करें कि आपको ही नहीं दूसरों को भी खुशी मिले : एक्टर संजय गगनानी
भोपाल, मध्यप्रदेश। जब आपके काम से आपको ही नहीं बल्कि दूसरों को भी खुशी मिलती है तो निश्चित ही आप सही रास्ते पर चल रहे हैं। आप ऐसा करियर चुनेंगे तो आपका काम बेहतर होगा साथ ही सफलता मिलने के अवसर भी बढ़ जाते हैं। यह मानना है सुपरहिट शो कुंडली भाग्य में पृथ्वी मल्होत्रा का किरदार निभा रहे एक्टर संजय गगनानी का। पिछले दिनों प्रवास पर भोपाल आए संजय ने राज एक्सप्रेस से खास बातचीत में बताया कि भोपाल की खूबसूरती से प्यार हो गया है। यहां के लोगों के व्यवहार में जो गर्माहट और अपनापन है, उसका मैं कायल हो गया हूं।
एंटरटेंमेंट इंडस्ट्री चुनने की वजह?
मेरे परिवार में कोई भी एंटरटेंमेंट इंडस्ट्री से नहीं है। लेकिन मैंने स्कूल, कॉजेल में मंच पर अभिनय करते वक्त जो खुशी महसूस की और दर्शकों के चेहरों पर खुशी के भाव देखे, तभी मैंने मन बना लिया था कि मैं सिर्फ एंटरटेंमेंट (अपने)और एंटरटेंमेंट (दर्शकों) के लिए ही काम करूंगा। बस फिर क्या था मुंबई पहुंच गया।
दर्शकों ने आपके रोल को विलेन हीरो का नाम दिया है, आपको यह सुनकर कैसा लगता है?
विलेन का रोल होने के बावजूद पांच साल से चल रहे शो में मेरे किरदार को दर्शकों का बहुत प्यार मिला है। विलेन के साथ हीरो शब्द का जुडऩा बताता है कि लोग मुझे हीरो मानते हैं।
ओटीटी प्लेटफार्म आने के बाद से फिल्मों, टीवी और कलाकारों पर क्या असर पड़ा है?
ओटीटी प्लेटफार्म आना इंडस्ट्री और कलाकारों के लिए सकारात्मक ही है। क्योंकि किसी भी फील्ड में डिमांड के अनुरूप ही सप्लाई होती है। डिमांड है, इसलिए फिल्में भी बन रहीं है, टीवी शो भी बढ़िया चल रहे हैं। ओटीटी प्लेटफार्म के आने से कलाकारों के लिए अवसर बढ़ गए हैं।
मुंबई में अपनी जगह कैसे बनाई? अपने जैसे फ्रेशर्स से क्या कहेंगे?
मैं साल 2010 में सूरत छोड़कर मुंबई आ गया। कोई भी फील्ड हो सभी में मेहनत करनी ही पड़ती है। एक्टर बनने से पहले मैंने मास मिडिया एण्ड फिल्म मेकिंग का कोर्स किया। दो साल में मैंने करीब चार सौ ऑडिशन दिए। उसके बाद बालाजी टेली फिल्मस के शो कुंडली भाग्य में रोल मिला। इस लाइन में सबके अपने अलग अनुभव होते हैं। किसी को मेहनत और किस्मत से जल्दी ब्रेक मिल जाता है तो किसी को थोड़ा समय लगता है। लेकिन कोशिश और मेहनत रंग लाती ही है।
आपके प्रेरणास्रोत कौन हैं?
मेरा परिवार, मां-पापा मेरे प्रेरणा स्रोत और स्पोर्ट सिस्टम हैं। जब मुबंई आया तो कमाई का साधन नहीं था। पता नहीं था कि काम कब मिलेगा? उस समय मेरे पापा राजू, मां स्मिता और भाई हर्षिल ने मुझे हर तरह से सपोर्ट किया और मेरा मनोबल बढ़ाए रखा।
आपको भोपाल कैसा लगा?
भोपाल की खूबसूरत लोकेश्नस, झील सभी जगह अमेजिंग हैं। सबसे ज्यादा अच्छे यहां के लोग हैं। यहां अतिथि देवो भव: वाला कल्चर देखने को मिला। लोगों के व्यवहार में जो गर्माहट और अपनेपन के भाव हैं, उसकी मैं जितनी तारीफ करूं कम है।
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