Indore : हाई कोर्ट ने कहा पत्नी के धैर्य को कमजोरी न समझें और रद्द की अग्रिम जमानत
इंदौर, मध्यप्रदेश। मप्र हाईकोर्ट ने अपनी पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के आरोपी पति की निचली अदालत से मिली अग्रिम जमानत रद्द कर उसे जेल भेजने के आदेश दिए। हाई कोर्ट ने निर्णय में कहा निचली अदालत ने आरोपी पति को अग्रिम जमानत देते समय पत्नी की ओर से भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत अपराध के खुलासे में देरी करने को आधार बनाया था, जो अनुचित है। जमानत रद्द करने की अर्जी पर फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा- यह अदालत इस तथ्य को नहीं भूल सकती है कि एक पत्नी उत्पीड़न या दुर्व्यवहार के प्रत्येक कृत्य की शिकायत करने के लिए पुलिस स्टेशन जाने में धीमी रहती है। पत्नी का पहला इरादा अपने विवाहित जीवन को बचाना और अपने ससुराल वालों के साथ-साथ उसके पति को पर्याप्त समय देना होता है, ताकि स्थिति में सुधार हो सके। पत्नी द्वारा दिखाए गए इस धैर्य को कमजोरी या झूठी कहानी बनाने का प्रयास नहीं माना जाना चाहिए। इस प्रकार यदि आवेदक (आरोपी की पत्नी) एक वर्ष तक चुप रही और उसने अपने माता-पिता को अपने पति द्वारा किए गए अप्राकृतिक यौन संबंध के बारे में कुछ नहीं बताया तो यह नहीं कहा जा सकता है कि चुप रहने का उसका आचरण और कुछ नहीं बल्कि देरी को समझाने का एक प्रयास है।
अभियोजन के अनुसार युवती को उसके पति (आरोपी) और उसके ससुराल वालों द्वारा दहेज के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा था। हालांकि अपने माता-पिता के गौरव को बचाने के लिए उसने अपने माता-पिता के साथ अपनी पीड़ा साझा किए बिना चुपचाप उत्पीड़न को सहन किया। इसके अलावा उसका पति नियमित रूप से उससे अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के लिए कहता था। इसका विरोध करने पर आरोपी ने उसे जान से मारने की धमकी दी। अंततः उसे उसके ससुराल वालों ने ससुराल से निकाल दिया, लेकिन उसने अपनी शादी को बचाने की उम्मीद में एफआईआर दर्ज कराने से पहले 10 महीने तक इंतजार किया। फिर कोर्ट की शरण ली।
कोर्ट ने कहा- दहेज के लिए महिला को मायके में रहने के लिए मजबूर करना क्रूरता :
अदालत ने कहा दहेज की मांग और उक्त मांग को पूरा न करने के कारण शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न करने के संबंध में विशिष्ट आरोप लगाए गए हैं। वहीं एफआईआर में आरोप है कि पति द्वारा अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के कृत्य के बारे में महिला ने अपने सास-ससुर को बताया था। दहेज की मांग पूरी न होने के कारण एक विवाहित महिला को अपने पैतृक घर में रहने के लिए मजबूर करना भी एक क्रूरता है। इन टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने युवती का आवेदन को स्वीकार करते हुए निचली कोर्ट द्वारा दी गई अग्रिम जमानत निरस्त कर आरोपी पति को पुलिस के समक्ष पेश होने के निर्देश दिए।
पति को मिल गई थी अग्रिम जमानत :
आरोपी पति ने निचली अदालत के समक्ष अग्रिम जमानत आवेदन लगाया था जिसे स्वीकार करते हुए निचली कोर्ट ने अग्रिम जमानत दे दी थी। अग्रिम जमानत आदेश से व्यथित होकर आवेदक पत्नी ने सीआरपीसी की धारा 439 (2) के तहत आरोपी की जमानत रद्द करने के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। युवती ने हाईकोर्ट में कहा कि निचली अदालत ने अग्रिम जमानत इस आधार पर दे दी कि एफआईआर दर्ज करने में देरी हुई। उसने कहा, "एफआईआर दर्ज कराने में इसलिए विलंब हुआ क्योंकि उसने अपना वैवाहिक घर छोड़ने के 10 महीने बाद और कथित अप्राकृतिक यौन संबंध के 13 महीने बाद अपराध दर्ज कराया। परंतु ऐसा करते समय महत्वपूर्ण तथ्यों पर विचार नहीं किया गया। उसने तर्क दिया कि अदालत यह मानने में विफल रही है कि उसकी पहली प्राथमिकता उसकी शादी को बचाना था। यदि कोई लड़की अपने विवाहित जीवन को बचाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है तो इस तरह के आचरण को अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के आरोपों (आरोप लगाने में हुई देरी के कारण) पर अविश्वास करने का आधार नहीं बनाया जा सकता है।"
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