Gwalior : ओमिक्रोन बीए-1 वैरिएंट से भी लोग हुए बीमार, 7 सैंपलों में पुष्टि
ग्वालियर, मध्यप्रदेश। कोरोना की तीसरी लहर में ग्वालियर में भी ओमिक्रोन के बीए-1 वैरिएंट ने लोगों को बीमार किया। इसकी पुष्टि रक्षा अनुसंधान विकास संस्थान (डीआरडीई) की लैब में भेजे गए ग्वालियर अंचल के 15 सैपलों की जांच में हुई है। रिपोर्ट डीआरडीई द्वारा जीआर मेडिकल कालेज को सौंप दी गई है। 15 में से 7 सैपलों की जांच में ओमिक्रोन का बीए-1 वैरिएंट पाया गया। 3 सैंपल में वायरल लोड अधिक होने से उसकी जीनोम सिक्वेंसिंग नहीं की जा सकी।
शासन के निर्देश पर जीआर मेडिकल ने 6 फरवरी को ग्वालियर, भिंड, मुरैना, श्योपुर, शिवपुरी, दतिया, गुना आदि जिलों के 15 कोरोना मरीजों के सैंपल जीनोम सीक्वेसिंग के लिए डीआरडीई को भेजे गए थे। डीआरडीओ को जीनोम सिक्वेंसिंग के लिये भेजे गये 15 सेम्पलों की जांच में से 7 सेम्पलों में ओमीक्रोन बीए-1 के पॉजिटिव मिले हैं। शेष 8 केस में से 6 सेम्पिल रिजेक्ट हो गए। तथा 2 सेम्पिल सीक्वेंसी में फेल हो गए हैं। जिन सात सेम्पलों में ओमीक्रोन बीए-1 वैरिएंट पाया गया है। उसमें से 5 ग्वालियर, 1 भिण्ड और 1 केस अशोक नगर का पोजिटव पाया गया है।
जीआर मेडिकल कालेज के माइक्रोबायोलाजी विभाग प्रभारी डॉ. वैभव मिश्रा का कहना है कि हर 15 दिन में 15 सैंपल डीआरडीई को जीनोम सीक्वेसिंग के लिए भेजे जाएंगे। डीआरडीई के डायरेक्टर डॉ. मनमोहन परिदा ने बताया कि जीनोम सीक्वेसिंग की रिपोर्ट जीआरएमसी को भेजी जा चुकी है। सभी सेम्पलों में ओमिक्रोन वैरिएंट की पुष्टि हुई है। ये रिपोर्ट पांच दिन बाद जीआरएमसी को प्राप्त हुई है।
बीए-1 और बीए-2 की हुई पुष्टि :
ग्वालियर सहित संपूर्ण देश में ओमिक्रोन बीए-1 व बीए-2 वायरस की ही अब तक पुष्टी हो सकी है। बीए-3 वैरिएंट भारत में कहीं नहीं मिला है। डीआरडीई वैज्ञानिक कोरोना संक्रमित पाए जाने पर डीआरडीई में उसके सैंपल की जांच में ओमिक्रोन बीए- 2 की पुष्टि जनवरी महीने में हो चुकी थी। इसके बाद डीआरडीई ने जीआर मेडिकल कालेज व सीएमचओ से जीनोम सीक्वेसिंग के लिए सैंपल की मांग की थी।
क्या होता है जीनोम सीक्वेसिंग?
कोशिकाओं के भीतर आनुवांशिक पदार्थ होता है। इसे डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक एसिड, राइबो न्यूक्लिक एसिड कहते हैं। इन सभी पदार्थों को सामूहिक रुप से जिनोम कहा जाता है। एक जीन की तय जगह और दो जीन के बीच की दूरी और उसके आंतरिक हिस्सों के व्यवहार और उसकी दूरी को समझने के लिए कई तरीकों से जिनोम मैपिंग या जिनोम सीक्वेंसिंग की जाती है। इससे पता चलता है कि जिनोम में किस तरह के बदलाव आए हैं। यानी ओमिक्रॉन की जिनोम मैपिंग होती है, तो उसके जेनेटिक मटेरियल की स्टडी करके यह पता किया जाता है कि इसके अंदर किस तरह के बदलाव हुए हैं। यह पुराने कोरोना वायरस से कितना अलग है। जिनोम में एक पीढ़ी से जुड़े गुणों और खासियतों को अगली पीढ़ी में भेजने की काबिलियत होती है। इसलिए अलग-अलग वैरिएंट मिलकर नया कोरोना वैरिएंट बनाते हैं। इनके अंदर पुरानी पीढ़ी के जीनोम व नए वैरिएंट की खासियत होती है। जिनोम के अध्ययन को ही जिनोमिक्स कहा जाता है।
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