50 रूपए का पेट्रोल हम तक आते-आते क्यों हो जाता है महंगा? जानिए कैसे तय होती है कीमतें?
राज एक्सप्रेस। पेट्रोल-डीजल की कीमतें भारत में हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रही हैं। खासकर पिछले कुछ सालों से इस मुद्दे को लेकर विपक्षी पार्टियां लगातार मोदी सरकार पर हमलावर रही है। विपक्ष का कहना है कि मोदी सरकार पेट्रोल-डीजल की कीमतों को कम करने में नाकाम रही है। वहीं दूसरी तरफ सरकार का कहना है कि, ‘तेल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय कारणों से घटती-बढ़ती रहती है।’ ऐसे में आज हम जानेंगे कि भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमत कैसे तय की जाती है?
क्रूड ऑयल :
पेट्रोल-डीजल की कीमतों में सबसे बड़ा रोल क्रूड ऑयल का होता है। वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक बैरल क्रूड ऑयल की कीमत 92 डॉलर है। एक बैरल में 159 लीटर होता है। यानि एक लीटर कच्चा तेल 46 रूपए के करीब आता है। क्रूड ऑयल की कीमतों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता है।
रिफाइनिंग सहित अन्य खर्च :
कच्चे तेल को सीधे उपयोग में नहीं लाया जा सकता है। उसे पहले रिफाइन किया जाता है। कच्चे तेल को रिफाइनिंग करने के अलावा भाड़ा, तेल कंपनियों का कमीशन, एंट्री टैक्स जैसे खर्च के चलते पेट्रोल-डीजल की कीमतों में 2 से 3 रूपए की बढ़ोतरी होती है।
एक्साइज ड्यूटी भी लगती है :
इसके बाद केंद्र सरकार पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर एक्साइज ड्यूटी वसूलती है। वर्तमान में सरकार एक लीटर पेट्रोल पर करीब 20 रूपए एक्साइज ड्यूटी के रूप में वसूलती है।
देना होता है राज्य सरकार को वैट :
केंद्र सरकार के बाद राज्य सरकार भी पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर वैट वसूलती है। अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग वैट लगाया जाता है। यही कारण है कि देश के अलग-अलग राज्यों में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में अंतर देखने को मिलता है। अमूमन राज्य सरकारें 10 रूपए से लेकर 30 रूपए तक वैट वसूलती है।
डीलर का कमीशन :
इन सभी चीजों के बाद जब पेट्रोल-डीजल आप तक पहुंचता है तो उसमें डीलर भी अपना कमीशन जोड़ लेता है। प्रति लीटर डीलर कमीशन 2 से 4 रूपए के बीच होता है।
रूपया :
पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर रूपया भी असर डालता है। अगर डॉलर के मुकाबले रूपया मजबूत होगा तो पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम होगी, वहीं अगर रूपए में गिरावट आती है तो कीमतों में इजाफा हो सकता है।
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