रक्षा मंत्रालय की ऐतिहासिक पहल, उन्नत संचार उपग्रह सुविधा प्रदान करने हेतु भारतीय सेना ने किया ISRO से करार
Indian Army-ISRO Deal : भारतीय सेना की ताकत से हर कोई वाकिफ है। वहीँ, अब इनकी ताकत में और इजाफा होने वाला है। भारतीय सेना को अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए, मौजूदा समय के हिसाब से समर्थ और कार्यक्षम बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसके लिए रक्षा मंत्रालय ने एक ऐतिहासिक पहल की है। इस ऐतिहासिक पहल के तहत रक्षा मंत्रालय ने साझेदारी की है। चलिए जानें क्या है मामला ?
रक्षा मंत्रालय की ऐतिहासिक पहल :
रक्षा मंत्रालय ने ऐतिहासिक पहल के तहत सेना के लिए उन्नत संचार उपग्रह सुविधा प्रदान करने के लिए इसरो (ISRO) से करार किया है। रक्षा मंत्रालय ने इस उन्नत सुविधा के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ISRO की वाणिज्यिक शाखा न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड के साथ 3000 करोड़ के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं। भारत की रक्षा अधिग्रहण परिषद ने अपनी परिचालन क्षमताओं को तेज करने के लिए मार्च 2022 में उपग्रह के लिए सेना के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी। सेना और ISRO के बीच होने वाले इस करार से भारतीय सैन्य बलोंं की ताकत बढ़ेगी।
ISRO करेगा सेना के लिए सैटेलाइट का विकास :
ISRO भारतीय सेना के लिए उन्नत सैटेलाइट का विकास करेगा। वर्तमान समय में वायुसेना और नौसेना दोनों के पास खुद की सैटेलाइट सुविधाएं हैं। अब यह सुविधा भारतीय सेना को भी मिलने जा रही है। रक्षा मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, 5 टन कैटेगरी में यह जियोस्टेशनरी सैटेलाइट अपनी तरह का पहला सैटेलाइट है। इसकी मदद से सैनिकों और स्ट्रक्चर के साथ साथ हथियार और हवाई प्लेटफार्मों के लिए लाइन ऑफ़ विज़न संचार से ऊपर कंट्रोल प्रदान करने के लिए इस संचार सुविधा का विकास किया जा रहा है। यह जियोस्टेशनरी सैटेलाइट उन्नत सुरक्षा सुविधाओं से लैस है जो जमीन पर तैनात सैनिकों की सामरिक संचार आवश्यकताओं को पूरा करेगा। साथ ही यह दूर से संचालित विमान, वायु रक्षा हथियार और अन्य महत्वपूर्ण मिशन प्लेटफार्मों को मजबूत करने में मदद करेगा।
इस साल तक मिल सकती सेना को सैटेलाइट की सुविधा :
भारतीय सेना को यह सैटेलाइट सुविधा साल 2026 तक मिलने की संभावना जताई जा रही है। यह सैटेलाइट सिस्टम सेना की नेटवर्क केंद्रित युद्ध क्षमताओं को मजबूत करेगा। वायु शक्ति अध्ययन केंद्र के महानिदेशकए एयर मार्शल अनिल चोपड़ा ने बताया कि अभी तक सेनाए वायु सेना के जी सेट 7ए उपग्रह पर निर्भर थी। भारतीय सेना ने रूस-यूक्रेन युद्ध में साइबर और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वॉर का विस्तृत अध्ययन किया है, जिससे ज्ञात हुआ कि विश्वसनीय उपग्रह संचार प्रणाली स्थापित करने की आवश्यकता है। साथ ही इसकी मदद से दूरस्थ क्षेत्रों में उच्च गति की इंटरनेट सेवाएं भी प्रदान की जा सकेंगी।
सैटेलाइट के लिए जरूरी उपकरण :
रक्षा मंत्रालय ने बताया कि, 'सैटेलाइट के विकास के लिए जरुरी उपकरण को स्वदेशी रूप निर्माण किया जायेगा। इसके लिए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम और स्टार्टअप की मदद ली जाएगी। इस डील से भारतीय सेना को मौजूदा दौर की चुनौतियों से निपटने में सक्षम बनाया जा सकेगा।' रक्षा मंत्रालय ने कहा कि, 'आज के युग में जिस तरह की चुनौतियां उभर रही हैं, उसमें सैन्य रणनीतियों में तकनीक का समावेश जरूरी हो गया है। यही वजह है दुनिया के सभी प्रमुख सैन्य बलों ने हाल के दिनों में तकनीकी विकास के लिए बड़ा बजट निर्धारित किया है। दक्षिण एशियां में भारत के सामने जिस तरह की चुनौतियां हैं, उन्हें देखते हुए सैन्य बलों को मजबूत तकनीकी सहयोग दिए जाने की जरूरत है। भारतीय सेना एक ओर नए नए स्टार्ट अप्स के माध्यम से स्वदेशी हथियारों पर निर्भरता बढ़ा रही है, तो दूसरी ओर नई सैन्य रणनीतियों का भी समावेश कर रही है।'
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