चीनी के निर्यात पर अक्टूबर तक लगी पाबंदी
चीनी के निर्यात पर अक्टूबर तक लगी पाबंदीसांकेतिक चित्र

चीनी के निर्यात पर अक्टूबर तक लगी पाबंदी

महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए ताबड़तोड़ कदम उठाते हुए सरकार ने चीनी के निर्यात को पहली जून से प्रतिबंधित श्रेणी में डाल दिया है और इसके तहत एक करोड़ टन चीनी के निर्यात की छूट दी जाएगी।
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नई दिल्ली। महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए ताबड़तोड़ कदम उठाते हुए सरकार ने चीनी के निर्यात को पहली जून से प्रतिबंधित श्रेणी में डाल दिया है और इसके तहत एक करोड़ टन चीनी के निर्यात की छूट दी जाएगी।

विदेश व्यापार महानिदेशालय द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार यह पाबंदी कच्ची चीनी, रिफाइंड चीनी और उबली हुई चीनी तीनों पर लागू होगी और 31 अक्टूब 2022 तक या किसी अगले आदेश तक लागू रहेगी।

खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग ने मंगलवार को एक विज्ञप्ति में कहा, "चीनी सत्र 2021-22 के दौरान देश में चीनी उपलब्धता और इसकी कीमत में स्थिरता बनाए रखने के लिए केंद्र सरकार ने चीनी के निर्यात को एक जून 2022 से अगले आदेश तक विनियमित करने का निर्णय लिया है।"

सरकार ने कहा है कि वह इस दौरान अधिकतम 100 लाख टन चीनी के निर्यात की छूट देगी। चीनी सत्र 2020-21 में भारत से करीब 70 लाख टन चीनी दूसरे देशों को भेजी गयी थी, जबकि निर्यात का लक्ष्य 60 लाख टन था। चालू सत्र में व्यापारियों ने करीब 90 लाख टन चीनी के निर्यात का अनु्बंध कर लिए हैं। बयान में कहा गया है कि इस सत्र में चीनी मिलों से निर्यात के लिए 82 लाख टन चीनी निकल चुकी है और इसमें से 78 लाख टन विदेश भेजी जा चुकी है।

यह पाबंदी यूरोपीय संघ और अमेरिका को सीएक्सएल और टीआरक्यू के तहत निर्यात की जाने वाली चीनी पर लागू नहीं होगी।

गौरतलब है कि सरकार ने महंगाई पर लगाम लगाने के लिए पिछले सप्ताह पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले उत्पाद शुल्क में क्रमश: आठ रुपये तथा छह रुपये प्रति लीटर की कटौती करने के साथ-साथ इस्पात, पीबीसी और सीमेंट के कच्चे माल की उपलब्धता बढ़ाने तथा उसे सस्ता करने के लिए शुल्कों में फेरबदल किया था।

सरकार ने आज ही खाद्य तेलों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए 20-20 लाख सोयाबीन तथा सूरजमुखी के कच्चे तेल के आयात पर दो साल तक शुल्क शून्य करने और कृषि अवसंरचना उपकर भी नहीं लगाने का फैसला किया है।

देश में अप्रैल में खुदरा मुद्रास्फीति करीब 7.79 प्रतिशत तक चढ़ गयी थी, जो रिजर्व बैंक के अधिकतम छह प्रतिशत तक सीमित रहने के लक्ष्य से काफी अधिक है।

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