SJVN Green Energy के 1000 करोड़ रुपए के 200 मेगावाट प्रोजेक्ट को महाराष्ट्र में मिली मंजूरी
राज एक्सप्रेस। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एसजेवीएन ने शनिवार को बताया कि उसकी हरित ऊर्जा की अनुषंगी कंपनी एसजेवीएन ग्रीन एनर्जी लिमिटेड (एसजीईएल) को महाराष्ट्र में 200 मेगावाट की सौर ऊर्जा परियोजना की अनुमति मिल गई है। इस परियोजना की लागत 1,000 करोड़ रुपए है। कंपनी ने शेयर बाजार को बताया कंपनी के पूर्ण स्वामित्व वाली एसजेवीएन ग्रीन एनर्जी लिमिटेड (एसजीईएल) को महाराष्ट्र राज्य बिजली वितरण कंपनी लिमिटेड (एमएसईडीसीएल) से स्वीकृति पत्र मिला है। कंपनी ने बताया कि यह परियोजना 18 माह के अंदर पूरी होगी। यह समय एमएसईडीसीएल के साथ ऊर्जा खरीद समझौता (पीपीए) होने की तिति से शुरू होगा। कंपनी ने बताया कि 1000 करोड़ रुपए से शुरू होने वाली इस परियोजना से पहले साल 45.55 करोड़ यूनिट बिजली का उत्पादन किया जाएगा। 25 साल की अवधि में कुल बिजली उत्पादन 1,048 करोड़ करोड़ यूनिट होगा।
5,13,560 टन कार्बन उत्सर्जन के कम होने की उम्मीद
इस परियोजना के शुरू होने से 5,13,560 टन कार्बन उत्सर्जन के कम होने की उम्मीद है। ग्रीन एनर्जी को लेकर देश में अब भी बहुत जागरूकता नहीं आई है। अधिकांश लोग ग्रीन एनर्जी को ठीक से नहीं समझे। क्या आप जानते हैं कि ग्रीन एनर्जी क्या होती है? दरअसल ग्रीन एनर्जी या अक्षय ऊर्जा, वह शक्ति है जिसको हम प्राकृतिक संसाधनों के जरिए हासिल कर सकते हैं। इसमें सूरज, हवा, बारिश, ज्वारभाटा आदि शामिल हैं। इनके माध्यम से हम अपनी ऊर्जा जरूरतें भी कम कर सकते हं और क्लाइमेट चेंज के खतरे को भी कम कर सकते हैं। एसजेवीएन, जिसे पहले सतलुज जल विद्युत निगम के नाम से जाना जाता था, एक भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है जो पनबिजली उत्पादन और पारेषण में शामिल है। इसे 1988 में नाथपा झाकड़ी पावर कॉरपोरेशन के रूप में शामिल किया गया था, जो भारत सरकार और हिमाचल प्रदेश सरकार के बीच एक संयुक्त उद्यम है। एसजेवीएन का मुख्यालय शिमला, हिमाचल प्रदेश में है।
ग्रीन एनर्जी के इस्तेमाल में ब्रिटेन से ऊपर है भारत
ग्रीन एनर्जी का इस्तेमाल करने वाले देशों में अमेरिका सबसे ऊपर है। अमेरिका जहां कोयले की खपत भी अधिक करता है, वहीं ग्रीन एनर्जी के इस्तेमाल में भी पीछे नहीं है। आंकड़े बताते हैं कि 2015 तक उसने इससे इतनी ऊर्जा पैदा की है जितनी ऊजा 7 करोड़ क्यूबिक आयल से हासिल होती है। इस तरह से अमेरिका का ग्रीन एनर्जी के इस्तेमाल में करीब 22 फीसदी शेयर है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इसमें विस्तार करने की जो नीति बनाई थी उसका अमेरिका को फायदा हो रहा है। अमेरिका, चीन और भारत जैसे बड़े देशों में कोयले की खपत अधिक होती है। अपनी जरूरत की ऊर्जा के लिए ये देश काफी हद तक इस पर निर्भर है। वहीं एक हकीकत यह भी है कि ये तीनों ही देश ग्रीन एनर्जी का इस्तेमाल करने वाले टाप-10 देशों की सूची में शामिल हैं। भारत लगातार ग्रीन एनर्जी के इस्तेमाल की तरफ आगे बढ़ रहा है। भारत का लक्ष्य जरूरत की ऊर्जा का करीब 25-30 फीसदी इससे ही प्राप्त करने का है। भारत के बाद ब्रिटेन, जापान और फ्रांस का नंबर आता है। एक ओर जहां प्रदूषण एक बड़ा संकट बनकर सामने आया है, वहीं विकासशील देशों में अब भी ग्रीन एनर्जी को लेकर उदासीनता दिखाई देती है। विकासशील देश आज भी अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भर हैं। विकासशील देशों में इसको लेकर नीति और नीयत दोनेां की ही कमी है।
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