तेल उत्पादन को लेकर सऊदी अरब का अमेरिका को झटका, अमेरिका बन बैठा सऊदी अरब का विरोधी
अमेरिका, बीते कुछ समय से ऐसा लग रहा है मानों अमेरिका एक तरह से सऊदी अरब का विरोधी बन बैठा है। इसका असर तेल के उत्पादन पर देखने को मिल सकता है। क्योंकि, हाल ही में OPEC प्लस देशों ने मुनाफा कमाने के लिए फैसला लिया था कि वे तेल के उत्पादन में कटौती करेंगे। जबकि सऊदी अरब के इस फैसले का मकसद तेल की कीमतों को कंट्रोल कर देश को आर्थिक मंदी से बचाना है। ऐसे में तेल की कीमतों में बढ़त दर्ज होने की पूरी उम्मीद है।
अमेरिका बन बैठा सऊदी अरब का विरोधी :
दरअसल, अमेरिका, सऊदी अरब की सुरक्षा की गारंटी 1945 से पिछले साल तक लेता आया है। हालांकि, आज सऊदी अरब एक बड़ी पॉवर के तौर पर ही जाना जाता है। क्योंकि, उसकी विदेश नीतियां अब पहले की तुलना में काफी मजबूत हो चुकी है। साथ ही उसके ईरान और तुर्किए से भी अरब के सम्बन्ध अब मजबूत हो रहे हैं। दूसरी तरफ अमेरिका चाहता है तेल की कीमतें कम हों, साथ ही तेल उत्पादन बढ़ाया जाना चाहिए। ऐसा माना जा रहा है कि, अमेरिका ऐसा सियासी कारणों के चलते चाहता है, जबकि सऊदी अरब बाजार मैनेज करने उत्पादन घटा रहा है। सऊदी अरब के इस फैसले से अमेरिका कुछ खफा है। ऐसे में इतना समझना असं हो जाता है कि, तेल के चलते ही दोनों में से कोई भी एक देश दुनिया को प्रभावित करेगा।
बाइडेन को उठाना पड़ सकता नुकसान :
नवंबर 2022 में अमेरिका में मिड टर्म चुनाव होने वाले हैं, अब अगर तेल की यह कीमतें बढ़ती हैं तो राष्ट्रपति बाइडेन को नुकसान उठाना पड़ सकता है। बाइडेन ने पहले ही स्ट्रैटिजिक पेट्रोलियम रिज़र्व से तेल निकालने की अनुमति दे दी थी। जिससे अब रिज़र्व में पिछले 40 वर्षों में तेल की मात्रा सबसे कम हो गई है। इसका असर प्राकृतिक आपदा या युद्ध की स्थिति में पड़ेगा क्योंकि हो सकता है तब जरुरत के हिसाब से पर्याप्त तेल न मिले। व्हाइट हाउस ने कहा कि, 'तेल उत्पादक देशों के सऊदी नेतृत्व वाले गठबंधन ने उत्पादन को कम करने के लिए रूस का पक्ष लिया है। राष्ट्रपति जो बाइडन रियाद के साथ अमेरिकी संबंधों का पुनर्मूल्यांकन करेंगे। OPEC प्लस देशों और मॉस्को के नेतृत्व वाले उसके 10 सहयोगियों ने नवंबर से प्रतिदिन दो मिलियन बैरल उत्पादन कम करने के अपने फैसले से व्हाइट हाउस को नाराज कर दिया है। आशंका है कि इस फैसले से तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं।'
सऊदी अरब बन रहा रूस का हिमायती :
इस पूरे मामले में अमेरिका ने सऊदी अरब को रूस का हिमायती बताना शुरू कर दिया है इधर रूस ने OPEC प्लस के फैसले का स्वागत किया है। हालांकि, OPEC के इस फैसले को रूस की तरफ झुकाव मानना गलत होगा।' उधर राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने बताया, 'मुझे लगता है कि राष्ट्रपति बहुत स्पष्ट हैं कि यह एक ऐसा रिश्ता है जिसका हमें पुनर्मूल्यांकन जारी रखने की जरूरत है। हमें फिर से विचार करने के लिए तैयार रहने की जरूरत है। निश्चित रूप से ओपेक के फैसले के संदर्भ में ऐसा किया जाना चाहिए।'
विदेश मंत्री प्रिंस का कहना :
सऊदी विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फरहान ने अल-अरबिया चैनल को बताया कि यह कदम विशुद्ध रूप से आर्थिक था और संगठन के सदस्य देशों द्वारा सर्वसम्मति से लिया गया था। ओपेक प्लस के सदस्यों ने जिम्मेदारी से काम किया और उचित निर्णय लिया। उधर, किर्बी ने कहा कि सऊदी अरब से रिश्ते को लेकर बाइडन कांग्रेस के साथ काम करने के लिए तैयार हैं। हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि अभी तक कोई औपचारिक चर्चा शुरू नहीं हुई है।
जानकारों के अनुसार :
अमेरिका के मामले को लेकर जानकारों का कहना है कि, 'अब अमेरिका के पास प्रोडक्शन बढ़ाने के सिवा कोई रास्ता नहीं है।' एक रिपोर्ट की माने तो, अमेरिका अब इस मामले में वेनेजुएला पर लगा प्रतिबंध हटा सकता है। हालांकि, इस मामले में अब तक कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। ऐसा इसलिए माना जा रहा है क्योंकि, वेनेजुएला कुछ दशक पहले तक तेल का बड़ा सोर्स था, लेकिन कुछ बिगड़ी परिस्थितियों और ट्रम्प के लगाए बैन ने यहाँ के हालात बिगाड़ दिए है।
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