बाधाओं के बावजूद 7 फीसदी गति से विकास जारी रखेगी अर्थव्यवस्था
समीक्षा में कहा गया है 2025 में भी 7% दर से जारी रहेगा विकास
यह सच हुआ तो चौथे साल 7 % या उससे ऊपर रहेगी आर्थिक विकास दर
राज एक्सप्रेस । वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में जोखिमों और अनिश्चितताओं के बावजूद घरेलू मांग की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था 2023-24 में 7 फीसदी या उससे अधिक गति से अपना विकास जारी रखेगी। एक आर्थिक समीक्षा में यह दावा किया गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2025 में भी 7 फीसदी की दर से विकास जारी रखेगी। इस आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि भारत अगले छह-सात सालों में यानी 2030 तक 7 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है। यह भारतीय लोगों के गुणवत्तापूर्ण जीवन स्तर हासिल करने की राह का एक अहम पड़ाव साबित होगा। यह देश के आर्थिक विकास की यात्रा में मील का पत्थर साबित होगा, जो भारतीय जनमानस की आकांक्षाओं से मेल खाता है।
यदि वित्तवर्ष 2025 के लिए पूर्वानुमान सही साबित होता है, तो यह महामारी के बाद चौथा वर्ष होगा जब भारतीय अर्थव्यवस्था 7% या उससे अधिक की दर से बढ़ेगी। यह भारत की प्रभावशाली उपलब्धि होगी, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लचीलेपन और क्षमता की गवाही देगी। वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने समीक्षा में कहा कि यह भविष्य के लिए अच्छा संकेत है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) का अनुमान है कि 2023-24 में अर्थव्यवस्था 7.3% की गति से विकास करेगी, जबकि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने चालू वित्त वर्ष के लिए 7% विकास दर का अनुमान लगाया है।
समीक्षा में कहा गया है कि घरेलू मांग की मजबूती ने पिछले तीन वर्षों में अर्थव्यवस्था को 7% से अधिक की विकास दर तक पहुंचा दिया है। समीक्षा में कहा गया है कि घरेलू मांग यानी निजी खपत और निवेश में जो मजबूती देखने को मिली है, उसकी उत्पत्ति पिछले दस सालों में सरकार द्वारा लागू किए गए आर्थिक सुधारों और उपायों से होती है। भौतिक और डिजिटल बुनियादी ढांचे में निवेश और विनिर्माण को प्रोत्साहन देने वाले उपायों से आपूर्ति पक्ष को मजबूती मिली है। समीक्षा में कहा गया है कि ये सभी कारण मिलकर सकारात्मक रूप से देश में आर्थिक गतिविधियों को गति प्रदान कर रहे हैं।
मौजूदा दौर में केवल भूराजनीतिक संघर्षों की वजह से बढ़ा जोखिम ही चिंता का विषय बना हुआ है। भविष्य के सुधारों के लिहाज से प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में कौशल विकास, सीखने की प्रवृत्ति का विकास, स्वास्थ्य, ऊर्जा सुरक्षा, एमएसएमई की कठिनाइयों में कमी और श्रम बल में लिंग संतुलन जैसे विषय शामिल हैं। समीक्षा में कहा गया है कि केंद्र सरकार द्वारा पिछले 10 सालों में किए गए सुधारों ने एक लचीले, साझेदारी-आधारित शासन पारिस्थितिकी तंत्र की नींव रखी है और अर्थव्यवस्था के सकारात्मक विकास की सामर्थ्य को बहाल किया है। समीक्षा में कहा गया है कि यह मानने की कई वजहें हैं कि भारत का आर्थिक और वित्तीय चक्र लंबा और मजबूत हो गया है।
इसका अर्थ है कि भारतीय अर्थव्यवस्था आने वाले सालों में निरंतर और तेज गति से विकास के लिए पूरी तरह से तैयार है। इसमें भू-आर्थिक विखंडन में वृद्धि और अति-वैश्वीकरण की मंदी सहित चार जोखिमों की पहचान की गई है। समीक्षा में कहा गया है कि वैश्विक बाजार के लिए चार प्रमुख जोखिम सामने आए हैं- भू-राजनीतिक तनावों के कारण भू-आर्थिक विखंडीकरण का बढ़ना, अति-वैश्वीकरण का ह्रास, मित्र-देशों के साथ व्यापार को प्राथमिकता देना और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने वाला ऑन-शोरिंग रुझान। इन कारकों के परिणामस्वरूप वैश्विक व्यापार में कमी आ सकती है।
इसकी वजह से वैश्विक विकास दर पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। सोमवार को जारी की गई इस समीक्षा में कहा गया है कि ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक विकास बनाम ऊर्जा संक्रमण के बीच समझौता एक बहुआयामी मुद्दा है। जिसके कई आयाम हैं, जो भूराजनीतिक, तकनीकी, राजकोषीय, आर्थिक और सामाजिक, और अलग-अलग देशों द्वारा अपनाई जा रही नीतिगत कार्रवाइयों व अन्य अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित कर रही हैं। समीक्षा में कहा गया है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का आगमन दुनिया भर की सरकारों के लिए एक बड़ी चुनौती है क्योंकि इससे रोजगार पर सवाल खड़े होते हैं, खासकर सेवा क्षेत्रों में।
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