हाइलाइट्स :
रिलायंस की अरामको डील हो सकती है खंडित
हाईकोर्ट ने रिलायंस और ब्रिटिश गैस से संपत्तियों की जानकारी मांगी
1994 में हुआ यह कॉन्ट्रैक्ट हो चुका है अब खत्म
सरकार ने दोनों कंपनियों को एसेट्स बेचने से रोकने की मांग की
राज एक्सप्रेस। कुछ समय पहले ही रिलायंस इंडस्ट्रीज (RIL) के ऑयल और केमिकल डिविजन और सऊदी अरामको की डील होने की खबरें सामने आई थीं। RIL कंपनी अरामको में 20 फीसदी निवेश करने जा रही थी। इस निवेश के तहत कंपनी 75 बिलियन डॉलर खर्च करने वाली थी। इस निवेश से जुड़ी जानकारी स्वयं रिलायंस इंडस्ट्रीज के CEO मुकेश अंबानी ने कंपनी की एनुअल जनरल मीटिंग के दौरान दी थी, लेकिन अब हो सकता है यह डील खंडित हो जाये।
डील खंडित होने का कारण :
खबरों के अनुसार, दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को रिलायंस और ब्रिटिश गैस से संपत्तियों से जुड़ी जानकारी देने को कहा है। इस मामले में केंद्र सरकार द्वारा दोनों ही कंपनियों को अपने एसेट्स बेचने से रोकने की मांग को लेकर सितंबर में अर्जी दायर की गई थी। जिसकी अगली सुनवाई 6 फरवरी को होने वाली है। जानकारी के लिए बता दें सरकार ने पन्ना-मुक्ता और ताप्ती (पीएमटी) फील्ड में रिलायंस और ब्रिटिश गैस कंपनी से जुड़े 30 हजार करोड़ रुपए (अमेरिकी करेंसी में 4.5 अरब डॉलर) के भुगतान विवाद को लेकर हाईकोर्ट में केस किया है। यह लड़ाई आर्बिट्रेशन अवॉर्ड की रकम पाने की है क्योंकि 1994 में हुआ यह कॉन्ट्रैक्ट अब खत्म हो चुका है।
रिलायंस इंडस्ट्रीज पर कर्ज :
जानकारी के लिए बता दें सरकार द्वारा कोर्ट को बताया गया है कि, रिलायंस इंडस्ट्रीज पर 2.88 लाख करोड़ रुपए की राशि का कर्ज है। इस कर्ज को चुकाने के लिए कंपनी अलग-अलग रास्ते अपना रही है, जिनमे संपत्तियों की बिक्री और ट्रांसफर भी शामिल हैं और कंपनी अगर लगातार ऐसे ही कदम उठाती रही तो, कंपनी के सरकार को चुकाने के लिए आर्बिट्रेशन अवॉर्ड के नाम पर कुछ भी नहीं बचेगा। इसके अलावा सरकार के पास रिलायंस की कारोबारी योजना की भी कोई जानकारी नहीं है। सरकार के कहना है कि, रिलायंस और ब्रिटिश गैस कंपनियों द्वारा प्रोडक्शन शेयरिंग कॉन्ट्रैक्ट को न मानते हुए काफी राशि स्वयं रख ली है।
कुछ मुख्य बिंदु :
सरकार द्वारा आर्बिट्रेशन अवॉर्ड के लिए यह केस 2010 से लड़ा जा रहा है।
साल 2016 में ट्रिब्यूनल ने सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया था।
सरकार के द्वारा दी गई दलीलों में, दोनों कंपनियों पर 3.8 अरब डॉलर का कर्ज बकाया है।
यह राशि ब्याज मिला कर 4.5 अरब डॉलर होती है। जिसका भुगतान रिलायंस और ब्रिटिश गैस से न मिलने के कारण ही सरकार को हाईकोर्ट का सहारा लेना पड़ा था।
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