राज एक्सप्रेस। देश में कोरोना की एंट्री के बाद से सबसे ज्यादा अगर कोई चीज बढ़ी है तो वो महंगाई ही है। आज भारत के हर क्षेत्र में महंगाई बढ़ती जा रही है। यहीं बढ़ती महंगाई कृषि क्षेत्र में भी देखने को मिल रही है। इसी के चलते गेहूं की कीमतें लगातार बढ़ती जा रही हैं। इन बढ़ती कीमतों के चलते ही केंद्र सरकार ने तत्काल प्रभाव से गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने जैसा बड़ा फैसला लिया। इस फैसले के बाद दुनियाभर में कोहराम सा मच गया है। सरकार के इस फैसले से सबसे ज्यादा प्रभाव G-7 देशों के ग्रुप पर पड़ता नजर आरहा है। इसी का असर है कि, G-7 ने इस फैसले की आलोचना की है।
G-7 ने की सरकार के फैसले की आलोचना :
दरअसल, रुस और यूक्रेन के युद्ध के चलते सभी देशों का हाल कुछ बेहाल सा होता नजर आरहा है क्योंकि, जबकि दो देशों के बीच युद्ध होता है तो वो उसका असर उन दोनों देशों के अलावा कई देशों पर होता है। यही कारण है कि, भारत में पिछले 80 दिनों में महंगाई काफी बढ़ गई है। इसी के चलते गेंहू की कीमतें भी काफी बढ़ गई हैं। इसलिए भारत सरकार गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के लिए मजबूर हो गई। जिससे देश में अनाज की कमी न हो। इस फैसले के बाद G-7 देशों के ग्रुप भारत सरकार के इस फैसले की आलोचना करते नजर आये हैं। मामले में लोगों के लगातार बयान सामने आए। बता दें, फरवरी में रूस द्वारा यूक्रेन पर किये हमले के बाद सप्लाई की चिंताओं से वैश्विक गेहूं की कीमत काफी अधिक बढ़ गई। जबकि, रूस और यूक्रेन दोनों ही देश गेहूं के बड़े एक्सपोर्टर हैं।
जर्मनी के कृषि मंत्री का कहना :
जर्मनी के कृषि मंत्री केम ओजडेमिर ने सरकार के फैसले को लेकर कहा कि, 'भारत के इस कदम से दुनियाभर में कमोडिटी की कीमतों का संकट और ज्यादा बढ़ जाएगा। अगले महीने जर्मनी में जी-7 शिखर सम्मेलन में इस मुद्दे को उठाया जाएगा। इस सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी भाग लेंगे।' ज्ञात हो कि, गेहूं उत्पादन के मामले में भारत का नाम दुनियाभर के देशों की लिस्ट में दूसरे नंबर पर है। भारत में हर साल लगभग 107.59 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन होता है। भारत के प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों में उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और गुजरात के नाम शामिल हैं।
क्यों लगाया प्रतिबंध ?
बताते चलें, अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमत 60% तक बढ़ गई हैं। गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के दो प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं। इनमेँ से
पहला कारण - गेहूं की सरकारी खरीद कम होना है।
दूसरा कारण - गेहूं के भंडार खाली होने का डर।
बता दें, बीते साल मौसम में आई खराबी का बुरा असर गेहूं की फसल पर पड़ा था, इसी एक चलते पैदावार भी कम हुई। ऐसे हालातों में सरकार को यह डर सता रहा था कि, आने वाले समय में गेहूं के भंडार खाली न हो जाएं। इसी डर के चलते यह फैसला लिया गया है। हालांकि, प्रतिबंध लगाने के दिन यानी 13 मई तक जिन देशों के अपरिवर्तनीय ऋण पत्र (LOC) जारी किए गए हैं, उसके निर्यात की अनुमति है।
पीयूष गोयल का कहना :
पिछले महीने केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि, 'साल 2022-23 में गेहूं का निर्यात 100 लाख टन पार कर जाएगा।' हालांकि, अब सरकार अपने फैसले को बदल रही है। जिसका विरोध कुछ किसान संगठन करते नजर आए। किसान संगठनों का कहना है कि, 'इस फैसले से गेहूं के दाम घटेंगे, जिससे किसानों को नुकसान होगा। हालांकि, कुछ संगठनों का कहना है कि इससे आम लोगों को गेहूं उचित कीमत पर मिलेगा।'
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