हाइलाइट्स
भारतीय मार्केट में चाइनीज वर्चस्व
भारतीय आयात का प्रमुख केंद्र चीन
कुल आयात में चाइनीज हिस्सा 19%
घर तक ऐसे बनाई ड्रेगन ने अपनी पैठ
बॉलीवुड में जैकी फार्मूला की खास डिमांड
राज एक्सप्रेस। भारत में विदेशी कंपनियों के व्यापार पर ज्यादा अंकुश न होने के कारण चीन की कंपनियों ने सभी अवसरों को भुनाया है। भारतीय बाजार में चीन की कंपनियों ने दूरदर्शी रणनीति से सेंध लगाई है। आज तीज-त्यौहार से लेकर मनोरंजन तक में चीन एंट्री मार चुका है।
भारत में चाइना -
साल 2018 के वित्तीय वर्ष के चार महीनों में भारत ने चाइना से तकरीबन 23 बिलियन डॉलर के लगभग सामग्री को आयात किया। इसमें मोबाइल फोन, उनके उपकरण और अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामग्री को मिलाकर कुल आंकड़ा सर्वाधिक 4.4 बिलियन डॉलर के आस-पास है। इसके बाद औद्योगिक मशीनरी पर 1.16 बिलियन डॉलर की तर्ज पर कम्प्यूटर हार्डवेयर का योगदान 1.3 बिलियन डॉलर रहा। इसे पढ़िये - चाइना छोड़ने वाली कंपनियों के लिए “सेज़” तैयार
आयात पर नज़र –
वेबसाइट ट्रेडिंगइकोनॉमिक्स डॉट कॉम (tradingeconomics.com) के अनुसार भारत में चीन के आयात का औसत 1991 से 2020 तक 127.03 INR बिलियन था। यह औसत वर्ष 2018 के सितंबर में 467.49 INR बिलियन के उच्च स्तर पर पहुंच गया। भारत में चीन से आयात फरवरी में घटकर 317.64 INR बिलियन हो गया जो कि 2020 के जनवरी में 429.55 INR बिलियन था।
Ceic का डाटा -
दुनिया के देशों की अर्थव्यवस्था संबंधी सूक्ष्म एवं वृहद आंकड़ों पर नजर रखने वाली वेबसाइट ceicdata ने मासिक आधार पर 1990-2020 के दौरान भारत के कुल आयात संबंधी वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के आंकड़े दर्शाए हैं।
इसके मुताबिक भारत का कुल आयात पिछले महीने के 31.2 USD bn के मुकाबले अप्रैल 2020 में 17.1 बिलियन यूएस डॉलर (USD bn) दर्ज किया गया।
वेबसाइट पर मासिक आधार पर तय किया गया 1990 से 2020 तक का भारत का आयात डाटा उपलब्ध है। एजेंसी ने इसका औसत 11.3 USD bn बताया है। मई 2019 में यह डाटा अपने सर्वकालिक उच्च 46.7 USD bn तक जा पहुंचा था। जबकि इसमें जुलाई 1991 में 1.3 USD bn की कमी देखी गई।
ताजा रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत के कुल आयात में YoY आधार पर अप्रैल 2020 में 58.6% की गिरावट देखी गई है। इसी तरह कुल निर्यात में भी 60.3% की कमी आई।
चाइनीज कंपनियां की फर्राटा चाल -
यदि क्रूड ऑयल और सोने के आयात को छोड़कर चाइना के आयात पर विचार किया जाए तो कुल आयात में चाइनीज उत्पाद का हिस्सा एक समय 19 फीसद के लगभग था। अब इस बंदरबांट में यदि हॉन्ग कॉन्ग के योगदान को भी शामिल कर लिया जाए तो सभी आयात पर यह लगभग 24 प्रतिशत रहा।
मौजूदा समय में यदि भारत के प्रमुख आयात साझेदारों की बात करें तो यह आंकड़ा चीन (कुल आयात का 16 प्रतिशत), संयुक्त राज्य अमेरिका (6 प्रतिशत), संयुक्त अरब अमीरात (6 प्रतिशत), सऊदी अरब (5 प्रतिशत) और स्विट्जरलैंड (5 प्रतिशत) है।
आयात की धुरी -
दूसरे अर्थों में कहा जा सकता है कि; भारत के लगभग एक चौथाई आयात का मुख्य केंद्र बिंदु चीन या फिर हॉन्ग कॉन्ग है। इसमें भी कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि भारतीय घरों में यदि कोई आयातित वस्तु है तो फिर वह विशुद्ध रूप से चाइना की होगी।
कहना गलत नहीं होगा कि; भारतीय बाजार यदि रेसकोर्स है तो इस पर अधिपत्य जमाने के लिए जारी फार्मूला वन रेस में चाइनीज कंपनियां फर्राटा भर रही हैं।
भावना जनमानस की -
1962 के युद्ध के बाद भारतीय सुरक्षा से जुड़े प्रमुख सुरक्षा मुद्दों ने भारतीय जनमानस में पैठ की है। भारतीय जनमानस चीनी वस्तुओं की व्यापक उपस्थिति को खौफ और गुणवत्ता के मामले में तिरस्कार का पर्याय भी मानता है।
घर तक पैठ -
कुछ सालों पहले तक 'मेड इन चाइना' का मतलब था स्थानीय स्टोर या सुपर मार्केट में बेचे जाने वाली दिखावटी साज सज्जा खरीदना! या फिर दिवाली के बाजार में पटाखों की खरीद! इस बीच सभी छोटे ब्रांड्स के बीच एक नाम एक अलग लीग में अलग खड़ा होने में कामयाब रहा "लेनोवो"!
लोकप्रिय ब्रांड -
लेनोवो कई मायनों में एक छद्म चीनी ब्रांड ही था। साल 2005 में आईबीएम के पीसी व्यवसाय का अधिग्रहण करने के बाद, आईबीएम से लेनोवो के क्रमिक संक्रमण ने उत्तरार्द्ध में इसे भारत में एक लोकप्रिय ब्रांड बना दिया। कम से कम उस वर्ग में जिनके पास खुद का पीसी था या उपयोग किया जाता था। इसे पढ़िये - Zoom, Google Meet के विकल्प बतौर सरकार ने चुने Zoho, HCL और अन्य 8
लेनोवो का हिस्सा –
साल 2006 में लेनोवो की भारतीय बाजार में 7.3 फीसद की हिस्सेदारी थी। इसके कुछ साल बाद साल 2012 में उसका IBM से करार समाप्त होने से लेनोवो का हिस्सा बढ़कर 15.8 फीसद तक पहुंच गया। सनद रहे लेनोवो ने यह दोगुनी हिस्सेदारी महज छह सालों के भीतर हासिल कर डाली।
आज की स्थिति में लेनोवो का भारतीय बाजार में बड़ा हिस्सा है। कई मायनों में लेनोवो उन सभी चीनी ब्रांडों का ध्वजवाहक है जिनका वह कभी पालन करना था।
“हमारा पीसी वॉल्यूम वित्त वर्ष 2020-21में दोगुना होने की संभावना है। हम वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान भारत में लगभग नंबर एक पीसी कंपनी होंगे। इसमें लगभग 32 प्रतिशत (यानी, +10.5 अंक साल-दर-साल) हिस्सेदारी की संभावना है।”
राहुल अग्रवाल, सीईओ और एमडी, लेनोवो इंडिया
बारी Xiaomi की –
पांच साल पहले साल 2015 में भारत में श्याओमी (Xiaomi) का पदार्पण हुआ। Xiaomi ने भारतीय बाजार में सेंध लगाने के लिए एक बेहतरीन उत्पाद, चतुर वितरण और विपणन के संयोजन के साथ ही सबसे अहम लगभग सही मूल्य निर्धारण का तरीका अपनाया।
2019 की पहली तिमाही के अंत में श्याओमी की हिस्सेदारी 30.6 प्रतिशत थी, जो सैमसंग से कहीं आगे थी, जो 22.3 प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ दूसरे स्थान पर रही।
लेकिन 2019 की तीसरी तिमाही तक, Xiaomi की बाजार हिस्सेदारी 27.1 प्रतिशत तक गिर गई। आईडीसी के आंकड़ों से पता चला है कि सैमसंग को भी गिरावट का सामना करना पड़ा, क्योंकि उसका हिस्सा 18.9 प्रतिशत तक नीचे चला गया।
इनसे मिल रही टक्कर -
भारत में OPPO, Vivo, Realme और OnePlus के उल्लेखनीय प्रदर्शन को देखते हुए, Xiaomi को बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण बाजार हिस्सेदारी में गिरावट का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि इंडियन मार्केट में Xiaomi इस समय भारतीयों के बीच सबसे प्रसिद्ध और प्रचलित चाइनीज ब्रांड बन चुका है। मौजूदा दौर में Xiaomi, Vivo और Honor को मिलाकर चीनी फोन निर्माता भारत के स्मार्ट फोन मार्केट में तकरीबन 50 फीसद से अधिक हिस्सेदारी रखते हैं।
ऐप्स से सेंध -
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अलावा चाइना ने ऑन लाइन एप्लिकेशंस की दुनिया में भी सेंध लगाई है। भारत में उपयोग किए जा रहे प्रमुख ऐप्स में टिकटोक, विगो, यूसी न्यूज़, न्यूज़ डॉग, क्लब फैक्ट्री, यूसी ब्राउज़र और Shein व्यक्तिगत श्रेणियों में तेजी से सफलता के पायदान चढ़ रहे हैं। इसे पढ़ें- चाइनीज CEOs ने कैसे की तगड़ी कमाई?
चाइनीज चका -
एक और श्रेणी है जिस पर चाइनीज कंपनियां तेजी से हावी हो रही हैं वह है "टायर" उद्योग। ट्रक और बस के रेडियल सेगमेंट में चाइनीज ब्रांड का शेयर साल 2016-17 में आश्चर्य जनक रूप से 23 प्रतिशत रहा।
चाइना का नया विकल्प -
बाजार अध्ययन से पता चलता है भारतीय बाजार में चीन का आक्रमण जल्द समाप्त होने की संभावना नहीं है। दरअसल लोकप्रिय इलेक्ट्रॉनिक्स ब्रांडों के बाद चीनी ऑटो कंपनियों की गिद्ध दृष्टि भारतीय ग्राहकों पर है।
नए अवतार तैयार -
एक स्वीडिश ब्रांड Volvo अब Geely के स्वामित्व में है। Geely का मर्सिडीज बेंज के निर्माता डेमलर में 10 प्रतिशत अधिकार है। SAIC मोटर कॉर्पोरेशन अपने मॉरिस गैरेज (MG) ब्रांड के माध्यम से जल्द ही भारत में प्रवेश करेगा। यह हालोल, गुजरात में एक संयंत्र स्थापित कर रहा है।
BYD जो कि एक बस निर्माता के तौर पर ख्यात है। अब भारत में एक संयंत्र स्थापित करने के लिए पूरी तरह से तैयार है जबकि इसकी बिक्री पहले ही शुरू हो चुकी है। भारत में जल्द ही अन्य ऑटो कंपनियों के लॉन्च होने की संभावना है, जिनमें चेंगैन (Changan), डोंगफेंग (Dongfeng) और ग्रेट वॉल मोटर्स कंपनियों के नाम प्रमुख हैं।
बॉलीवुड में दखल -
यहां तक कि बॉलीवुड में भी चाइनीज दखल देखा जा सकता है। दरअसल मोबाइल, पीसी या ऐप कंपनियों के देश में प्रवेश करने से बहुत पहले तक सबसे पहचाना जाने वाला अगर कोई चीनी नाम था तो वो था "जैकी चैन"। वैसे तो जैकी चैन हॉन्ग कॉन्ग से हैं, लेकिन वह अब चीन का हिस्सा हो चला है।
जैकी चैन ने 1980 के दशक से अपनी फिल्मों के साथ भारतीय जनमानस में लोकप्रियता हासिल की थी जो आज तक जारी है। कहना गलत नहीं होगा वास्तव में, जैकी आज भारत के कई राजनेताओं से भी अधिक लोकप्रिय हैं।
जैकी फार्मूला –
फाइट, कुछ रोमांस, कुछ त्रासदी और कुछ कॉमेडी वाला जैकी चैन की फिल्मों का फार्मूला भारतीय दर्शकों को खासा पसंद है। वो एक शोमैन हैं और उनकी फिल्मों में बॉलीवुड फिल्मों के मात्र दो तड़के नहीं दिखते वो हैं गाना और नाचना। हालांकि कुंगफू योगा और मिथ में वो बॉलीवुड का तड़का लगाते दिख चुके हैं।
आखिर चाइनीज कंपनियों की भारत में इतनी रुचि क्यों है? बिजली, मशीनरी, धातु से लेकर परिवहन तक में चाइनीज कंपनियों की कितनी हिस्सेदारी है। समयकालिक बदलावों के भारत में क्या होंगे परिणाम? अलीबाबा और चालीसों कंपनियों ने कैसे लगाई इंडियन मार्केट में सेंध? राज एक्सप्रेस की खास श्रृंखला के आर्टिकल क्यों सुहाता है भारत चाइनीज इन्वेस्टर्स को? में जानिये -
डिस्क्लेमर – आर्टिकल प्रचलित रिपोर्ट्स पर आधारित है। इसमें शीर्षक-उप शीर्षक और संबंधित अतिरिक्त प्रचलित जानकारी जोड़ी गई हैं। इस आर्टिकल में प्रकाशित तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं होगी।
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