हाइलाइट्स –
कच्चे तेल की कीमत का असर
एविएशन सेक्टर की लागत बढ़ी
ट्रांसपोर्टर्स पर पड़ रहा सीधा असर
उपभोक्ता हित अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित
राज एक्सप्रेस। भारत धीरे-धीरे कोविड -19 की दूसरी अशांत लहर के थपेड़ों से उबर रहा है। परंतु एक पैमाना अभी भी असुविधा पैदा कर रहा है। किसी अर्थव्यवस्था को गति देने वाला यह कारक गतिरोध निर्मित कर रहा है। यह कारक है कच्चा तेल (crude oil)।
जान लीजिये साल 2021 में अभी तक, ब्रेंट क्रूड (Brent crude) की कीमत 43% तक बढ़कर 74 डॉलर प्रति बैरल हो गई है।
आयात पर निर्भरता -
भारत अपनी अधिकांश कच्चे तेल की आवश्यकताओं की पूर्ति आयात से करता है। जाहिर है कच्चे तेल की ऊंची कीमतों का देश के चालू खाता घाटे (सीएडी/CAD) और मुद्रास्फीति पर नकारात्मक प्रभाव क्रिया की प्रतिक्रिया होगी।
समाचार वेबसाइट लाइवमिंट (livemint) पर पल्लवी पेंगोंडा, हर्षा जेठमलानी के इस विषय आधारित एक आर्टिकल में कच्चे तेल (crude oil) की कीमत के अन्य बिजनेस सेक्टर्स से अंर्तसंबंधों पर प्रकाश डाला गया है। इसमें डीबीएस बैंक (DBS Bank) से जुड़ी वरिष्ठ अर्थशास्त्री ने राय रखी है।
तेल की कीमतों में $ 10 की प्रत्येक वृद्धि से भारत का चालू खाता घाटा देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 0.4% बढ़ जाता है। इस साल खपत में धीमी वापसी से आंशिक रूप से पूर्ण प्रभाव की भरपाई होगी।
राधिका राव, वरिष्ठ अर्थशास्त्री, डीबीएस बैंक (DBS Bank)
हालांकि राव ने कुछ सकारात्मक तथ्यों पर भी ध्यानाकृष्ट किया है। उनके मुताबिक निर्यात यहां सुरक्षा कवच का काम कर सकता है।
वरिष्ठ अर्थशास्त्री के मुताबिक "वित्त वर्ष 22 में बेहतर आर्थिक गतिविधि के कारण आयात में बढ़ोतरी के बाद दूसरी लहर से चालू खाते की शेष राशि में सुधार की उम्मीद है। साथ ही मजबूत निर्यात की स्थिति से गिरावट की सीमा सीमित होगी।"
ओपेक का रोल -
कैपिटल इकोनॉमिक्स के एशिया अर्थशास्त्री डैरेन ए ने पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन ओपेक (Opec) की नीति के आधार पर अनुमान लगाया है।
हम अगले छह महीनों में ब्रेंट क्रूड के 70-75 डॉलर प्रति बैरल के बीच व्यापार करने का अनुमान लगा रहे हैं क्योंकि ओपेक + अपनी तेल आपूर्ति सीमित रखता है।
डैरेन ए, एशिया के लिए अर्थशास्त्री, कैपिटल इकोनॉमिक्स
ऑयल ऑन द बॉयल -
कच्चे तेल की ऊंची कीमतें ज्यादातर कंपनियों के लिए बुरी खबर है, जो पिछले साल के लॉकडाउन में ढील के बाद देखी गई रिकवरी गति में ठहराव का सामना कर रही हैं। जानने के लिए सेक्टर्स पर डालते हैं सरसरी नजर।
उड्डयन (Aviation) - कच्चे तेल की कीमत का एविएशन (उड्डयन) सेक्टर से गहरा नाता है। विमानन टर्बाइन ईंधन (Aviation turbine fuel) एयरलाइनों की परिचालन लागत का एक बड़ा हिस्सा है। स्वभाविक है महंगे कच्चे तेल से एविएशन सेक्टर का लाभ प्रभावित होता है।
जुलाई 2020 में ब्रेंट क्रूड की कीमत औसतन 43 डॉलर प्रति बैरल थी। इस साल जुलाई में अब तक कीमतें औसतन 74 डॉलर प्रति बैरल रही हैं। हालांकि यहां ध्यान रखना होगा कि यात्री भार कारक लागत में उछाल की भरपाई के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
ऑटोमोबाइल (Automobiles) – कच्चे तेल की ऊंची कीमतें पेट्रोल और डीजल की ऊंची कीमतों में तब्दील हो जाती हैं। इससे उपभोक्ता मांग के लिए मुद्रास्फीति का जोखिम पैदा होता है।
कच्चे तेल की कीमत का अंर्तसंबंध ऑटोमोबाइल सेक्टर के साथ प्रत्यक्ष रूप से है। इसका दूसरे सेक्टर्स पर अप्रत्यक्ष असर है। माल परिवहन वाहन परिचालन की लागत का यदि लगभग 40-45% भाग ईंधन है तो उच्च कीमतों की दशा में परिवहन लागत 10% तक बढ़ना तय है।
इसका मतलब माल ढुलाई दरों में भी वृद्धि जरूरी है, जो मौजूदा माहौल में आसान नहीं है। संभव है इस स्थिति में ट्रांसपोर्टर्स को नुकसान हो रहा है। स्पष्ट है कि यह निकट अवधि में वाणिज्यिक वाहनों की मांग के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
दूसरी ओर, तेल की ऊंची कीमतों के कारण यात्री कारों की मांग पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। दरअसल महामारी के दौरान स्वास्थ्य सुरक्षा की आवश्यकता के तहत लागत मुद्रास्फीति कम हो जाती है। इसी तरह दोपहिया वाहनों की मांग पर कच्चे तेल की ऊंची कीमतों का असर कम दिख रहा है।
सीमेंट (Cement) - कच्चे तेल की ऊंची कीमतों का सीमेंट फर्मों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। महंगे कच्चे तेल से पेटकोक (पेट्रोलियम कोक) की कीमतें बढ़ती हैं। प्रतिक्रिया स्वरूप माल ढुलाई लागत भी बढ़ जाती है। संभव है लागत बढ़ने से उत्पादक का मार्जिन कम हो जाएगा। बिजली और ईंधन खर्च क्षेत्र (Cement sector) की कुल परिचालन लागत का 25-30% है।
पेंट (Paint) - रंग-बिरंगे रंगों से घरों को रौनक पहुंचाने वाली पेंट कंपनियों के लिए क्रूड ऑयल की अधिक कीमतें काले सपने से कम नहीं। इस सेक्टर की कंपनियों की इनपुट लागत का एक बड़ा हिस्सा कच्चे तेल से जुड़ा है। एशियन पेंट्स लिमिटेड के जून तिमाही के नतीजे में भी यही तस्वीर नजर आती है। डेटा एनालिस्ट्स के मुताबिक "मार्जिन तस्वीर अब उतनी अच्छी नहीं है।"
ब्रोकर के मुताबिक कीमतों में बढ़ोतरी वित्त वर्ष 2021 के स्तर से 480 आधार अंकों की गिरावट के बावजूद वित्त वर्ष 2022 में लगभग 4% वर्ष-दर-वर्ष हुई है।
बोक्रर के अनुसार मार्जिन पूर्वानुमानों को 70-90 आधार अंकों तक कम कर दिया है। यदि बिक्री की कीमतें जल्द ही गति नहीं पकड़ती हैं (या इनपुट लागत कम नहीं होती है) तो, अधिक कटौती का पालन किया जा सकता है।
उपभोक्ता (Consumer) - फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स (एफएमसीजी/FMCG) फर्मों को कच्चे माल की ऊंची कीमतों का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। कच्चे तेल की कीमत बढ़ने से कच्चे माल और पैकेजिंग लागत में भी वृद्धि होती है।
निवेशकों को यह देखना चाहिए कि कंपनियां मार्जिन को बचाने के लिए कीमतों में कितनी बढ़ोतरी करती हैं। एक्सपर्ट्स की राय है कि हालांकि अल्पावधि में मार्जिन प्रभावित होता है, यह बड़ी संगठित फर्मों और मजबूत ब्रांडों के पक्ष में संतुलन को झुकाता है। साथ ही उच्च ईंधन व्यय परिवारों के खर्च गणित पर दबाव डालता है।
सीधे शब्दों में कहें तो आय में पर्याप्त वृद्धि नहीं होने और उपभोक्ताओं द्वारा ईंधन पर अधिक खर्च करने से इसका अंर्तसंबंध है। ऐसे में उपभोक्ता विवेकाधीन उत्पादों की मांग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
तेल कंपनियां (Oil companies) - तेल और प्राकृतिक गैस कार्पोरेशन लिमिटेड (Oil and Natural Gas Corp. Ltd) और ऑयल इंडिया लिमिटेड (Oil India Ltd) जैसे ईंधन उत्पादक कच्चे तेल की ऊंची कीमतों के कुछ सबसे बड़े लाभार्थी हैं। इससे उनको मूल्य प्राप्ति में सुधार हासिल होता है।
लेख में वर्णित सेक्टर्स से जुड़ी प्रमुख कंपनियों के मार्केट रुझान से कुछ संकेत मिलते हैं। शेयरों के मूल्यांकन से पता चलता है कि निवेशकों ने तेल की कीमतों में बढ़ोतरी को अपने हित में लिया है।जैसे ही हम दूसरी लहर से उबरेंगे और टीकाकरण की गति तेज होगी, सभी की निगाहें मांग में सुधार की गति पर टिकी रहेंगी।
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डिस्क्लेमर –आर्टिकल प्रचलित रिपोर्ट्स पर आधारित है। इसमें शीर्षक-उपशीर्षक और संबंधित अतिरिक्त प्रचलित जानकारी जोड़ी गई हैं। इस आर्टिकल में प्रकाशित तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं होगी।
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