हाइलाइट्स –
बजट में दिखेगी ग्रीन टोन
Net zero emission लक्ष्य होगा सामने
अक्षय स्रोतों पर बजट में हो सकता है खास
राज एक्सप्रेस। ग्रॉस डॉमेस्टिक प्रोडक्ट्स (GDP/जीडीपी) यानी भारत का सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2030 तक 8.5 ट्रिलियन डॉलर से 10 ट्रिलियन डॉलर के बीच बढ़ने का अनुमान है। हम उम्मीद कर सकते हैं कि हर बजट बीच के वर्षों में आवश्यक दर पर अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए मंच प्रदान करेगा, लेकिन प्रत्येक का अपना संदर्भ होगा। इस साल का बजट ऐसे समय में आया है, जब माहौल हरा-भरा है।
पीएम की प्रतिबद्धता -
भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन (Net zero emission) का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता की घोषणा के 92 दिनों के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश करेंगी। यह प्रतिज्ञा 2030 के लिए सकल घरेलू उत्पाद की आकांक्षाओं और बजट के साथ गुंथी हुई है।
यूनाइटेड नेशंस एनवायरनमेंट प्रोग्राम (United Nations Environment Programme) यानी संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने हमेशा की तरह व्यापार संगठनों को चेतावनी दी है कि इस सदी में वैश्विक तापमान में 3 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि होगी। यह अर्थव्यवस्थाओं के लिए विनाशकारी हो सकता है। शोध का कहना है कि अगर वैश्विक तापमान अपनी मौजूदा दर से बढ़ता है तो विश्व अर्थव्यवस्था 2050 तक अपने मूल्य का 10 प्रतिशत गवां सकती है।
भारत सहित दक्षिण एशिया दायरे में
यदि ऐसा होता है तो; भारत सहित दक्षिण एशिया, जलवायु परिवर्तन से खोने वाले सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में से एक होंगे। विश्व बैंक का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण क्षेत्र में 2030 तक वार्षिक आर्थिक नुकसान औसतन 160 बिलियन डॉलर के आसपास हो सकता है।
यह आर्थिक विकास और रोजगार सृजन के माध्यम से आबादी के एक बड़े हिस्से को गरीबी से बाहर निकालने के प्रयासों को कमजोर कर सकता है। आशा की किरण यह है कि यदि क्लाइमेट एक्शन पर्याप्त और सफल रहता है तो इस क्षेत्र को सबसे अधिक लाभ भी होगा। हम इसके लिए मार्ग प्रशस्त करने हेतु बजट की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
शक्ति का संतुलन -
एक व्यापक उम्मीद है कि बजट कार्बन उत्सर्जन (carbon emission) में तेज कमी के माध्यम से भारत की अर्थव्यवस्था के डीकार्बोनाइजेशन से निपटने के लिए एक वर्ग को समर्पित होगा।
ग्लासगो में COP26 में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि; भारत अपनी कार्बन तीव्रता सकल घरेलू उत्पाद के प्रति यूनिट कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को 2030 तक 45 प्रतिशत तक कम कर देगा। जो कि 35 प्रतिशत की कमी के पिछले लक्ष्य से अधिक है। हम यह भी उम्मीद कर सकते हैं कि बजट प्रधानमंत्री द्वारा घोषित हाइड्रोजन मिशन को आगे ले जाएगा।
हमारे पास मजबूत संकेत हैं कि 2030 तक 500 GW अक्षय ऊर्जा के लक्ष्य की ओर बढ़ने का दृष्टिकोण एक हद तक हाइब्रिड बिजली संयंत्रों पर ध्यान केंद्रित करके सौर और पवन जैसे अक्षय स्रोतों में आंतरायिकता के मुद्दे को हल करने के लिए एक प्रभावी तरीके के रूप में संचालित होगा।
पूरक ईंधन के उपयोग सबंधी उदाहरण के लिए, दिन में सौर और रात में हवा जनित ऊर्जा उपयोगी है। हाइब्रिड नवीकरणीय ऊर्जा की विश्वसनीयता, सामर्थ्य और स्थिरता के त्रि-आयामों को प्रस्तुत करते हैं।
इसमें जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं, इस मिश्रण में भंडारण समाधान (storage solutions) पेश किए जाने चाहिए। अंतरिम में, ये सभी सह-अस्तित्व में हो सकते हैं क्योंकि हम नवीकरणीय स्रोतों में वृद्धि के साथ जीवाश्म ईंधन में कमी को संतुलित करते हैं।
जैसे ही नई तकनीक की संक्रांति होती है, नई पीढ़ी की अक्षय ऊर्जा को प्रवाहित करने और बिना किसी व्यवधान के इसे प्रबंधित करने में ग्रिड की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। इसमें डिजिटल टेक्नोलॉजी (Digital Technologies) और डेटा एनालिटिक्स (Data Analytics) अहम भूमिका निभाएंगे।
संक्रमण का प्रबंधन
यह संक्रमण केवल डेटा के बारे में नहीं हो सकता है। कई कंपनियों की किस्मत और सैकड़ों हजारों व्यक्तियों की आजीविका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोयला अर्थव्यवस्था से जुड़ी हुई है। इसलिए, नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy) में परिवर्तन को समझदारी से प्रबंधित करने की आवश्यकता है।
यहां तक कि 2030 के ऊर्जा उत्पादन लक्ष्यों के लिए भी 50 प्रतिशत ताप विद्युत (Thermal Power) ऊर्जा की आवश्यकता होगी यह भारत की ऊर्जा संक्रमण यात्रा के लिए दो चीजें आवश्यक बनाता है।
पहला नैचुरल गैस (Natural Gas) - सबसे पहले, प्राकृतिक गैस (Natural Gas) वर्तमान से भविष्य के लिए एक उत्कृष्ट सेतु हो सकती है। गैस टरबाइन प्रौद्योगिकी विश्वसनीय, लचीली और टिकाऊ ऊर्जा का उत्पादन करके ऊर्जा सुरक्षा प्रदान कर सकती है जो अक्षय ऊर्जा स्रोतों का समर्थन और पूरक है।
इसे "ग्रिड फर्मिंग" के रूप में जाना जाता है। भारत के पास पहले से ही बड़ी गैस परिसंपत्तियां मौजूद हैं। हम ग्रिड संतुलन के साथ ऊर्जा प्रवाह को सुगम बनाने के लिए उनका उपयोग कर सकते हैं।
दूसरा प्रोद्योगिकी प्रयोग - चूंकि आने वाले कई वर्षों तक कोयला दूर नहीं जा रहा है, इसलिए हम थर्मल प्लांटों से हानिकारक उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग कर सकते हैं।
सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन वायुमंडल में प्रतिक्रिया करके एयरोसोल कण बनाता है, जो धुंध के प्रकोप में योगदान देता है और जलवायु को नुकसान पहुंचाता है। हम में से कई लोग हर साल उत्तर भारत में खतरनाक वायु गुणवत्ता स्तरों से पीड़ित होते रहते हैं।
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हरित वित्त (Green finance) -
प्रधान मंत्री की प्रतिज्ञा के कुछ दिनों बाद, ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद ने एक रिपोर्ट जारी की जिसमें कहा गया था कि भारत को 2070 तक नेट जीरो एमिशन (Net zero emission) यानी शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए 10 ट्रिलियन डॉलर के संचयी निवेश की आवश्यकता होगी।
यह उस वैश्विक आकलन के अनुरूप है जिसमें बताया गया है कि; जलवायु परिवर्तन की सेहत के लिए दुनिया को 100 ट्रिलियन डॉलर से अधिक की आवश्यकता है।
यह सरकारों और निजी क्षेत्र के बीच साझेदारी से ही संभव है। हम उड़ान (फ्लाइट/flight) के भविष्य में टिकाऊ विमानन ईंधन को महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए भी देखते हैं। उड़ान का भविष्य इस सवाल पर निर्भर है कि विमानन उद्योग; उत्सर्जन को कम करने और ईंधन दक्षता में सुधार करने के लिए कैसे नवाचार करता है?
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डिस्क्लेमर – आर्टिकल जीई साउथ एशिया के अध्यक्ष महेश पलाशिकर के विचारों एवं बिजनेस रिपोर्ट्स पर आधारित है। इसमें शीर्षक-उप शीर्षक और संबंधित अतिरिक्त जानकारी जोड़ी गई हैं। इसमें प्रकाशित तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं होगी।
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