राज एक्सप्रेस। सरकारी बैंकों को शिक्षा ऋण में बड़ा नुकसान हुआ है। एजुकेशन लोन में जितना कर्ज दिया गया है, उसका 9.95 फीसदी पैसा एनपीए हो गया है। यानी यह पैसा डूब गया। बैंकों को वापस नहीं मिला है। इसकी कुल रकम 8587 करोड़ रुपए रही है। एनपीए वह रकम होती है जो बैंकों को वापस नहीं मिलती है। सरकार ने संसद के बजट सत्र में यह जानकारी दी है। 31 दिसंबर 2020 तक कुल एजुकेशन लोन में 3 लाख 66 हजार 260 खाते ऐसे रहे हैं जिन्होंने लोन का पैसा बैंकों को नहीं चुकाया है। पैसा न चुकाने की मुख्य वजह यह है कि कोरोना में एक तो लोगों के रोजगार छिन गए और दूसरी ओर इनकम भी घट गई। देश में बैंकों ने 2019 तक एजुकेशन सेक्टर को 66902 करोड़ रुपए का लोन दिया था। हालांकि 2017 सितंबर में यह 71975 करोड़ रुपए था। दरअसल एजुकेशन लोन में अगर 4 लाख रुपए तक का लोन है तो बैंक इसके लिए कोई भी गारंटी या कोलैटरल की मांग नहीं करता है। 4 से 7.5 लाख रुपए तक के लोन पर पर्सनल गारंटी मांगी जाती है। हालांकि बैंक चाहें तो यह सब मोल भाव कर कम ज्यादा कर भी सकते हैं। आंकड़े बताते हैं कि 2018-19 में एजुकेशन लोन में एनपीए 8.29 फीसदी था। जबकि 2017-18 में यह 8.11 फीसदी था। 2019-20 में यह 7.61 फीसदी था। यानी पिछले तीन सालों में 2020-21 में एजुकेशन लोन में एनपीए काफी बढ़ गया है। तीनों सालों में इस साल सबसे ज्यादा एनपीए रहा है।
एजुकेशन लोन का एनपीए सबसे टॉप पर :
मुख्य कैटिगरी में एजुकेशन लोन एनपीए के मामले में सबसे टॉप पर रहा है। हाउसिंग सेक्टर से लेकर कंज्यूमर ड्यूरेबल और रिटेल लोन का एनपीए 1.52 फीसदी से लेकर 6.91 फीसदी रहा है। जबकि एकुजेशन में यह करीबन 10 फीसदी के आस-पास रहा है।
इंजीनियरिंग कोर्स में सबसे ज्यादा एनपीए :
बैंकों ने इस दौरान इंजीनियरिंग कोर्स के लिए लोन बढ़ा भी दिया था। पर इस सेक्टर में कुल 1 लाख 76 हजार 256 बैंक खातों में 4041 करोड़ रुपए एनपीए हो गए। जानकारों के मुताबिक, कई सारे ऐसे फैक्टर्स रहे हैं, जिनकी वजह से यह एनपीए बढ़ा है। रोजगार न होने और इनकम घटने से वित्तीय संकट लोगों के सामने आया, जिससे कर्ज चुकाने में उनको दिक्कतें आईं। जानकारों के मुताबिक, कोरोना के दौरान लोगों ने इस तरह के कर्ज चुकाने को महत्व नहीं दिया। एजुकेशन लोन एक असुरक्षित लोन माना जाता है। बैंक इसमें बहुत ही सोच-समझकर लोन देते हैं। ऐसे मामले में बैंक कोई असेट्स भी कर्जदार का नहीं ले सकता है। क्योंकि इसमें ज्यादातर मामलों में कर्ज के एवज में कोई गारंटी भी नहीं ली जाती है। हाउसिंग लोन में चूंकि प्रॉपर्टी ही मॉर्गेज होती है, पर एजुकेशन लोन में यह नहीं होता है।
दक्षिण भारत सबसे आगे रहा :
कुल शिक्षा ऋण में दक्षिण भारत का हिस्सा सबसे ज्यादा है। इसका हिस्सा इस एनपीए में 65 फीसदी है। कुल एजुकेशन लोन 8587 करोड़ रुपए था, जिसमें तमिलनाडू का 3490.75 करोड़ रुपए रहा है। कुल आउटस्टैंडिंग लोन में तमिलनाडु का हिस्सा 20.3 फीसदी रहा है जबकि बिहार में 25.67 फीसदी हिस्सा रहा है। बता दें कि केंद्र सरकार ने इस तरह के लोन के लिए मोरोटोरियम भी लागू किया था जो 2020 में सितंबर तक लागू था। हालांकि रोजगार छिनने की वजह से यह मोरोटोरियम भी एजुकेशन लोन के लिए कोई मदद बैंकों की नहीं कर पाया। इनकम घटने और रोजगार की मुश्किल होने के कारण लोगों ने लोन चुकाने के फैसले को पीछे रख दिया। काफी सारे छात्रों ने कोर्सेस से ड्रॉप आउट भी कर लिया। खासकर इंजीनियरिंग में यह ज्यादा मामला सामने आया है। मार्च समाप्त होते-होते इस वित्त वर्ष में इस लोन के एनपीए और बढऩे की आशंका है।
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