हाइलाइट्स –
नोटबंदी, GST, अब COVID-19
युवाओं के हाथ से छिना रोजगार
त्योहारी सीजन में वापसी की आस
युवा कार्यबल के केंद्र भारत को झटका
राज एक्सप्रेस। जब से कोरोना वायरस महामारी ने आतंक बरपाया है, जमीन, हवा, पानी से जुड़े आजीविका के सभी साधन हवा-हवाई हो गए। अब सवाल उठता है कि नवरात्र से शुरू होने वाले फेस्टिव सीजन में क्या रोजगार के साधन फिर बहाल होंगे?
"COVID-19 से किस आयु वर्ग के रोजगार पर क्या असर पड़ा? साथ ही रोजगार की आगे क्या संभावनाएं हैं?" संग जानें जवाब राज एक्सप्रेस की पड़ताल में...
जनरेशन पैंडेमिक –
इतिहास में शायद ही ऐसा दौर कभी पहले आया था कि नाराज प्रकृति के कारण पूरी दुनिया को सांप सूंघ गया हो। दोष भले ही चीन का हो लेकिन ड्रेगन की करतूत के कारण दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं डांवाडोल हो गईं।
क्या राजा, क्या रंक सब एक बिसात में खड़े-बैठे नजर आ रहे हैं। विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत समेत अमेरिका, यूरोप जैसे देशों में भी रोजगार का संकट पैदा हुआ है। कोरोना जनित मंदी की मार 30 साल के भीतर की उम्र के वर्ग पर सबसे ज्यादा पड़ी है। इस दौर को कुछ लोग जनरेशन पैंडेमिक का भी नाम दे रहे हैं।
भारत पर तगड़ी चोट –
भारत में दुनिया के मुकाबले युवाओँ की संख्या सर्वाधिक है। ऐसे में लॉकडाउन के कारण स्नातक युवाओं के रोजगार पर डाका पड़ा है। अर्थशास्त्रियों को डर है कि संरचनात्मक रोजगार के मुद्दे उनके भविष्य और आने वाली पीढ़ियों को प्रभावित कर सकते हैं।
मार्च में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस के फैलाव को देखकर भारतीयों की सुरक्षार्थ देश में जनता कर्फ्यू लागू कर लोगों से सहयोग की अपील की थी। यह लॉकडाउन इसके बाद कई बदलावों के साथ सितंबर में आज भी लागू है। कहीं कम तो कहीं ज्यादा।
परिवारों पर संकट –
शहरों के कॉल सेंटर से लेकर डिलीवरी पर्सन का काम कर परिवार के भरण-पोषण में किसी तरह हाथ बंटा रहे युवा इस कारण गावों में स्थित अपने घरौंदों को लौटने मजबूर हो गए। गैर साधन संपन्न वर्ग की हालत खस्ता होती चली गई। छोटी गुमटियों से गुजर-बसर करने वालों के हालात किसी से नहीं छिपे।
नौकरियों का टोटा –
शुरुआत में तो मध्यम और छोटे रोजगार देने वालों ने भी किसी तरह अपने कारोबार की गाड़ी को खींचा लेकिन बाद में उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिये। आलम यह है कि व्यापारी कर्ज के तले दबे हैं ऐसे में वे पुराने कामगारों को दोबारा नियमित काम पर रखने में असमर्थता जता रहे हैं।
स्थिति इतनी विकराल है कि एक भी दिन का नागा करने पर वेतन कटौती करने वाले मालिकों के पास अब देने को काम नहीं है और वे अपने कर्मचारियों से सप्ताह में दो से चार दिन का ही काम ले रहे हैं। इसमें भी कम या अनियमित वेतन के मामले में कर्मचारियों को समझौता करना पड़ रहा है।
भूत-वर्तमान-भविष्य –
उच्च शिक्षा में निवेश करने वाले युवाओं को काम खोजने में बहुत मुश्किल हो रही है। संभावित रूप से उनकी भविष्य की संभावनाओं पर भी कुठाराघात हुआ है। यह कालखंड निश्चित रूप से भावी पीढ़ियों को भी प्रभावित करेगा। महामारी का इसमें अहम रोल होगा।
वैश्विक तौर परयुवा कामकाजी कम कुशलस्तर के पदों पर नियुक्त किए जाते हैं। नियोक्ता भी उन्हें प्रशिक्षण देने में अपेक्षाकृत कम निवेश करते हैं। नतीजतन नौकरी देने वाले के लिए अक्सर कठिन परिस्थिति में इस वर्ग की नौकरियों पर कुल्हाड़ी चलाना आसान होता है।
इन सेक्टर्स पर मार -
अटलांटिक काउंसिल थिंकटैंक के अनुसार रिटेल, हॉस्पिटैलिटी और टूरिज्म जैसे सेक्टरों में युवाओं को अधिक प्रतिनिधित्व दिया जाता है। सोशल डिस्टेंसिंग के दौर में इन सेक्टरों को तगड़ी मार पड़ी है जिससे अप्रत्यक्षतः इससे जुड़ा रोजगार भी समाप्त होता चला गया।
ILO की चेतावनी -
मई में इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (ILO) यानी अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने चेतावनी दी थी कि COVID-19 से उपजी आर्थिक गिरावट "कई युवाओं को पीछे कर सकती है।
यह स्थिति उन्हें स्थायी रूप से नौकरी के अवसर से तक बाहर कर सकती है। कहा तो यह भी जा रहा है कि वायरस से जुड़ी स्याह विरासत हमारे साथ दशकों तक रह सकती है।
ILO का यह भी कहना है कि महामारी से दुनिया के युवा प्रभावित हो रहे हैं। एक रिपोर्ट में ILO ने अनुमान लगाया है कि; छह में से एक युवा व्यक्ति इस दौर में अपनी नौकरी से हाथ धो बैठेगा। दुनिया की सबसे अधिक युवा आबादी वाले भारत में इस मान से हालात को समझा जा सकता है।
CMIE का डाटा -
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के संकलित आंकड़ों के मान से 15 से 29 वर्ष की आयु के बीच के लगभग 41 प्रतिशत लोग मई में बेरोजगार हो गए। साल 2018-19 में यह आंकड़ा 17.3 प्रतिशत रहा।
सीएमआईई का कहना है कि अप्रैल में 20 से 30 साल की उम्र के बीच के 27 मिलियन लोगों की नौकरी चली गई।
प्रकाशित रिपोर्ट में सीएमआईई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी महेश व्यास ने माना कि;"महामारी का दीर्घकालिक प्रभाव बहुत गंभीर होगा और इसे ठीक करने में भी लंबा समय लगेगा। भविष्य के लिए युवा बचत नहीं कर पाएंगे इस वजह से अगली पीढ़ी प्रभावित होगी।"
भारत को नुकसान -
विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार भारत के सिकुड़ते रोजगार बाजार का मतलब है 1.3 मिलियन भारतीय हर महीने कार्यबल में शामिल होंगे।
COVID-19 महामारी से सृजन के मामले में अहम अवसर भुनाने भारत की क्षमता खतरे में है। जग जाहिर है भारत के पास दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी है।
एक अध्ययन के मुताबिक साल 2040 तक भारत में कामकाजी-उम्र के लोगों का अनुपात उन पर आश्रितों (बच्चों और बड़े लोग) की संख्या से आगे निकलने की उम्मीद है।
इस अवस्था को अर्थशास्त्री "जनसांख्यिकीय लाभांश" के रूप में संदर्भित करते हैं। लेकिन महामारी के कारण हुई भारी आर्थिक क्षति पर विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि भारत को इस लाभ से चूकने की भी आशंका है।
अर्थव्यवस्था पहले से ही काफी धीमी हो रही थी और अब लॉकडाउन ने सब कुछ खराब कर दिया। यदि युवा पीढ़ी को नौकरी नहीं दी जाती है, तो जनसांख्यिकीय लाभांश एक जनसांख्यिकीय दानव बन जाएगा।
नौकरियां डेड-एंड में अटक गईं, विकल्प बंद हो गए महामारी से पहले भी, नौकरी तलाशने वाले युवाओं के लिए भारत सबसे कठिन स्थानों में से एक था। भले ही देश में कामकाजी वर्ग की उम्र बढ़ती जा रही है, लेकिन श्रम बाजार में सक्रिय युवा श्रमिकों का अनुपात भी गिर रहा है।
विश्लेषकों का कहना है कि महामारी से उत्पन्न श्रम अधिशेष अब उनकी पहले से ही बेकार हो चुकी रोजगार की संभावनाओं को बिगाड़ देगा।
आशंका लाजिमी -
युवा लोग कम वेतन और खराब कामकाजी परिस्थितियों को स्वीकार करने के लिए तैयार होंगे, क्योंकि वे जीवन जीने के लिए बहुत बेताब हैं। जो भी नौकरी मिल सकती है उसे स्वीकार करना एकमात्र विकल्प होगा भले ही यह नौकरी उनकी शिक्षा या कौशल के अनुकूल न हो!
समस्याओं का निदान जरूरी -
भारत में COVID-19 के मामले अभी भी बढ़ रहे हैं, वर्तमान संकट की लंबाई और गंभीरता का अनुमान लगाना कठिन है। कुछ विश्लेषक वायरस के नियंत्रित होने के बाद एक यू-टर्न यानी पलटाव वाली अर्थव्यवस्था के प्रति आशान्वित हैं।
अन्य विश्लेषक चेतावनी देते हैं कि यदि आर्थिक मंदी के संरचनात्मक मुद्दों को नजरअंदाज किया जाता है, तो रोजगार के मोर्चे पर प्रगति सीमित होगी।
विश्लेषकों की यह सलाह भी है कि; महामारी के कारण अर्थव्यवस्था की जो कमियां उजागर हुई हैं (विशेषकर रोजगार के संदर्भ में) उसके निदान के लिए यह एक यथेष्ठ अवसर भी है।
नोटबंदी फिर जीएसटी अब महामारी –
इन तीन घटकों पर गौर करें तो पहले नोटबंदी से सामयिक उथल-पुथल पैदा हुई, फिर जीएसटी के गणित ज्ञान में सुधी वर्ग उलझा, अब कोरोना वायरस महामारी ने उद्योग-धंधों से लेकर रोजगार के तमाम साधनों पर ताला जड़वा दिया है।
कंपनियों के पास नई क्षमता में निवेश करने के लिए कोई जगह नहीं है। यदि कोई निवेश नहीं है, तो कोई नई नौकरी नहीं है और यह समस्या जारी है।
IHS Markit की रिसर्च -
शोध फर्म आईएचएस मार्किट (IHS Markit) के एक सर्वेक्षण के अनुसार, जून 2019 में व्यावसायिक धारणा 10 साल के निचले स्तर पर आ गई।
सरकार ने कॉरपोरेट टैक्स में कटौती और बैंकिंग क्षेत्र में तरलता बढ़ाने जैसे उपायों के माध्यम से निजी क्षेत्र के विश्वास को पुनर्जीवित करने की कोशिश की है। इस बारे में आलोचकों का कहना है कि इसे और अधिक करने की आवश्यकता है।
सराहनीय लेकिन चिंतनीय भी -
महामारी के दौरान कई राज्य सरकारों ने औद्योगिक गतिविधि को पुनर्जीवित करने के लिए कुछ श्रम नियमों को निलंबित कर दिया।
उत्पादकता बढ़ाने के लक्ष्य के मान से यह विचार सराहनीय है लेकिन इस टारगेट को पाने के चक्कर में काम करने की परिस्थितियों में गिरावट से भी इनकार नहीं किया जा सकता। इस फैसले से कामकाजी वर्ग के अधिकार भी प्रभावित होंगे।
प्रोत्साहन पैकेज -
नई दिल्ली में बाहर के युवाओं के लिए विशिष्ट उपायों की घोषणा तो नहीं की गई है, लेकिन उन्होंने COVID-19 प्रोत्साहन पैकेज के हिस्से के रूप में अपनी ग्रामीण रोजगार योजना में $ 5.3 बिलियन का इजाफा किया है।
इससे उम्मीद जगती है कि यह उन लाखों बेरोजगार श्रमिकों को आय प्रदान करेगा जो शहरों को छोड़ चुके हैं। सूक्ष्म, लघु और मध्यम आकार के उद्यमों के लिए ऋण की ओर धन आवंटित करने से सरकार नौकरियां पैदा करने की उम्मीद कर रही है।
अनिश्चित भविष्य से जूझ रहे लोगों को उम्मीद है कि जीवन पटरी पर लौटने से पहले इंतजार बहुत लंबा नहीं होगा।
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फेस्टिव सीजन से आस –
श्राद्ध पक्ष की समाप्ति के बाद भारत में नवरात्र से शुभ मुहूर्तों की शुरुआत हो जाती है। विशेषकर दिवाली पर भारतीय बाजार में लोहा-पीतल से लेकर सोना-चांदी तक का कारोबार चरम पर होता है।
धीरे-धीरे भारत में कारोबार गति पर लौट रहा है। हाल ही में टाटा ने अपनी तिमाही में कारोबार पूरी सौ फीसद गति पर पहुंचने की सुखद जानकारी दी वहीं अब फ्लिपकार्ट ने भी त्यौहारी सीजन में 70 हजार प्रत्यक्ष नौकरियों की आस जगाई है।
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फ्लिपकार्ट ने जगाई उम्मीद –
फ्लिपकार्ट का कहना है कि बिग बिलियन डेज़ यानी त्योहारों के दिनों में वो 70,000 प्रत्यक्ष नौकरियों का सृजन करेगा।
इस मकसद से फ्लिपकार्ट आपूर्ति श्रृंखला के विभिन्न पहलुओं पर अपने सीधे काम के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित कर रहा है ताकि भविष्य की जरूरतों के लिहाज से कार्यबल का उपयोग किया जा सके।
कंपनी को क्षमता, भंडारण, छंटाई, पैकेजिंग, मानव संसाधन, प्रशिक्षण और वितरण के लिए निवेश की जरूरत होगी।
वॉलमार्ट के स्वामित्व वाली कंपनी की आपूर्ति श्रृंखला में सीधे नौकरी के अवसर पैदा होंगे। इसमें डिलीवरी अधिकारी, पिकर, पैकर्स और सॉर्टर्स जैसे जॉब्स शामिल हैं। अतिरिक्त अप्रत्यक्ष नौकरियों के तौर पर फ्लिपकार्ट के विक्रेता-भागीदार स्थानों और किराना स्टोर से रोजगार पैदा होगा।
सप्लाई चेन –
फ्लिपकार्ट की ही तरह अन्य होम डिलीवरी सर्विस प्रोवाइडर्स भी कोरोना जनित परिस्थिति में कामकाज की परिस्थितियों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं ताकि अनलॉकिंग पीरियड में अपने कारोबार को फिर पटरी पर लाया जा सके।
हालांकि संक्रमण के खतरे के कारण किराए के वाहनों जैसी सर्विस देने वाले सेक्टर्स की हालत जरा पतली है। इस सेक्टर से जुड़े रोजगार के खतरों के लिए भी कंपनियों को जल्द कदम उठाना होंगे। त्योहारों पर ट्रेवलिंग करने वालों की संख्या भारत में ज्यादा रहती है तो इस सेक्टर को भी सुधारों के बाद बूम मिल सकता है।
प्रशिक्षण कार्यक्रम, डिजिटल ट्रेनिंग, ग्राहक सेवा, वितरण, स्थापना एवं सुरक्षा और स्वच्छता उपायों के साथ-साथ PoS मशीनों, स्कैनर, विभिन्न मोबाइल एप्लिकेशन और उद्यम संसाधन नियोजन में परिस्थिगत सुधार कर भी रोजगार की संभावनाओँ को पुनर्जीवित किया जा सकता है। कंपनियां इस दिशा में काम भी कर रही हैं।
रोजगार के स्त्रोत –
सेलर पार्टनर, सूक्ष्म, छोटे और मझौले उद्यमों के साथ ही टाटा जैसे बड़े नामी उद्योग से आगामी फेस्टिव सीजन में रोजगार की संभावनाएं हैं।
डिस्क्लेमर – आर्टिकल प्रचलित रिपोर्ट्स पर आधारित है। इसमें शीर्षक-उप शीर्षक और संबंधित अतिरिक्त प्रचलित जानकारी जोड़ी गई हैं। इस आर्टिकल में प्रकाशित तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं होगी।
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