Net Zero: इस शून्य से दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं को क्या हासिल होगा?

जिस शून्य को बतौर रिजल्ट कोई नहीं देखना चाहता, उस ग्रेट जीरो में आखिर ऐसा क्या है, कि वह यूएन (UN) का नेट जीरो (Net Zero) मिशन बन गया है?
नेट जीरो (Net Zero) की सभी अर्थव्यवस्थाओं को दरकार।
नेट जीरो (Net Zero) की सभी अर्थव्यवस्थाओं को दरकार।Syed Dabeer Hussain - RE
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हाइलाइट्स –

  • लक्ष्य हासिल करने अर्थव्यस्थाएं बेकरार

  • नेट जीरो (Net Zero) की सबको दरकार

  • जलवायु परिवर्तन से निपटने UN की पहल

राज एक्सप्रेस (rajexpress.co)। दुनिया के तमाम देशों ने यूनाइटेड नैशंस (United Nations/ UN) यानी संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में आगामी सालों के दौरान "नेट जीरो" ("net zero") यानी "शुद्ध शून्य" के लक्ष्य तक पहुंचने के वादे पर अमल करने के लिए अपने देश के कार्बन उत्सर्जन में उल्लेखनीय कटौती करने के लिए प्रमुख प्रतिबद्धताओं की घोषणा की है।

यह शब्द (नेट जीरो/शुद्ध शून्य/net zero) एक वैश्विक रैली बन रहा है, जिसे अक्सर जलवायु परिवर्तन और इससे होने वाली तबाही को सफलतापूर्वक मात देने के लिए एक आवश्यक कदम के रूप में उद्धृत किया जाता है।

नेट जीरो (net zero) क्या है और यह क्यों जरूरी है?

सीधे शब्दों में कहें तो नेट जीरो (net zero) का मतलब है कि हम वातावरण में नए उत्सर्जन नहीं जोड़ रहे हैं। उत्सर्जन जारी रहेगा, लेकिन वातावरण से एक समान मात्रा को अवशोषित करके संतुलित किया जाएगा।

पेरिस समझौता (Paris Agreement) -

व्यावहारिक रूप से हर देश जलवायु परिवर्तन (climate change) पर पेरिस समझौते (Paris Agreement) में शामिल हो गया है, जो वैश्विक तापमान (global temperature) को पूर्व-औद्योगिक युग के स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस ऊपर रखने का आह्वान करता है।

यदि हम जलवायु परिवर्तन (climate change) का कारण बनने वाले उत्सर्जन (emissions) को बाहर निकालना जारी रखते हैं, तथापि, तापमान 1.5 से आगे बढ़कर उस स्तर तक पहुंचना जारी रहेगा जो हर जगह लोगों के जीवन और आजीविका के लिए खतरा है।

पीढ़ियों के लिए सबक -

यही कारण है कि बढ़ती संख्या में देश अगले कुछ दशकों के भीतर कार्बन तटस्थता (carbon neutrality), या "शुद्ध शून्य उत्सर्जन" ("net zero emission") का लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रतिबद्धता जता रहे हैं। मौजूदा एवं आगामी पीढ़ी के लिए यह एक बड़ा कार्य है, जिसके लिए प्रत्येक मानव को महत्वाकांक्षी कार्य में सहयोग करना अनिवार्य है।

यूएन (UN) के मिशन Net Zero ने दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं के समक्ष प्रकृति संवर्धन की दिशा में जिम्मेदारी का भाव पैदा किया है। जिस शून्य को बतौर रिजल्ट कोई नहीं देखना चाहता, उस महाशून्य को हासिल करने के लिए दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं कदम ताल कर रही हैं। मामला अगली पीढ़ी का जो है।

Net zero by 2050 -

देशों ने साल 2050 तक नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करना तय किया है। लेकिन देशों को यह भी दिखाना होगा कि वे लक्ष्य तक कैसे पहुंचेंगे।

नेट-जीरो (net-zero) तक पहुंचने के प्रयासों में अनुकूलन और लचीले उपायों और विकासशील देशों के लिए जलवायु वित्त पोषण जुटाने के साथ पूरक होने का लक्ष्य तय किया गया है।

दुनिया नेट जीरो की ओर कैसे बढ़ेगी?

वसुंधरा को संवारने के लक्ष्य से संबंधित मिशन नेट जीरो (net zero) तक पहुंचना उतना कठिन नहीं जितना समझा जा रहा है। अच्छी खबर यह है कि; मौजूदा मानव जाति के पास नेट जीरो (net zero) तक पहुंचने के लिए तकनीक मौजूद है, साथ ही यह सस्ती भी है।

अक्षय ऊर्जा स्रोत (renewable energy source) -

एक प्रमुख तत्व स्वच्छ ऊर्जा (clean energy) के साथ अर्थव्यवस्थाओं (economies) को शक्ति प्रदान कर रहा है। अक्षय ऊर्जा स्रोतों (renewable energy sources) जैसे पवन या सौर खेतों (wind or solar farms) के रूप में प्रदूषणकारी कोयले और गैस और तेल से चलने वाले बिजली स्टेशनों के विकल्प पर काम किया जा रहा है। साथ ही नए सस्ते एवं कारगर विकल्प तलाश जा रहे हैं।

अक्षय ऊर्जा (renewable energy) और जीवाश्म ईंधन (fossil fuels) -

इससे कार्बन उत्सर्जन (carbon emissions) में नाटकीय रूप से कमी आएगी। साथ ही, अक्षय ऊर्जा (renewable energy) अब न केवल स्वच्छ है, बल्कि अक्सर जीवाश्म ईंधन (fossil fuels) की तुलना में सस्ती भी है।

इनका रोल होगा अहम -

अक्षय ऊर्जा द्वारा संचालित विद्युत परिवहन भी उत्सर्जन को कम करने में बड़ी भूमिका निभाएगा। दुनिया के प्रमुख शहरों में वायु प्रदूषण में कमी लाने के लिए इसे अतिरिक्त बोनस कहा जा सकता है।

ये इन ये आउट -

इलेक्ट्रिक वाहन (Electric vehicles) तेजी से सस्ते और अधिक कुशल होते जा रहे हैं, और नेट जीरो के लिए प्रतिबद्ध देशों सहित कई देशों ने जीवाश्म-ईंधन से चलने वाली कारों की बिक्री (fossil-fuel powered cars) को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की योजना का प्रस्ताव रखा है।

कम मांसाहार, अधिक शाकाहार -

अन्य हानिकारक उत्सर्जन कृषि (agriculture) से आते हैं पशुधन मीथेन (methane), एक ग्रीनहाउस गैस (greenhouse gas) के महत्वपूर्ण स्तर का उत्पादन करते हैं। अगर हम कम मांस (meat) और अधिक पौधे आधारित खाद्य (plant-based foods) पदार्थ खाते हैं तो इन्हें काफी कम किया जा सकता है।

वेगन फूड मार्केट -

यहां फिर से, संकेत आशाजनक हैं, जैसे कि "प्लांट-आधारित मीट" (plant-based meats) की बढ़ती लोकप्रियता इनमें से एक है। वेगन फूड (vegan food) को अब प्रमुख अंतरराष्ट्रीय फास्ट-फूड श्रृंखलाओं में बेचा जा रहा है।

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शेष उत्सर्जन का क्या होगा?

उत्सर्जन (emissions) कम करना बेहद जरूरी है। टारगेट नेट जीरो (net zero) अचीव करने के लिए हमें वातावरण (atmosphere) से कार्बन हटाने के तरीके भी खोजने होंगे। यहां फिर से, समाधान हाथ में हैं। सबसे महत्वपूर्ण इलाज हजारों वर्षों से प्रकृति में यत्र-तत्र-सर्वत्र मौजूद हैं। जरूरत है उन्हें तलाश कर अमल में लाने की।

प्रकृति प्रदत्त समाधान -

इन "प्रकृति-आधारित समाधानों" में वन (forests), पीटबॉग (peatbogs), मैंग्रोव (mangroves), मिट्टी (soil) और यहां तक ​​कि भूमिगत समुद्री शैवाल वन (seaweed forests) शामिल हैं, जो कार्बन को अवशोषित (absorbing carbon) करने में अत्यधिक कुशल हैं।

यही कारण है कि दुनिया भर में जंगलों को बचाने, पेड़ लगाने और पीट और मैंग्रोव क्षेत्रों के पुनर्वास के साथ-साथ खेती की तकनीक (farming techniques) में सुधार के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास किए जा रहे हैं।

नेट जीरो (net zero) तक पहुंचने कौन जिम्मेदार?

हम सभी व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार हैं, अपनी आदतों को बदलने और ऐसे तरीके से जीने के मामले में जो अधिक टिकाऊ है, और जो ग्रह को कम नुकसान पहुंचाते हैं। एक तरह से जीवनशैली में वह बदलाव, जिसे संयुक्त राष्ट्र के एक्ट नाउ अभियान (UN’s Act Now campaign) में हाइलाइट किया गया है।

प्राइवेट सेक्टर (private sector) -

निजी क्षेत्र को भी अधिनियम में शामिल होने की आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र ग्लोबल कॉम्पैक्ट (UN Global Compact) के माध्यम से ऐसा किया भी जा रहा है। जो व्यवसायों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण और सामाजिक लक्ष्यों के साथ संरेखित करने में मदद करता है।

राष्ट्रीय सरकारों का रोल -

हालांकि, यह स्पष्ट है कि परिवर्तन के लिए मुख्य प्रेरक शक्ति राष्ट्रीय सरकार के स्तर पर बनाई जाएगी, जैसे कि उत्सर्जन को कम करने के लिए कानून और नियमों के माध्यम से।

कार्बन न्यूट्रैलिटी -

कई सरकारें अब सही दिशा में आगे बढ़ रही हैं। 2021 की शुरुआत तक, वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के 65 प्रतिशत से अधिक और विश्व अर्थव्यवस्था के 70 प्रतिशत से अधिक का प्रतिनिधित्व करने वाले देशों ने कार्बन न्यूट्रैलिटी (carbon neutrality) यानी कार्बन तटस्थता के लिए महत्वाकांक्षी प्रतिबद्धताएं दर्शाई हैं।

जापान और चीन के लक्ष्य -

यूरोपीय संघ (European Union), जापान (Japan) और कोरिया गणराज्य (Republic of Korea) ने 110 से अधिक अन्य देशों के साथ मिलकर 2050 तक कार्बन तटस्थता (carbon neutrality) का संकल्प लिया है; चीन का कहना है कि वह 2060 से पहले ऐसा करेगा।

प्रतिबद्धताएं सिर्फ बयानबाजी तो नहीं?

ये प्रतिबद्धताएं लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अच्छे इरादों के महत्वपूर्ण संकेत हैं, लेकिन तेजी से और महत्वाकांक्षी कार्रवाई द्वारा समर्थित होनी चाहिए।

एक महत्वपूर्ण कदम राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान या एनडीसी (NDC) में कार्रवाई के लिए विस्तृत योजना प्रदान करना है।

ये अगले 5 से 10 वर्षों के भीतर उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्यों और कार्यों को परिभाषित करते हैं। वे सही निवेश का मार्गदर्शन करने और पर्याप्त वित्त आकर्षित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

पेरिस समझौते के 186 पक्षों ने एनडीसी (NDC) विकसित किए हैं। इसके अलावा उनसे उच्च महत्वाकांक्षा और कार्य को प्रदर्शित करने वाली नई या अद्यतन योजनाएं प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जाती है।

क्या नेट जीरो (net zero) रियलिस्टिक है?

हां! खासकर अगर हर देश, शहर, वित्तीय संस्थान और कंपनी साल 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन में संक्रमण के लिए यथार्थवादी योजनाओं को अपनाती है।

अवसरों का निर्माण -

COVID-19 महामारी से उबरना एक महत्वपूर्ण और सकारात्मक मोड़ हो सकता है। आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज से अक्षय ऊर्जा निवेश, स्मार्ट भवन (smart buildings), हरित एवं सार्वजनिक परिवहन (green and public transport), और अन्य हस्तक्षेपों की एक पूरी श्रृंखला को बढ़ावा देने का एक वास्तविक अवसर निर्मित हुआ है। इससे जलवायु परिवर्तन को धीमा करने में मदद मिलेगी।

क्या सभी देश परिवर्तन को प्रभावित करने की स्थिति में हैं?

नहीं सभी देश इस स्थिति में नहीं हैं। खासकर प्रमुख उत्सर्जक, जैसे G20 देश (G20 countries), जो विशेष रूप से 80 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन उत्पन्न करते हैं, को अपनी महत्वाकांक्षा और कार्रवाई के वर्तमान स्तरों में उल्लेखनीय वृद्धि करने की आवश्यकता है।

कमजोर के लिए लचीलापन जरूरी -

साथ ही, ध्यान रखें कि कमजोर देशों और सबसे कमजोर लोगों के लिए इस लक्ष्य को लचीला बनाने के लिए कहीं अधिक प्रयासों की आवश्यकता है। यह वह वर्ग है जो कम उत्सर्जन का कारक है।

वे जलवायु परिवर्तन में कम जिम्मदार हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक कुप्रभाव भी झेलते हैं। साथ ही अनुकूलन कार्रवाई के लिए उनको उतना धन नहीं मिलता है जिसकी उन्हें आवश्यकता होती है।

यहां तक ​​कि जब वे शुद्ध शून्य का पीछा करते हैं, तो विकसित देशों को विकासशील देशों में शमन, अनुकूलन और लचीलेपन के लिए प्रति वर्ष $100 बिलियन डॉलर प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करना चाहिए।

UN क्या कर रहा है?

जलवायु कार्रवाई को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र (UN) पेरिस समझौते और सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा के माध्यम से जलवायु लक्ष्यों पर वैश्विक सहमति की व्यापक प्रक्रिया का समर्थन करता है। यह जलवायु परिवर्तन पर वैज्ञानिक निष्कर्षों और अनुसंधान का एक प्रमुख स्रोत है।

विकासशील देशों के भीतर, यह एनडीसी की स्थापना और निगरानी की व्यावहारिकताओं के साथ सरकारों की सहायता करता है, और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के उपाय करता है, जैसे कि आपदा जोखिम को कम करके और जलवायु-स्मार्ट कृषि स्थापित करना।

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डिस्क्लेमर – आर्टिकल यूएन की रिपोर्ट्स पर आधारित है। इसमें शीर्षक-उप शीर्षक और संबंधित अतिरिक्त जानकारी जोड़ी गई हैं। इसमें प्रकाशित तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं होगी।

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