हाइलाइट्स –
IHS Markit सर्वे रिपोर्ट जारी
बाजार में सुधार के मिले संकेत
ओमिक्रॉन बिगाड़ सकता है खेल
राज एक्सप्रेस। भारत के विनिर्माण क्षेत्र (manufacturing sector) की व्यावसायिक गतिविधि में तेजी जारी है। आईएचएस मार्किट (IHS Markit) द्वारा प्रकाशित नवीनतम आंकड़ों से पता चला है कि इंडियाज पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (India’s Purchasing Managers’ Index (PMI)) यानी भारत का क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) दस महीनों के दौरान अक्टूबर में 55.9 से सबसे तेज गति से बढ़कर नवंबर में 57.6 हो गया।
इसके अलावा, हेडलाइन का आंकड़ा इसके दीर्घावधि औसत 53.6 से काफी ऊपर था। प्रचलन के अनुसार 50 से ऊपर की रीडिंग विस्तार को इंगित करती है जबकि सीमा से नीचे संकुचन का परिचायक है।
सर्वे परिणाम - सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि कंपनियों की इनपुट खरीदारी में वृद्धि हुई है। सर्वे के मुताबिक लगभग 17 साल पहले डेटा संग्रह शुरू होने के बाद से खरीद के शेयरों में दूसरा सबसे तेज संचय दर्ज हुआ।
मजबूत सुधार के संकेत - विनिर्माताओं ने कहा कि मांग में मजबूती, बाजार की स्थिति में सुधार और सफल विपणन ने बीते महीने में बिक्री को बढ़ावा दिया। न्यू ऑर्डर सब-इंडेक्स और पीएमआई (PMI) के आउटपुट सब-इंडेक्स में नवंबर के दौरान तेज सुधार देखा गया।
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कामकाज में गति - सर्वे में काम और कामगारों के लिए भी संतोषजनक परिणाम दर्ज हुए हैं। सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक निर्माताओं (manufacturers) के बीच काम पर रखने की गतिविधि में भी लगातार तीन महीनों की मंदी के बाद सुधार दर्ज हुआ।
लागत मुद्रास्फीति दबाव (cost inflationary pressures) - वहीं दूसरी ओर, मुद्रास्फीति एक दर्द बनी हुई है। नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि कच्चे माल (raw materials) के स्रोत के लिए आपूर्तिकर्ताओं के बीच परिवहन (transportation) मुद्दों और कठिनाइयों के बीच लागत मुद्रास्फीति दबाव (cost inflationary pressures) तीव्र बना रहा।
इनपुट कीमतों में उस दर से वृद्धि हुई जो मोटे तौर पर अक्टूबर के 92 महीने के उच्च स्तर के समान थी। यहां यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि निर्माता अपने उपभोक्ताओं पर बढ़ी हुई लागत का बोझ डाल रहे हैं लेकिन कीमतों में बढ़ोतरी की मात्रा मध्यम है।
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उत्पादन और मांग की आशंका - नतीजतन, भले ही निर्माता विकास की संभावनाओं के बारे में उत्साहित रहे, लेकिन सकारात्मक भावना का समग्र स्तर 17 महीने के निचले स्तर पर आ गया। कंपनियां चिंतित थीं कि मुद्रास्फीति के दबाव से मांग कम हो सकती है और आने वाले वर्ष में उत्पादन सीमित हो सकता है।
ओमिक्रॉन (Omicron) का संकट - अब जबकि मुद्रास्फीति (inflation) के दबाव सर्वविदित हैं। ऐसे में कोरोना वायरस (coronavirus) के ताजा वैरिएंट (variant) ओमिक्रॉन (Omicron) के रूप में देश के समक्ष एक नई चिंता उभरकर सामने आई है। आपको बता दें इस सर्वे के एक पहलू पर अर्थशास्त्रियों का खास फोकस है।
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अर्थशास्त्रियों ने नतीजे पर पहुंचने के पहले सर्वे के दौरान की स्थितियों पर ध्यान केंद्रित करने कहा है। उनके मुताबिक सर्वेक्षण नए संस्करण ओमिक्रॉन (Omicron) की पहचान होने से पहले किया गया था। ऐसे में इकोनॉमिस्ट्स के अनुसार निर्माताओं के आशावाद के समक्ष नकारात्मक जोखिम भी हैं।
डिस्क्लेमर – आर्टिकल प्रचलित रिपोर्ट्स और जारी आंकड़ों पर आधारित है। इसमें प्रकाशित तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं होगी।
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