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मांग असमान, पर अगले दिनों में दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना रहेगा भारत

दुनिया के प्रमुख 55 अर्थशास्त्रियों के बीच कराए गए सर्वेक्षण के अनुसार, यद्यपि भारत का आर्थिक विकास मध्यम रहा, लेकिन सितंबर तिमाही में इसमें तेजी देखने को मिली।
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हाईलाइट्स

  • विपरीतताओं के बाद भी, सितंबर तिमाही में भारत के आर्थिक विकास में दिखी मजबूती।

  • जुलाई सितंबर तिमाही में जीडीपी की वृद्धि तिमाही में 6.8 फीसदी रहने का अनुमान।

  • भारत की अर्थव्यवस्था आने वाले सालों में 6.0% से अधिक गति से विकास करेगी।

राज एक्सप्रेस। एक अंतर्राष्ट्रीय मीडिया हाउस द्वारा दुनिया के प्रमुख 55 अर्थशास्त्रियों के बीच कराए गए सर्वेक्षण के अनुसार, यद्यपि भारत का आर्थिक विकास मध्यम रहा, लेकिन सितंबर तिमाही में इसमें तेजी देखने को मिली। वैश्विक मंदी और निर्यात के मोर्चे पर गिरावट के बावजूद सेवा क्षेत्र की मजबूती और ठोस शहरी मांग के कारण, सितंबर तिमाही में भारत का आर्थिक विकास में मजबूती दिखाई दी। 55 अर्थशास्त्रियों के बीच कराए गए सर्वे के अनुसार जुलाई सितंबर तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि पिछली तिमाही के 7.8 फीसदी से घटकर जुलाई सितंबर तिमाही में 6.8 फीसदी रहने का अनुमान है।

लेकिन पूर्वानुमानकर्ता इसे एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए असाधारण रूप से मजबूत तिमाही से मामूली मंदी के रूप में देखते हैं, जो अर्थशास्त्रियों के उसी समूह के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था के आने वाले सालों में 6.0% से अधिक गति से विकास करने की उम्मीद है, जो वर्तमान में प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज़ है। बेशक पिछली तिमाही में अनियमित मानसून के कारण मुद्रास्फीति में तेजी आई थी, फिर भी 1.4 अरब से अधिक लोगों के देश में उपभोक्ता मांग मजबूत बनी रही। मुख्य रूप से शहरी निवासियों द्वारा संचालित उपभोक्ता मांग जीड़ीपी वृद्धि में लगभग 60 फीसदी योगदान करती है।

हेडलाइन वृद्धि संभावित रूप से लचीली बनी हुई है। यूटिलिटीज, सर्विस और कंस्ट्रक्शन सेक्टर में मजबूत बढ़ोतरी दर्ज की गई है। बार्कलेज के राहुल बाजोरिया ने कहा इस समय आर्थिक विकास का नेतृत्व घरेलू मांग कर रही है, जबकि बाहरी मांग कमजोर बनी हुई है। इसका अर्थ है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि के लिए घरेलू मांग मुख्य आधार है। जबकि वैश्विक मांग के कमजोर होने से निर्यात में कमी आई है। घरेलू मांग में वृद्धि का कारण मुख्य रूप से घरेलू उपभोक्ताओं द्वारा वस्तुओं और सेवाओं की बढ़ती खपत है।

31 मार्च को समाप्त हो रहे इस वित्त वर्ष में भारत की जीडीपी ग्रोथ औसतन 6.4 फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद है। जबकि अगले वित्तवर्ष में मामूली गिरावट के साथ 6.3 फीसदी की दर से बढ़ने का अनुमान है। व्यापक सर्वेक्षण के अनुसार इसके लिए आंशिक रूप से सरकार का उच्च पूंजीगत व्यय से प्रेरित है। सरकार द्वारा बढ़ा हुआ पूंजीगत व्यय जिसमें बुनियादी ढ़ांचे में निवेश और औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए परियोजनाओं को लागू करना शामिल है। भारत की अर्थव्यवस्था को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

भारत की अर्थव्यवस्था में उम्मीद से अधिक तेजी आने की संभावना है। जबकि वैश्विक परिदृश्य में कई अन्य अर्थव्यवस्थाएं केंद्रीय बैंकों द्वारा मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के प्रयासों के परिणाम स्वरूप मंदी का सामना कर रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने मुद्रा स्फीति पर अंकुश लगाने के लिए ब्याज दरों में उचित वृद्धि की है। जबकि, अन्य केंद्रीय बैंकों ने अधिक आक्रामक रुख अपनाया है। रिजर्व बैंक का मध्यम रुख भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संकेत है। यह संभावना है कि भारत वैश्विक मंदी के प्रभावों को दूर करने में सफल होगा।

वित्तीय वर्ष के पहले छह महीनों में पूंजीगत व्यय 4.91 खरब रुपये या $58.98 बिलियन डालर था, जो एक साल पहले की समान अवधि में 3.43 खरब रुपये से काफी अधिक है। अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि मई 2024 में होने वाले राष्ट्रीय चुनाव से पहले पूंजीगत व्यय और भी अधिक बढ़ जाएगा। यह पूछे जाने पर कि इस वित्तीय वर्ष की शेष अवधि के लिए आर्थिक विकास का प्राथमिक चालक क्या रहने वाला है, तो कुछ अर्थशास्त्रियों ने कहा सरकारी खर्च प्राथमिक चालक के रूप में सामने आएगा, जबकि कुछ अर्थशास्त्रियों ने उपभोग को मुख्य चालक शक्ति बताया, कुछ ने कहा कि निवेश आर्थिक विकास का नेतृत्व करेगा।

दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के बाद भी भारत में उपभोक्ता मांग में एकरूपता नहीं है। जबकि देश में दुनिया के कुछ दुनिया के सबसे बड़े शहर शामिल हैं। जबकि दो तिहाई भारतीय शहरों से बाहर रहते हैं। जहां जुलाई-सितंबर तिमाही में रोजमर्रा की वस्तुओं की ऊंची कीमतों के कारण ग्रामीण मांग में गिरावट आई है, लेकिन शहरी मांग मजबूत रही। हालाँकि, अर्थशास्त्रियों का मानना है कि ग्रामीण माँग में कमजोरी अल्पकालिक रहेगी। एक अलग सवाल का जवाब देने वाले 69% अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अगले दो से तीन सालों में ग्रामीण और शहरी उपभोग के बीच का अंतर कम हो जाएगा।

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