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किसी भी देश में भी निवेश करने से पहले वहां मौजूद जोखिमों को भी ध्यान में रखें कारोबारीः सीतारमण

वित्तमंत्री सीतारमण ने कहा निवेश करते समय उस देश में मौजूद जोखिमों पर गंभीरता से गौर करने की जरूरत है। दुनिया एक ही समय में एक से अधिक युद्धों से जूझ रही है।
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हाईलाइट्स

  • एक समय में एक से अधिक युद्धों से जूझ रही दुनिया, जिससे टूट रही हैं आपूर्ति श्रंखलाएं

  • व्यवसायों को अब आर्थिक नीतियों और खुलेपन से ही आकर्षित नहीं किया जा सकता

  • उद्यमियों के लिए दूसरे जोखिमों पर भी विचार करने की जरूरत, ताकि फले-फूले धंधा

राज एक्सप्रेस। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने आतंकवाद को एक ऐसी चिंता बताया, जिस पर कारोबारियों को निवेश करते समय गंभीरता से गौर करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि दुनिया एक ही समय में एक से अधिक युद्धों से जूझ रही है। इन युद्धों की वजह से आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित हो रही हैं। उन्होंने कहा व्यवसायों को अब आर्थिक नीतियों और अर्थव्यवस्था के खुलेपन से ही आकर्षित नहीं किया जा सकता। उन्होंने एक निजी कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आगाह किया कि निवेशकों को अपने निर्णय लेने में जोखिम पर विचार करने की जरूरत है, ताकि उनका कारोबार वैश्विक संकटों से प्रभावित नहीं हो।

कारोबारी अक्सर दक्षिण एशिया या दुनिया के कुछ अन्य हिस्सों में निवेश करते समय आतंकवाद से संबंधित जोखिमों पर ही विचार करते हैं। हाल के सालों में वे इलाके भी आतंकवादी हमलों का शिकार हुए हैं, जिन्हें अब तक बेहद सुरक्षित माना जाता था। उदाहरण के लिए अमेरिका और यूरोप को अब तक बहुत सुरक्षित माना जाता था, जहां इन दिनों आतंक का खतरा काफी बढ़ गया है।

दुनिया के दो हिस्सों में हो रहे युद्ध, जिससे टूटी आपूर्ति श्रृंखला

उल्लेखनीय है कि आपूर्ति श्रृखला पर युद्ध के प्रभाव पर वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण की टिप्पणी पश्चिम एशिया में नवीनतम संघर्ष के कुछ दिनों बाद आई है, जिसके नकारात्मक प्रभाव अब दिखाई देने लगे है्ं। इजराइल और हमास के बीच जारी संघर्ष का अब असर तेल और प्राकृतिक गैस में महंगाई के रूप में दिखाई देने लगा है। इसी तरह रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध की वजह से गेहू्ं सूरजमुखी के तेल जैसी अनेक चीजों की आपूर्ति प्रभावित हुई है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि युद्ध अब छिटपुट और किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं रह गए हैं। वैश्विक स्तर पर दो अलग-अलग क्षेत्रों में हो रहे दो युद्ध युद्धों ने आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रभावित कर दिया है। निर्मला सीतारमण ने कहा चारो ओर निराशाजनक स्थिति के कारण वैश्वीकरण के चारों ओर वैश्वीकरण हो रहा है। इस स्थिति में हमें वैश्विक खाद्य सुरक्षा के बारे में सोचना होगा। यह एक विड़ंबनापूर्ण स्थिति है कि हम 21वीं सदी में इन बुनियादी सवालों को लेकर चिंतित हो रहे हैं। यदि आप अपनी मूलभूत जरूरतों के लिए वैश्विक आपूर्ति पर निर्भर हैं, तो आपको वैश्विक जोखिमों को ध्यान में रखना होगा।

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अधिक धन की जरूरत

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ऊर्जा परिवर्तन एक बड़ी चुनौती साबित हो रहा है। विकासशील और गरीब देशों के लिए जलवायु परिवर्तन से जुड़ी परियोजनाओं को जारी रखने के लिए वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराए जाने चाहिए। इस मुद्दे को भारत ने जी20 की अध्यक्षता के दौरान भारत द्वारा गठित स्वतंत्र विशेषज्ञ समूह द्वारा गंभीरता से उठाया गया था। उन्होंने कहा कि भारत ने पेरिस समझौते में तय किए गए एजेंडे के अनुसार अपनी राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए अपने संसाधनों का उपयोग किया है। भारत जैसे देश पर विचार करें, जहां विकासात्मक लक्ष्य और आकांक्षाएं अभूतपूर्व गति से हासिल की जा रही हैं और जहां आबादी के एक महत्वपूर्ण हिस्से को अभी भी समर्थन की आवश्यकता है। यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि इसके लिए आवश्यक धन कहां से आएगा?

कोरोना काल में वित्तीय दबाव बढ़ा, पर हम उसे संभालने में सक्षम

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि हमने कोरोना काल के खर्चों का अच्छे से प्रबंधन किया। यही वजह है हमारे ऊपर कर्जों का ज्यादा बोझ नहीं है। केंद्र सरकार इस समय कर्ज कम करने के तरीकों पर विचार कर रही है। उन्होंने कहा कि केंद्र राजकोषीय फिजूलखर्ची को रोककर जरूरी खर्चों को पूरा करने पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है। आज हम सरकार के कर्ज़ को लेकर बेहद सचेत हैं। कई अन्य देशों की तुलना में यह अधिक नहीं है। अपने कर्ज को चुकाने के लिए हम दुनिया के उन देशों का भी अध्ययन कर रहे हैं, जो अपने कर्ज से उबरने में सफल रहे हैं। हम उनके ऋण प्रबंधन को समझने की कोशिश कर रहे हैं। यह देखने की कोशिश की जा रही है कि उन्होंने इस स्थिति से उबरने के लिए क्या उपाय किए और क्या वे भारत के लिए भी उतने ही उपयोगी हैं।

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