राज एक्सप्रेस। सरकारी क्षेत्र के बैंकों को 13 कंपनियों के ऋण बकाया के चलते लगभग 2.85 लाख करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा है। इसी के चलते बैंकों के संघ यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस (UFBU) ने बैंकों की 2 दिन की हड़ताल का ऐलान किया है। जो कि, आज 16 दिसंबर और कल 17 दिसंबर को रहेंगी। इन दो सीनों में बांकी कई सेवाएं प्रभावित होंगी। इसकी जानकारी UFBU ने दी है।
बैंकों की सेवाएं रभावित :
दरअसल, संगठन ने बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक 2021 के विरोध में और सरकारी बैंकों के निजीकरण के केंद्र के कथित कदम का विरोध करते हुए 16 और 17 दिसंबर को पूरे देश में बैंकों की दो दिन की हड़ताल का आह्वान किया है। आज बैंक कर्मचारियों, अधिकारियों और प्रबंधकों ने केंद्र सरकार के खिलाफ हड़ताल की। इस विधेयक को सरकार संसद के मौजूदा सत्र में पेश करने वाली है। कर्मचारी तथा अधिकारी उत्साह से हड़ताल में शामिल हो रहे हैं। बैंक कर्मचारियों का मानना है कि, बैंकों का निजीकरण उनकी नौकरी, नौकरी की सुरक्षा और भविष्य की संभावनाओं को प्रभावित करने के अलावा देश, अर्थव्यवस्था और लोगों के हित में नहीं होगा। बैंकों में हड़ताल के कारण, बैंकिंग लेनदेन प्रभावित हुई है। बैंकों की अधिकांश शाखाएँ बंद हैं। लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है और कई जगहों पर ATM में पैसे नहीं हैं।
AIBEA के महासचिव का बयान :
इस मामले में अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (AIBEA) के महासचिव सी वेंकटचलम ने बयान जारी कर कहा कि, 'यह विधेयक सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में उनकी इक्विटी पूंजी को 51 प्रतिशत से कम करने में सक्षम बनाएगा और निजी क्षेत्रों को बैंकों का अधिग्रहण करने की अनुमति देगा। विभिन्न राज्यों से हमें प्राप्त हुई सूचनाओं के मुताबिक हड़ताल सफलतापूर्वक शुरू हुई है। चेकों के क्लियरिंग का काम प्रभावित हुआ है। मुंबई, दिल्ली और चेन्नई के तीन समाशोधन केंद्रों में, लगभग 37,000 करोड़ के करीब 39 लाख चेक निकासी नहीं हो सके हैं। हड़ताल में सभी पीएसबी के कर्मचारी, निजी बैंक और विदेशी बैंकों के कर्मचारी साथ ही क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) के कर्मचारियों ने हड़ताल में भाग लिया है। उन्होंने कहा कि क्योंकि विधेयक को वर्तमान संसद सत्र में पारित होने के लिए एजेंडा के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, इसलिए हमने हड़ताल करने का आह्वान किया है।
अपर मुख्य श्रम आयुक्त एस सी जोशी द्वारा बुलाई गई सुलह बैठक के दौरान सरकार/वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि विधेयक अभी तक संसद में पेश नहीं किया गया है और उन्हें नहीं पता कि विधेयक कब पेश किया जाएगा। हमने सरकार से यह आश्वासन देने का अनुरोध किया कि इस सत्र में विधेयक पेश नहीं किया जाए ताकि बैंक की यूनियन सरकार से बात कर सकें और अपना विवरण तथा द्रष्टिकोण प्रस्तुत कर सकें कि वे बैंकों के निजीकरण का विरोध क्यों करते हैं। सरकार को कानून में संशोधन करने से पहले बैंकों के सभी हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श करना चाहिए।'
वेंकटचलम ने आगे कहा कि, 'हमने सरकार को बता दिया है कि आश्वासन मिलने के साथ ही यूनियनें हड़ताल को स्थगित करने पर विचार करेंगी, लेकिन दुर्भाग्य से सरकार ऐसा कोई आश्वासन नहीं दे रही है। उन्होंने कहा कि सुलह बैठक बुधवार शाम में भी हुई थी और हमने सरकार को ऐसा आश्वासन देने के लिए आग्र्रह किया, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसलिए, हमने मजबूरन हड़ताल की घोषणा की है। हाल के दिनों में यस बैंक को जिसे सार्वजनिक क्षेत्र के स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) ने मदद की थी। निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी एनबीएफसी, आईएल एंड एफएस को सार्वजनिक क्षेत्र के एसबीआई और एलआईसी द्वारा फिर से मदद की गयी थी।'
वेंकटचलम ने कहा कि, 'सरकार का दावा कर रही है कि वह विभिन्न सामाजिक क्षेत्र के ऋण, पेंशन और बीमा योजनाओं जैसे जन धन, बेरोजगार युवाओं के लिए मुद्रा, रेहड़ी-पटरी वालों के लिए स्वधन, प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधान मंत्री जीवन सुरक्षा बीमा योजना और बीमा योजनाओं को लागू कर रही है। समाज के वंचित वर्गों के लिए प्रधान मंत्री गरीब कल्याण योजना, प्रधान मंत्री किसान कल्याण योजना, अटल पेंशन योजना आदि जैसी प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण योजनाएं, जिनमें प्रमुख हिस्सा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का है।'
यूनियन के शीर्ष नेता का कहना :
यूनियन के शीर्ष नेता ने कहा कि, 'महामारी काल के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने निर्बाध ग्राहक सेवाएं दे रहे हैं। हमारा मानना है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण से देश के आम लोगों और पिछड़े क्षेत्रों के हितों को खतरा होगा। इस हड़ताल के आरबीआई, एलआईस, जीआईसी, कोओपरेटिव बैंक, नाबार्ड ने अभी समर्थन दिया है। सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों, बीएमएस, इंटक, एटक, एचएमएस, सीटू, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, एआईसीसीटीयू, सेवा, एलपीएफ, टीयूसीसी, बीकेएस ने भी हमारी मांगों और संघर्ष को अपना समर्थन दिया है।'
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