राज एक्सप्रेस। 9 अगस्त 1945, यही वह दिन है जब अमेरिका ने हिरोशिमा पर हमले के तीन दिन बाद नागासाकी पर परमाणु बम से हमला किया था। यह परमाणु बम हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम से भी ज्यादा खतरनाक था। इसका वजन 4500 किलो था और इसमें 6.4 किलो प्लूटोनियम भरा था। इस हमले में 70 हजार लोगों की मौत तुरंत हो गई थी। हजारों लोगों को भयानक बीमारी हो गई तो कई अपाहिज हो गए। देखते ही देखते पूरा शहर तबाह हो गया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि अमेरिका नागासाकी पर हमला करना ही नहीं चाहता था। यही नहीं अमेरिकी विमानों ने जब परमाणु हमला करने के लिए उड़ान भरी तब उनका निशाना नागासाकी नहीं था।
क्योटो था निशाने पर :
दरअसल हिरोशिमा पर परमाणु हमला करने के बाद भी जब जापान ने हार नहीं मानी तो अमेरिका ने उसके प्रमुख शहर क्योटो को तबाह करने की ठान ली। अमेरिकी अफसरों का मानना था कि क्योटो पर परमाणु बम गिराने से जापान घुटनों पर आ जाएगा, क्योंकि यह जापान के महत्वपूर्ण शहरों में से एक हैं। इस तरह यह लगभग तय था कि अमेरिका दूसरा परमाणु हमला क्योटो पर ही करेगा।
हनीमून से बचा क्योटो :
उस समय अमेरिका के युद्ध मंत्री थे हेनरी एल स्टिमसन। वह 1920 के दशक में हनीमून मनाने के लिए क्योटो गए थे। इस दौरान वह क्योटो की खूबसूरती और उसकी सांस्कृतिक विरासत से खासे प्रभावित हुए थे। जब उन्हें पता चला कि सेना क्योटो पर हमला करने की सोच रही है तो वह अड़ गए। उन्होंने इसके लिए सेना को मना कर दिया, लेकिन सेना के सेनापति हर हाल में क्योटो पर हमला करना चाहते थे।
राष्ट्रपति से मिलकर बदलवाया फैसला :
इसके बाद हेनरी अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमैन के पास पहुंचे। हेनरी ने ट्रूमैन को समझाया कि, ‘क्योटो, जापान का सांस्कृतिक केंद्र हैं और इस शहर के साथ पूरे जापान की भावनाएं जुड़ी हुई है। अगर इस पर हमला किया गया तो भविष्य में कभी भी जापान और अमेरिका की कड़वाहट समाप्त नहीं होगी। जिसका फायदा रूस को मिलेगा।’ आख़िरकार हेनरी की समझाइश का असर हुआ और ट्रूमैन ने क्योटो पर हमला करने की योजना टाल दी।
कोकुरा था अगला टारगेट :
9 अगस्त को सुबह अमेरिकी विमानों ने कोकुरा पर हमला करने की लिए उड़ान भरी। लेकिन उस समय कोकुरा पर काले बादल मंडरा रहे थे। इससे अमेरिकी विमानों के पायलट को नीचे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। करीब 45 मिनट तक इंतजार करने के बाद अमेरकी विमान नागासाकी की ओर बढ़ गए और वहां परमाणु बम गिरा दिया।
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