मुंबई। आईपीएल 2022 के मैच मुंबई और पुणे के चार स्टेडियमों में खेले जाएंगे। आईपीएल 2022 में 70 में से 55 मैच मुंबई के तीन मैदानों पर होंगे जहां पिच पर लाल मिट्टी का प्रयोग होता है - वानखेड़े स्टेडियम, ब्रबोर्न स्टेडियम और नवी मुंबई में डीवाई पाटिल स्पोर्ट्स अकादमी। पुणे का एमसीए स्टेडियम, जहां बाक़ी के मैच आयोजित होंगे, काली मिट्टी का इस्तेमाल करता है।
लाल और काली मिट्टी से बनी पिचों पर आचरण का कितना अंतर होता है.? क्या ओस से फर्क पड़ेगा.? पुणे जैसे खुले मैदान से या अरब सागर के निकट स्थित वानखेड़े और ब्रेबोर्न में गेंदबाजों को क्या मदद मिल सकती है.? भारी गर्मी में सीमित मैदानों पर 70 मैच खेले जाने से क्या सत्र के दूसरे हिस्से में पिचों में अधिक खुरदरापन देखने को मिल सकता है।
वानखेड़े स्टेडियम : इस मैदान पर रिस्टस्पिन और उंगलियों से स्पिन करने वाले गेंदबाजों में खास फर्क नजर आता है। जहां रिस्टस्पिनर 9.15 के इकॉनमी से हर 34 गेंद में विकेट लेते हैं, वहीं फिंगर स्पिनर के लिए वही आंकड़े हैं 6.92 प्रति ओवर और 27 गेंदें। आईपीएल 2021 के दौरान पावरप्ले में तेज गेंदबाजों ने 31 विकेट लिए और स्पिनरों ने केवल एक।
वानखेड़े में जीतने का सबसे सरल मंत्र रहा है - टॉस जीतो, गेंदबाजी चुनो और ओस का भरपूर फ़ायदा उठाओ। यहां छोटे बाउंड्री और ओस का भारी असर दिख सकता है। इस मैदान पर बड़े हिटर, तेज गेंदबाज और स्विंग करवाने वाले गेंदबाजों की अहम भूमिका होगी। पिछले 20 मैचों में यहां तेज गेंदबाजों ने 73 प्रतिशत विकेट लिए हैं। लाल मिट्टी की सतह के बारे में पूर्व टेस्ट क्रिकेटर आशीष नेहरा और आरसीबी के हर्षल पटेल, दोनों का मानना है कि ऐसी पिच पर अच्छा उछाल रहता है।
नेहरा कहते हैं कि आक्रामक तेज गेंदबाज नई गेंद से उछाल का लाभ उठाते हुए पावरप्ले में विकेट लेते हुए विपक्ष को बैकफ़ुट पर डालने में सक्षम होंगे। उन्होंने कहा, नई गेंद से आप को पहले तीन ओवर में दो या तीन विकेट गिरते हुए दिख सकते हैं, और ऐसा चेन्नई और हैदराबाद जैसे मैदानों पर नहीं होता। अगर आप शुरुआत में अच्छी गेंदबाजी करेंगे तो इसका फ़ायदा उठा सकते हैं।
ब्रेबोर्न स्टेडियम : ब्रेबोर्न स्टेडियम में 2015 के बाद प्रतिस्पर्धीय मैचों के अभाव के चलते आंकड़ों के आधार पर बहुत कुछ नहीं कह सकते। हालांकि यहां भी लाल मिट्टी का उपयोग होता है और ऐसे में बल्लेबाजी के लिए अनुकूल परिस्थितियां मिलती हैं। हर्षल कहते हैं, लाल मिट्टी के पिचों पर गेंद ज्यादा दूर कैरी करती है और यह फ़ायदा भी पहुंचा सकती है और नुक़सान भी। मुझे लगता है टूर्नामेंट के दूसरे हिस्से में यहां ज्यादा टर्न मिल सकता है। ब्रेबोर्न की आउटफ़ील्ड बहुत तेज है और मैदान वानखेड़े से काफ़ी बड़ा है। यहां स्पिनरों की भूमिका काफ़ी अहम होगी।
डीवाई पाटिल स्पोर्ट्स अकादमी : इस मैदान पर पिछला प्रोफ़ेशनल टी20 मुक़ाबला 2011 में खेला गया था। इस लंबे अंतराल में इस स्टेडियम का सबसे ज्यादा उपयोग फ़ुटबॉल मैचों की मेजबानी के लिए किया गया है। यहां पर पर्याप्त आंकड़े हालिया समय में नहीं हैं। एक बात जरूर है - यहां की बाउंड्री मुंबई के दूसरे मैदानों से काफ़ी बड़ी हैं।
एमसीए स्टेडियम,पुणे : नाइट मैचों में जहां तेज गेंदबाजों की इकॉनमी और स्ट्राइक रेट है 9.22 और 22 गेंदें, वहीं स्पिनरों ने 8.1 रन प्रति ओवर खर्च करते हुए हर 19 गेंदों पर विकेट झटके हैं। पुणे में एक समय था जब नियमित रूप से आईपीएल के मैच खेले जाते थे। लेकिन 2018 के पश्चात यहां बस एक अंतर्राष्ट्रीय मुक़ाबला 2020 में खेला गया है। यहां काली मिट्टी से बनी पिच का इस्तेमाल होता है और बाउंड्री भी मुंबई के मुक़ाबले छोटी होती हैं। स्पिनर यहां पर औसतन 6.78 की इकॉनमी से हर 23 गेंद में विकेट लेते हैं। शायद इस मैदान पर स्पिनरों का प्रभाव सबसे जल्दी और सबसे महत्वपूर्ण साबित होगा।
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