राज एक्सप्रेस। कुश्ती संघ के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह (Brij Bhushan Sharan Singh) के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे भारतीय पहलवान (Indian Wrestler) मंगलवार शाम को अपने मेडल लेकर हरिद्वार पहुंच गए। पहलवान अपने मेडल को गंगा नदी में विसर्जित करना चाहते थे। हालांकि समय रहते वहां किसान नेता नरेश टिकैत (Naresh Tikait) पहुंच गए और उन्होंने खिलाड़ियों को ऐसा करने से रोक दिया। उन्होंने मेडल को अपने पास रखते हुए सरकार को 5 दिन का अल्टीमेटम दे दिया। पहलवानों ने भले ही अपने मेडल नदी में ना बहाए हो लेकिन माना जा रहा है कि न्याय पाने का यह तरीका पहलवानों ने दुनिया के महानतम बॉक्सर मोहम्मद अली (Muhammad Ali) से सीखा है। किसी समय मोहम्मद अली ने भी न्याय पाने के लिए अपने मेडल को नदी में बहा दिया था। तो चलिए जानते हैं कि मोहम्मद अली ने ऐसा क्यों किया था?
महान बॉक्सर मोहम्मद अली ने अपनी बायोग्राफी में बताया था कि 1960 में हुए रोम ओलंपिक में गोल्ड मेडल (Olympic Gold Medal) जीतने के बाद वह लुइसविले के एक रेस्टोरेंट में खाना खाने पहुंचे थे। लेकिन उस रेस्टोरेंट में काले लोगों को खाना नहीं दिया जाता था। ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट होने के बावजूद मोहम्मद अली को रेस्टोरेंट ने खाना देने से मना कर दिया।
अपने साथ हुए इस नस्लीय भेदभाव से मोहम्मद अली बहुत आहत हुए। इसके बाद वह चुपचाप उस रेस्टोरेंट से बाहर आ गए। इसके बाद वह ओहियो नदी के किनारे पहुंचे और अपना गोल्ड मेडल नदी में फेंक दिया। फिर उन्होंने अपनी कार में ही बोलोग्ना सैंडविच खाया। इसके अलावा मोहम्मद अली ने अपनी किताब में उस घटना का भी जिक्र किया, जब नस्लीय अलगाव के खिलाफ मार्च के दौरान उन पर गरम पानी फेंका गया था।
नस्लीय भेदभाव से दुखी होकर मोहम्मद अली ने जो कदम उठाया था, आगे चलकर उसकी पूरी दुनिया में चर्चा हुई थी। उस घटना के 36 साल बाद साल 1996 में इंटरनेशनल ओलंपिक कमिटी ने मोहम्मद अली को एक रिप्लेसमेंट गोल्ड मेडल देकर सम्मानित किया था।
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