मैतेई और कुकी के बीच की नफरत का इतिहास
बर्मी आक्रमण ने सुलगाई नफरत की आग
अंग्रेज़ों की 'फूट डालो और राज करो' नीति
आज़ादी के बाद संघर्ष ने पकड़ी आग
राज एक्सप्रेस। अंग्रेजो (British Raj) ने अपने 200 साल के शासन के दौरान कई ऐसी नीतियों को देश के लोगों पर थोपा जिनसे उभरने में हमें काफी समय लगा, लेकिन एक ऐसी नीति जो आज तक भारत को गहरे ज़ख्म दे रही है वो है 'फूट डालो और राज करो' नीति (Divide and Rule Policy)। यह नीति मणिपुर में भी अंग्रेजो द्वारा पूरी प्रबलता से उपयोग की गई थी पर, दो जातियों के बीच नफरत की चिंगारी अंग्रेजो के आने से भी पहले लगाई जा चुकी थी। चलिए आज राज एक्सप्रेस के 4 भाग लेख श्रृंखला के तीसरे अध्याय में इस नफरत के इतिहास की बात आपको बताते हैं l
मैतेई साम्राज्य (Meitei Kingdom) की उत्पत्ति पहली शताब्दी ईस्वी (1st Century AD) के आसपास हुई थी। मैतेई लोगों की एक अनोखी संस्कृति है। मैतेई समुदाय के लोग हिंदू और बौद्ध धर्म (Hinduism and Buddhism) का पालन करते है जिसमे से ज्यादातर वैष्णव हिंदू (Vaishnavism) है। मणिपुर की घाटी के लोगों पर प्रमुख तौर पर निंगथौजा मैतेई राजवंश (Ningthouja Dynasty) का शासन था, जो भारत के सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले राजवंशों में से एक था। 1704 में, निंगथौजा राजवंश के राजा चराइरोंगबा (King Charairongba) ने अपने पूरे परिवार के साथ हिंदू धर्म अपना लिया था।
कुकी जनजाति के लोग मुख्य रूप से मणिपुर की पहाड़ियों (Hills of Manipur) में रहते हैं जो अपने जीवयापन के लिए कृषि और शिकार पर निर्भर हैं। कुकी जनजाति में कई कुल (Clans) शामिल हैं जिनकी अलग-अलग बोलियाँ और रीति-रिवाज हैं। कुकी शब्द पहली बार 1830-40 के बीच मणिपुर में सुना गया था। कुकी जनजाति मणिपुर के आलावा म्यांमार, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश (Myanmar, Nagaland and Arunachal Pradesh) में भी रहती है। अंग्रेज़ो के आगमन के बाद क्रिस्चियन मिशनरीज (Christian Missionaries) द्वारा बहुत से नागा, ज़मी और कुकी लोगों का धर्मांतरण (Conversion) किया गया था।
मैतेई और कुकी के बीच नफरत की आग तब पैदा होती है जब मैतेई राजवंश ने कुकी और वन में वास करने वाली अन्य जातियों पर अपनी संस्कृति, भाषा, पहनावे, खाने और रहन-सहन की आदतों को थोपना शुरू कर दिया था। मैतेई राजाओं का मानना था कि अगर उन्हें मणिपुर में राज करना है तो उन्हें घाटी के आलावा पहाड़ी इलाकों में भी अपना वर्चस्व बननाने के लिए वह रहने वाले लोगों को अपने संस्कृति से आधीन लाना होगा। राजवंश के इस बर्ताव से मैतेई और कुकी की बीच दरार पैदा हो गयी क्योंकि वन में रहने वाले कुकी और नागा जैसे कई जातियों का अपनी बोली, खाना, संस्कृति और पहनावा था।
हालाँकि, कुछ मैतेई शासकों ने व्यापार के माध्यम से घाटी और पहाड़ी लोगों के बीच संबंध बेहतर करने की कोशिश की लेकिन वह काफी नहीं थी। राजवंश ने पहाड़ी ज़मीन को हथियाने के लिए कई बार वहां रहने वाले लोगों पर आक्रमण किए जिसकी वजह से उनके रिश्तों में कभी स्थिरता नहीं आई। वैसे तो, मणिपुर में दोनों जातियों का समृद्ध इतिहास है लेकिन, ऐसे बहुत से बाहरी और अंदरूनी कारण है जिसकी वजह से हर दशक मणिपुर हिंसा की आग में जलता हुआ दिखाई पड़ता है।
19वीं शताब्दी (1819-1826) में बर्मी आक्रमणकारियों (Burmese invaders) ने मणिपुर के राजवंश पर हमला किया था। उन्होंने मैतेई सेनाओं को पूरी तरह से उखाड़ फेंका था। बर्मी आक्रमणकारियों का सबसे बड़ा निशाना ख़ास तौर पर मैतेई महिलाएं बनी थी। उन्होने मैतेई लोगों को घरों से निकाल कर मारा, बच्चे और महिलाओं तक को बक्शा नहीं गया था। बर्मी लोगों ने मैतेई खेतों और व्यापार को तहस नहस कर दिया था। बर्मी लोगों ने 7 वर्षो तक मणिपुर में लूटपाट, तोड़फोड़, महिलाओं का शोषण और मैतेई लोगों को गुलाम बनाये रखा था। 7 साल की इस समय अवधि को सेवन इयर्स ऑफ़ डिस्ट्रक्शन (Seven Years of Destruction in Manipur) भी कहा जाता है। इसे मणिपुर के इतिहास की सबसे काली, दुखद और ऐतिहासिक घटना माना जाता है।
इस काल में लगभग 5,50,000 मणिपुरी मारे गये जिसके बाद, मणिपुर की जनसँख्या बस 2016 लोगों तक सिमित हो गयी थी। मणिपुर राजवंश ने अंग्रेज़ों के साथ गठबंधन किया जिसके कारण बाद में 1824 का एंग्लो- बर्मी युद्ध (Anglo-Burmese War) छिड़ गया जो अंग्रेज़ो और बर्मी सेना के बीच हुआ था। वही, दूसरी तरफ कुकी जनजाति भी बर्मी आक्रमणकारियों द्वारा प्रताड़ित की जा रही थी लेकिन मैतेई लोगो जितनी प्रताड़ना नहीं। बर्मी आक्रमणकारियों ने ज्यादातर निशाना घाटी को बनाया था क्योंकि वह मणिपुर की सबसे फलती फूलती ज़मीन थी। आगे चलकर कुकी लोगों ने कुकी और नागा ने बर्मी लोगों साथ गाठ कर ली थी जिसका असर मैतेई समुदाय को भुगतना पड़ा था। मैतेई ने जहा पहले एंग्लो-बर्मी युद्ध में अंग्रेज़ो की मदद की थी वही कुकी ने बर्मी दिया था। इस युद्ध को अंग्रेज़ो द्वारा जीत लिया गया लेकिन मैतेई और कुकी बीच संघर्ष की यह मात्र शुरुआत थी।
मैतेई-कुकी संघर्ष (Meitei-Kuki Conflict) की ऐतिहासिक जड़ें ब्रिटिश राज तक भी जाती है जिन्होंने अपनी भूमि नीति से दोनों जातियों के बीच की सुलगती आग में कपूर डालने जैसा काम किया था। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) 19वीं सदी में मणिपुर पहुंची और धीरे-धीरे इस क्षेत्र पर अपना नियंत्रण बढ़ाया। अंग्रेजों ने "बंजर भूमि" या "खाली भूमि" (Barren Land or Empty Land) की अवधारणा पेश की, जिसमें विशाल क्षेत्रों को वर्गीकृत किया गया और उन्हें उपनिवेशीकरण और निपटान के अधीन किया गया। इस नीति के परिणामस्वरूप क्षेत्र के बाहर से बसने वालों की आमद हुई, जिससे मैतेई और कुकी समुदायों के बीच भूमि और संसाधनों पर अधिकार की लड़ाई शुरू हो गयी।
मैतेई और कुकी समाजों के बीच इस निति ने प्रचलित पारंपरिक भूमि स्वामित्व (Traditional Land Ownership) प्रथाओं से अलग था। इस बदलाव ने सदियों से चली आ रही दोनों समुदाय के पुराने भूमि-उपयोग पैटर्न को बाधित कर दिया था।अंग्रेजों ने कुछ प्रशासनिक और राजनीतिक क्षेत्रों में मैतेई समुदाय का समर्थन किया, उन्हें भूमि आवंटन और संसाधन वितरण में अधिमान्य उपचार दिया क्योंकि उन्होंने पहले एंग्लो बर्मी युद्ध में अंग्रेज़ो का साथ दिया था। इस भेदभावपूर्ण नीति ने कुकी समुदाय के बीच हाशिए पर जाने और मताधिकार से वंचित होने की भावना को गहरा कर दिया, जिन्होंने इसे मैतेई प्रभुत्व को मजबूत करने के लिए एक जानबूझकर किया गया प्रयास माना। इसके अलावा, अंग्रेजों ने क्षेत्रीय सीमाओं और प्रशासनिक विभाजनों को फिर से निर्धारित करने का कार्य किया था।
इन नए परिभाषित क्षेत्रों पर नियंत्रण के लिए संघर्ष ने तनाव बढ़ा दिया, क्योंकि दोनों समुदायों ने अपने अधिकार का दावा करने और अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने की मांग की।अंग्रेज़ो ने अपनी सबसे चर्चित निति "फूट डालो और राज करो" का भी भरसर उपयोग किया था जिसने स्थिति को और भी खराब कर दिया। उन्होंने क्षेत्र पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए मौजूदा जातीय और जनजातीय मतभेदों का फायदा उठाया। मैतेई और कुकी समुदायों के बीच अविश्वास और शत्रुता को बढ़ावा देकर, अंग्रेजों ने अप्रत्यक्ष रूप से संघर्ष को गहरा करने में योगदान दिया, जिससे शत्रुता की विरासत बनी जो भारत की आजादी के बाद भी कायम रही। ब्रिटिश भूमि नीतियों (British Land Policy) ने निजी संपत्ति के स्वामित्व की शुरुआत करके, कुछ समुदायों का पक्ष लेकर और राजस्व प्रणाली लागू करके, अंग्रेजों ने पारंपरिक भूमि-उपयोग प्रथाओं को बाधित कर दिया और संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा तेज कर दी।
1947 में देश की आज़ादी के बाद 21 सितंबर 1949 में मणिपुर राजवंश राजा बोधचंद्र सिंह (King Bodhchandra Singh) और भारत सरकार के बीच विलय समझौता (Merger Agreement) हुआ था जिसके तहत मणिपुर भारत का भाग बन गया था। बरहाल, मणिपुर को शुरुआत में केंद्र-शासित प्रदेश (Union Territory) बनाया गया था। मणिपुर को राज्य का दर्जा 1971 में मिला था। विलय समझौते से पहले मणिपुर में राजवंश के खिलाफ और लोकतंत्र स्थापित करने को लेकर प्रदर्शन किए जा रहे थे। इस प्रदर्शन के बाद मणिपुर में विधानसभा का गठन हुआ था लेकिन जब मणिपुर के राजा ने विलय समझौते पर हस्तक्षर किया तब उन्होंने विधानसभा के सदस्यों से सलाह-मशवरा नहीं किया था जिसकी वजह से दोनों ही जाति के लोग खास लकर मैतेई इस समझौते के खिलाफ थे।
यही नहीं, 1956 में मैतेई जाति को जो अनुसूचित जनजाति का दर्जा (Scheduled Tribe Status) प्राप्त था, वह छीनकर कुकी और अन्य पहाड़ी जातियों (Hill Tribes) को दी दिया गया था। मैतेई समुदाय ने राज्य के भीतर अपनी भाषा, संस्कृति और परंपराओं को बढ़ावा देने की मांग की, जिसके परिणामस्वरूप कुकी समुदाय के बीच अपनी पहचान और अधिकारों के संरक्षण को लेकर चिंताएं पैदा हो गईं। पिछले कुछ वर्षों में, मैतेई और कुकी संघर्ष विभिन्न रूपों में प्रकट हुआ है, जिसने राज्य में दोनों ही जातियों के भीतर विद्रोही समूह को पैदा कर दिया जो आज तक सक्रिय है।
कुकी लोगों का मानना है कि मणिपुर की विधानसभा के सीटों के वितरण भी भेदभावपूर्ण (Discriminatory) तरीके से किया गया है जिसमे 80% सीटें मैतेई बहुल इलाकों को आवंटित की गयी थी। इसके आलावा उनका आरोप है कि मणिपुर में मैतेई लोगों ने अपनी भाषा और संस्कृति को मणिपुर की संस्कृति के तौर पर दिखाया गया है। वही, मैतेई लोगों का मानना की वह अपने ही प्रदेश में अल्पसंख्यक बनकर रह गए है क्योंकि उनके अनुसार कुकी लोग उनकी हत्याएं कर रहे है और वे म्यांमार अवैध प्रवासियों (Illegal Migrants) को लगातार सदियों से मणिपुर में ला रहे है।
वैसे, मैतेई और कुकी जाति के बीच के संघर्ष या नफरत और भी छोटे मोटे कारण बताना रह गए है लेकिन सबसे बड़े यही तीन कारण है। अब अगर अतिति से हटकर वर्तमान की बात करे तो मणिपुर में हिंसा अभी भी नहीं रुकी है और सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) ने मामले पर संज्ञान लेते हुए जांच का जिम्मा अपने हाथ में ले लिया है। इस लेख के आखरी भाग में हम प्रशासन और सरकार के मणिपुर के प्रति दोहरे रवैये पर बात करेंगे।
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