हाइलाइट्स –
कैसे फिर मजबूत हुआ तालिबान?
अमेरिका-तालिबान में हुई थी डील!
तालिबान ने कौन सा संकल्प लिया?
राज एक्सप्रेस (Raj Express)। 20 साल बाद तालिबान समूह ने अफगानिस्तान में फिर पैर जमा लिए हैं। समूह ने 15 अगस्त को काबुल पर कब्जा करके देश भर में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्शा कर दुनिया को चौंका दिया।
विदेशी बलों के हटने के बाद -
2001 में अमेरिकी सेना द्वारा आतंकवादियों को सत्ता से हटाने के दो दशक बाद, अमेरिका और तालिबान समझौते की दिशा में आगे बढ़े। एक समझौते के बाद विदेशी बलों के द्वारा वापसी की घोषणा पर अमल करना शुरू किया गया तो तालिबान ने भी सत्ता हाथ में लेने की पहल शुरू कर दी।
तालिबान और संयुक्त सेनाओं के बीच चले संघर्ष में हजारों लोग मारे गए हैं और लाखों विस्थापित हुए हैं। तालिबान की अफगानिस्तान में कैसे हुई वापसी? जानिये अफगानिस्तान में सत्ता, वर्चस्व और तालिबान का ताना-बाना।
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तालिबान का संकल्प! -
विदेशी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक समझौते में तालिबान बलों ने अफगानिस्तान को उन आतंकवादियों का अड्डा नहीं बनने देने का संकल्प लिया है जो पश्चिम को धमकी दे सकते हैं।
लेकिन अहम सवाल -
ऐसे में सवाल पूछे जा रहे हैं कि तालिबान समूह देश पर कैसे शासन करेगा? महिलाओं, मानवाधिकारों और राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए उनके शासन में क्या अर्थ एवं मायने हैं?
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अमेरिका (US) ने अफगानिस्तान (Afghanistan) में युद्ध क्यों लड़ा और यह इतने लंबे समय तक क्यों चला?
इसे जानने इतिहास में वापस साल 2001 में चलते हैं जब अमेरिका अपने न्यूयॉर्क और वाशिंगटन पर 9/11 के हमलों का जवाब दे रहा था। इनमें लगभग 3,000 लोग मारे गए थे।
अधिकारियों ने इस्लामिक आतंकवादी समूह अल-कायदा (al-Qaeda) और उसके नेता ओसामा बिन लादेन (Osama Bin Laden) को जिम्मेदार बताया। बिन लादेन तालिबान के संरक्षण में अफगानिस्तान में था। यह इस्लामवादी तालिबानी 1996 से सत्ता में थे।
जब उन्होंने लादेन को सौंपने से इनकार कर दिया, तो अमेरिका ने सैन्य हस्तक्षेप किया, तालिबान को तुरंत हटा दिया और लोकतंत्र का समर्थन करने और आतंकवादी खतरे को खत्म करने की कसम खाई।
आतंकवादी भागे तो लेकिन बाद में फिर संगठित हो गए -
आगे चलकर नाटो सहयोगी (Nato allies) देश भी अमेरिका के साथ शामिल हो गए। फिर 2004 में एक नई अफगान सरकार ने सत्ता संभाली। हालांकि इसके बावजूद तालिबान के घातक हमले जारी रहे।
साल 2009 में राष्ट्रपति बराक ओबामा के "ट्रूप सर्ज" ने तालिबान को पीछे धकेलने में मदद तो की लेकिन यह राहत दीर्घकालिक नहीं रही।
नाटो की वापसी -
2001 के बाद से चले सबसे खूनी संघर्ष के अंत के रूप में 2014 में, नाटो की अंतरराष्ट्रीय सेना (Nato's international forces) ने अपने युद्ध मिशन को समाप्त कर दिया। नाटो ने अब सुरक्षा की जिम्मेदारी अफगान सेना (Afghan army) पर छोड़ दी। इसने तालिबान को गति दी और उन्होंने अधिक इलाके पर कब्जा कर लिया।
अमेरिका और तालिबान के बीच शांति वार्ता अस्थायी रूप से शुरू हुई थी। इसमें अफगान सरकार काफी हद तक शामिल नहीं थी। इस अहम वापसी पर समझौता फरवरी 2020 में कतर (Qatar) में हुआ।
यूएस-तालिबान डील बेअसर! -
यूएस-तालिबान डील के बावजूद तालिबान ने हमलों को नहीं रोका। उन्होंने अपना ध्यान अफगान सुरक्षा बलों और नागरिकों के बजाय अन्य लक्षित हत्याओं पर केंद्रित कर दिया। इस कारण उनके नियंत्रण के इलाके बढ़ते गए।
डिस्क्लेमर – आर्टिकल प्रचलित रिपोर्ट्स पर आधारित है। इसमें शीर्षक-उप शीर्षक और संबंधित अतिरिक्त प्रचलित जानकारी जोड़ी गई हैं। इस आर्टिकल में प्रकाशित तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं होगी।
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